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कोरोना के कहर के बीच इस पत्रकार से नहीं हो पाया तिरंगे का सम्मान, कर दिया ऐसा काम

नई दिल्ली। इस वक्त देश में कोरोनावायरस की वजह से लॉकडाउन का दौर चल रहा है। इस लॉक डाउन में जब सामाजिक संवाद बेहद कम हो पा रहा है तो ऐसे में भारतीय मीडिया देश के आम लोगों और सरकार के बीच का माध्यम बनकर अहम भूमिका निभा रहा है। क्योंकि लोगों को इस बेहद खतरनाक महामारी ( कोरोनावायरस ) से निपटने के लिए सामूहिक भागीदारी की जरूरत है जो सिर्फ सावधानी के माध्यम से सम्भव है।

मीडिया इस कड़ी में एक महत्वपूर्ण अंग है। मगर भारतीय मीडिया में कुछ अपवाद भी देखने को मिल रहे हैं। ऐसा ही एक अपवाद हैं पत्रकार विद्या कृष्णन, जिनके हाल ही में लिखे गए एक लेख में भारत के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया गया है।

दरअसल उन्होंने ‘द अटलांटिक’ में एक लेख लिखा है, अगर आप इस लेख में लगी तस्वीर को देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि इसमें तिरंगे झंडे का अपमान किया गया है। बीच में सफ़ेद पट्टी पर अशोक चक्र की जगह कोरोना वायरस को दिखाया गया है। यानी अशोक चक्र की तुलना कोरोना वायरस से की गई है। ऐसे में तिरंगे का यह अपमान करने की इन जैसे पत्रकारों को आदत सी हो गई है। वह लगातार देश के खिलाफ एक खास किस्म का एजेंडा चलाती रहती हैं। इसी लेख में विद्या ने दावा किया है कि भारत में दवा की दुकानें बंद हैं, जबकि फ्रांस वगैरह में खुली हैं। सच्चाई ये है कि दवाओं और ज़रूरी वस्तुओं की दुकानें खुली हुई हैं।

उनके द्वारा बताया गया है कि भारत सरकार कोरोना वायरस से निपटने के लिए बेरहम तरीके अख्तियार कर रही है। इस लेख की सबसे अजीब बात ये है कि इसको लिखने के लिए कोरोनावायरस को सब्जेक्ट बनाया गया है लेकिन न जाने क्यों इसकी शुरुआत CAA को गाली देने के साथ होती है। इस आर्टिकल में केंद्र की मोदी सरकार को ‘हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार’ कह कर सम्बोधित किया गया है। इसके साथ ही इसमें दिल्ली में हुए दंगों का भी जिक्र किया गया है। जिसके बारे में बताया गया है कि ये एक सुनियोजित दंगा था, जिसमें मरने वाले अधिकतर मुस्लिम समुदाय के लोग थे।

विद्या कृष्णन ने इस आर्टिकल में लिखा है कि 30 जनवरी को कोविड-19 का भारत में पहला मामला सामने आया था। मगर केंद्र सरकार फिर भी जागी नहीं। लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक 7 जनवरी को चीन ने इसके बारे सूचना सार्वजनिक की थी जिसके बाद 8 जनवरी को भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए टेक्निकल एक्सपर्ट्स कमिटी की बैठक की। इस आर्टिकल को लिखने के बाद विद्या कृष्णन ने एक ट्वीट भी किया था जिसपर यूजर्स ने ट्रोल करते हुए नाराजगी दिखाते हुए रेस्पोंस किया है

गौरतलब है कि मौजूदा समय में हालांकि भारत में कोरोनावायरस संक्रमण के आंकड़े बेशक बढ़ रहे हैं, मगर फिर भी और देशों की तुलना में भारत इतनी बड़ी आबादी के बावजूद बड़े कदम उठाकर इसको रोक रहा है। भारत सरकार की कोरोनावायरस संक्रमण को लेकर की गई तैयारियों की दुनियाभर में तारीफ की गई है।

लोग लगातार सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि विद्या कृष्णन को तिरंगे के अपमान के लिए सजा दी जाए। यह सही भी है कि राष्ट्रीय ध्वज का इस तरह का अपमान किसी भी सूरत में बर्दाश्त के काबिल नहीं है। ऐसे में इन पत्रकारों की मानसिक स्थिति का भी आप सीधे तौर पर अंदाजा लगा सकते हैं जिनको ये तक नहीं पता कि कोरोना जैसी महामारी से निपटने के लिए सरकार किस तरह का प्रयास कर रही है। लेकिन कोरोना के बीच इनके अंदर की टीस सीएए और एनपीआर को लेकर हैं। वह कोरोना से देश में मचे हाहाकार के बीच भी इन्हीं मुद्दों को लेकर राग अलापती नजर आ रही हैं।

अब एक बार जानते हैं कि तिरंगे के अपमान की सजा क्या है?

भारत में फहराया जाने वाला राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ तीन रंगों से बना हुआ होता है। जिसे 22 जुलाई 1947 को भारतीय संविधान सभा की बैठक में अपनाया गया था। 3 रंगों से बना तिरंगा भारत की संपूर्णता और एकता को दर्शाता है। इसलिए, विविधताओं को एक झंडे में समाहित करने के लिए तिरंगा में 3 रंगों को शामिल किया गया है।

‘राष्ट्र ध्वज का सम्मान’ करना हर भारतीय नागरिक का मौलिक कर्तव्य है। जिसका वर्णन भारतीय संविधान के भाग 4 अ के अनुच्छेद 51अ में मौलिक कर्तव्यों के अंतर्गत किया गया है। ‘राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम 1971 के अपमान को रोकने’ की धारा 2 कहती है कि, अगर कोई भी व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थल पर या सार्वजनिक दृष्टि से अन्य स्थान पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज या उसके किसी भी भाग को जलाता, काटता, तोड़ता-मरोड़ता, मर्यादा भंग करता, विरूपित करता, खंडित करता, रौंदता या किसी अन्य प्रकार से (शब्दों, लिखित, मौखिक या अपने कार्यकलापों द्वारा) अपमान करता है या अवमानना करता है, तो उसे 3 साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

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