नई दिल्ली। साल 1975 में 25 जून की रात तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी थी। इमरजेंसी के दौरान के अत्याचारों की गूंज आज भी नेताओं के भाषणों में सुनाई देती है। आखिर इमरजेंसी लगी क्यों थी और इसे लगाने के पीछे मुख्य किरदार कौन था, ये आज हम आपको बताने जा रहे हैं। दरअसल, 25 जून 1975 को ऐसी अटकलें थीं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा के कोर्ट से रायबरेली से इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया जाएगा। जिसके बाद इंदिरा गांधी पीएम पद से इस्तीफा दे देंगी। हुआ ये था कि समाजवादी नेता राजनारायण ने इंदिरा के खिलाफ सरकारी तंत्र का इस्तेमाल कर चुनाव जीतने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में अर्जी दी थी। खबरें थीं कि इंदिरा ने इस्तीफा लिख लिया है, लेकिन कोर्ट की तरफ से उनके चुनाव को अवैध करार देने के बाद भी देर रात तक इंदिरा ने पद से इस्तीफा नहीं दिया। बताया जाता है कि छोटे बेटे संजय गांधी अपनी मां के इस्तीफे के पक्ष में नहीं थे और इस पर नाराजगी जताई थी। रात गहरा गई और लोग सो गए। फिर अगली सुबह यानी 26 जून को लोगों की आंख खुली। उन्होंने अखबार पढ़े और रेडियो सुना, तो पता चला कि इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक आपातकाल का एलान कर दिया था। आखिर इस्तीफा देने जा रहीं इंदिरा गांधी ने किसके कहने पर इमरजेंसी लगाई, ये हम आपको बताने जा रहे हैं।
किताब Truth, Love and a Little Malice लिखने वाले नामचीन संपादक खुशवंत सिंह ने देश पर इमरजेंसी थोपे जाने का पूरा ब्योरा सिलसिलेवार लिखा है। खुशवंत की गांधी परिवार में अच्छी पैठ थी। उन्होंने किताब में लिखा कि इंदिरा गांधी को पीएम पद से इस्तीफा न देने के लिए पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सीएम सिद्धार्थ शंकर राय ने मनाया। खुशवंत के मुताबिक राय ने ही इंदिरा को कहा कि आंतरिक आपातकाल ही अब उपाय है और फिर देर रात इमरजेंसी के आदेश पर तब राष्ट्रपति रहे फखरुद्दीन अली अहमद से दस्तखत कराए गए। पूरी योजना को इतना गोपनीय रखा गया कि आदेश जारी होने के बाद अगले दिन कैबिनेट की बैठक में इंदिरा ने मंत्रियों से इस बारे में पिछली तारीख पर दस्तखत लिए।
इमरजेंसी का एलान होने के साथ ही इंदिरा गांधी ने पुलिस की मदद से विपक्षी नेताओं को जेल में ठूंसना शुरू किया। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस समेत तमाम नेताओं को 25 जून की रात में ही गिरफ्तार कर लिया गया था। उस वक्त टीवी न्यूज चैनल नहीं थे, ऐसे में अखबारों पर सेंसरशिप लागू हुई। हर खबर को सरकारी तंत्र की मंजूरी के बाद छापना जरूरी कर दिया गया। खुशवंत सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि सिर्फ रामनाथ गोयनका के अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने बिना डरे इस सेंसरशिप का मुकाबला किया। नतीजे में संस्थान की बिजली काटी गई। न्यूजप्रिंट का कोटा घटा दिया गया। इस दौरान इंदिरा गांधी की सरकार पर जबरन नसबंदी के आरोप भी लगे। देश में इमरजेंसी एक साल से ज्यादा वक्त तक लागू रही।