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संघ ने बताया कोरोना काल के समाप्त होने के बाद इस मॉडल पर चलकर अर्थव्यवस्था होगी बेहतर

नई दिल्ली। महामारी कोरोनावायरस का स्तर दिन प्रतिदिन पहले से भी अधिक खतरनाक होता जा रहा है। पूरा देश इस महासंकट के खिलाफ एक सामूहिक जंग लड़ रहा है जिसमें हर किसी की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस वायरस के खिलाफ लड़ाई में कुछ सामाजिक संस्थाएं जरूरतमन्दों तक बेहद जरूरी सेवाएं पहुंचा रही हैं। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अपनी सेवाएं दे रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने कहा कि वे आशा करते हैं कि वैश्विक महामारी के खत्म होने के बाद इसकी उत्पत्ति को लेकर जांच की जाएगी। इसके साथ ही इसने COVID-19 के बाद के दौर में आत्मनिर्भरता पर आधारित एक वैकल्पिक आर्थिक मॉडल या ‘स्वदेशी’ पर जोर दिया है।

बुधवार को RSS के संयुक्त महासचिव दत्तात्रेय होंसबोले की विदेशी के साथ बातचीत से पहले संघ ने इसकी पृष्ठभूमि से जुड़े कुछ पर्चे बांटे थे, जिसमें इन बड़े नीतिगत मुद्दों को रेखांकित किया गया था। इसमें बिना चीन का नाम लिए लिखा गया, “आशा है कि एक विस्तृत जांच इसकी उत्पत्ति, वजहों और प्रभाव के बारे में की जाएगी। भविष्य में ऐसी किसी भी इमरजेंसी से बचने के लिए पूरी दुनिया को साथ आना चाहिए और जिम्मेदार लोगों, संस्थाओं और देशों के साथ मिलकर इससे निपटने के लिए नई व्यवस्था का निर्माण करना चाहिए।”

RSS, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में चल रही भारतीय जनता पार्टी (BJP) का वैचारिक सहयोगी संगठन है। इस नोट में जोर दिया गया है कि महामारी (Pandemic) के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सरकार के कामकाज और उद्देश्यों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तर पर नीतिगत समन्वय लाना चाहता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनका प्रशासन चीन के कोरोना वायरस प्रसार को संभालने के तरीकों का आलोचक रहा है और एशिया के इस बड़े देश पर ईमानदारी से मामले रिपोर्ट न करने और इसके खतरे के प्रति दुनिया को आगाह न करने का आरोप लगाया था। जबकि केंद्रीय चीनी शहर वुहान (Wuhan) में इसके पशुओं से मनुष्यों में हुए प्रसार का सबसे पहले पता चला था।

RSS ने जिस नोट को बांटा उसमें वायरस के प्रकोप से टूट रही अर्थव्यवस्था से निपटने की ‘पूंजीवाद और साम्यवाद’ की सीमाओं को भी रेखांकित किया गया था, जिसके चलते धरती की एक तिहाई जनसंख्या लॉकडाउन में रहने के लिए मजबूर है। सभी आर्थिक गतिविधियां थम गई हैं और इससे अब तक 2 लाख से ज्यादा जानें जा चुकी हैं।

पूरी दुनिया पर थोपा गया भौतिकतावादी दृष्टिकोण हमें नई आर्थिक गिरावट और पर्यावरणीय गिरावट के चक्रों में धकेल सकता है। ऐसे परिदृश्य में यह समझदारी होगी कि हम आत्मनिर्भरता और ‘स्वदेशी’ के आधार पर एक नया मॉडल विकसित करें।

नोट में कहा गया है, “पर्यावरणीय विचारों का खयाल रखते हुए इस स्वदेशी मॉडल में, स्थानीय संसाधनों, कार्यशक्ति और जरूरतों को आर्थिक गतिविधियों में लगाया किया जाएगा।” गौरतलब है कि देश के अलग अलग मुद्दों पर RSS अपने विचार हमेशा से रखता आया है। एक शाखा से शुरू होने वाला आरएसएस आज दुनिया की सबसे बड़ी संस्थाओं में से एक है।

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