नई दिल्ली। एक दौर था, जब कांग्रेस का दबदबा था। करीब-करीब पूरे देश में उसकी सरकारें थीं। कांग्रेस ने उसी दौर में बीजेपी पर महज 2 सीट होने का तंज कसा था। बदले में बीजेपी के तत्कालीन कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि आने वाले समय में कांग्रेस को ये तंज भारी पड़ेगा। अब वही हो रहा है। बीजेपी ने मोदी युग के शुरू होने पर ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का जो नारा दिया, उसने पार्टी और उसे चलाने वाले गांधी खानदान को जोर का झटका दिया है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है कि कांग्रेस को आखिर उबारें तो कैसे।
देश में अब सिर्फ कांग्रेस अपने दम पर राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता में है। झारखंड और महाराष्ट्र में वो गठबंधन का हिस्सा है। इसके नतीजे में कांग्रेस की राज्यसभा में भी हालत पतली हो गई है। 30 साल बाद ऐसा हो रहा है कि राज्यसभा में कांग्रेस के सिर्फ 33 सांसद हैं। जबकि, सत्तारूढ़ बीजेपी के 101 सदस्य हो गए हैं। अभी राज्यसभा की और सीटों के चुनाव होने हैं। ऐसे में कांग्रेस की चिंता बढ़ गई है। हालत ये है कि राज्यसभा में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल का दर्जा खो सकती है। 1990 के दौर में कांग्रेस के राज्यसभा में 108 सांसद थे। वहीं, बीजेपी के पास पहले 55 सांसद यहां थे। राज्यसभा में मुख्य विपक्षी दल का तमगा हासिल करने के लिए कम से कम 25 सांसद होने चाहिए। अगर कांग्रेस और सीटें गंवाती है, तो ये तमगा उसके पास नहीं रहेगा।
बात बीजेपी की करें, तो जुलाई में राज्यसभा की सीटों के लिए होने वाले चुनाव में उसे फिर फायदा होगा। यूपी में 11 सांसदों का कार्यकाल खत्म होगा। अभी इनमें से 5 सांसद बीजेपी के हैं। विधानसभा में बीजेपी की बड़ी तादाद के कारण अब उसके 7 सांसद चुने जाने तय हैं। साथ ही अगर जोड़-तोड़ में बीजेपी अव्वल रही, तो राज्यसभा में यूपी से उसके 8 सांसद भी चुनकर पहुंच सकते हैं। कांग्रेस के यूपी में सिर्फ 2 ही विधायक हैं। ऐसे में वो एक भी सीट नहीं जीत सकती। कई और राज्यों में भी उसकी ऐसी ही दुर्गति होनी तय मानी जा रही है।