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Vedanta-Foxconn Matter: वेदांता-फॉक्सकॉन समझौता टूटने पर मोदी सरकार को घेरा जा रहा, लेकिन कांग्रेस सरकारों के दौर में क्या हुआ था ये भी जानिए

vedanta foxconn

नई दिल्ली। वेदांता और फॉक्सकॉन के बीच भारत में चिप निर्माण करने का समझौता टूट गया। इस पर कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरा है। कांग्रेस की तरफ से वार किए जाने पर बीजेपी की तरफ से भी पलटवार किया गया है। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट में लिखा है कि कांग्रेस शायद वेदांता और फॉक्सकॉन के बीच समझौता टूटने का इंतजार कर रही थी। ताकि वो खुशियां मना सके। आज हम इसकी पड़ताल करेंगे कि जो कांग्रेस वेदांता और फॉक्सकॉन के बीच चिप बनाने का समझौता टूटने पर मोदी सरकार को घेर रही है, उसने अपने दौर में इस काम के लिए क्या कोई कदम उठाए थे? इस बारे में तथ्यपरक एक लेख अंग्रेजी अखबार ‘द स्ट्टेसमैन’ में छपा था।

स्टेट्समैन  में छपे लेख के मुताबिक कांग्रेस की सरकारों ने चिप बनाने जैसे अति महत्वपूर्ण कार्य की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया। तमाम मौके भारत को मिले, लेकिन सरकारों की लालफीताशाही की वजह से भारत चिप बनाने की दिशा में आगे नहीं बढ़ सका। इस लेख में बताया गया है कि 1987 में भारत चिप बनाने की दिशा में तकनीकी हासिल करने से महज 2 साल पीछे था। आज भारत 12 पीढ़ी पीछे है। आरोप लगाया गया है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, लालफीताशाही और ब्यूरोक्रेसी के अड़ंगे ने ये हाल किया। इसमें बताया गया है कि 1960 में जब सिलिकॉन क्रांति शुरू हुई, तो फेयरचाइल्ड सेमीकंडक्टर ने भारत में चिप बनाने के बारे में सोचा, लेकिन ब्यूरोक्रेसी का व्यवहार ऐसा था कि वो कंपनी मलेशिया चली गई। द स्टेट्समैन के लेख में बताया गया है कि 1962 में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (बेल) ने सिलिकॉन और जर्मेनियम ट्रांजिस्टर बनाने के लिए सेटअप तैयार किया। बेल के रिटायर्ड सीनियर डीजीएम एन. रवींद्र के हवाले से कहा गया है कि इसके उत्पादों की बहुत डिमांड थी, लेकिन चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया की कंपनियों ने सस्ता माल बेचना शुरू कर दिया। इससे बेल टक्कर नहीं ले सका।

लेख में बताया गया कि 1980 के दशक के मध्य में आईआईएससी के प्रोफेसर ए.आर. वासुदेव मूर्ति ने मेटकेम सिलिकॉन कंपनी बनाई। उसने बेल के साथ मिलकर सोलर सेल और इलेक्ट्रॉनिक चीजों के लिए पॉलीसिलिकॉन वेफर बनाए, लेकिन सरकार की तरफ से सब्सिडी वगैरा न मिलने से ये काम भी बंद हो गया। इसी तरह 1990 के दशक में भी कोशिश हुई, लेकिन सरकारी उदासीनता से तब भी नतीजा सिफर रहा। इसमें चंडीगढ़ के सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स (एससीएल) के प्रोजेक्ट के बारे में बताया गया है। इस कंपनी ने 5000 नैनोमीटर के चिप 1984 में बनाए और 800 नैनोमीटर के चिप बनाने की तरफ कदम भी बढ़ा दिए। यहां 1989 में भीषण आग लगी और इससे हम फिर चिप निर्माण में पिछड़ गए। इसरो ने बाद में एससीएल में अपने काम के लिए कम संख्या में चिप बनाना शुरू किया।

लेख में आगे बताया गया है कि 2005 के मध्य में दक्षिण भारत में मल्टीनेशनल सेमीकंडक्टर कंपनी ने काम शुरू किया। इस कंपनी के काम में कदम कदम पर रोड़े अटकाए गए। हालत ये थी कि अमेरिका से मंगाए गए यंत्र कई महीने तक बंदरगाहों से बाहर ही नहीं आ सके। सरकार से गुहार लगाने पर भी कुछ नहीं हुआ। लेख के मुताबिक चीन ने मौके को भांपा और उसने कंपनी को अपने यहां बुला लिया। इससे 4000 लोगों को रोजगार भी नहीं मिला। एक और कंपनी यहां के हालात देख बिना काम किए चली गई। द स्टेट्समैन के लेख के मुताबिक मनमोहन सिंह के पीएम रहते सरकार ने 2012-13 में दो चिप निर्माण इकाइयों के लिए 39000 करोड़ रुपए बजट में रखे। जेपी ग्रुप ने आईबीएम और एचएसएमसी के साथ इसके लिए बोली लगाई। गुजरात सरकार ने भी 300 एकड़ जमीन दी, लेकिन एचएसएमसी अपने निवेशकों में ये भरोसा नहीं जता सकी कि भारत में चिप का मार्केट है। इससे पहले हैदराबाद में 200 एकड़ में बनने वाली फैब सिटी का प्लान भी ध्वस्त हो गया।

कांग्रेस की तरफ से वेदांता-फॉक्सकॉन डील रद्द होने के बाद मोदी सरकार को निशाना बनाए जाने पर बीजेपी ने पलटवार किया है। अमित मालवीय ने ट्वीट में लिखा कि दोनों कंपनियों के बीच समझौता रद्द होने से भारत में चिप बनाने का कार्यक्रम नहीं रुकेगा। फिर भी कांग्रेस खुशी मना रही है। अमित मालवीय ने लिखा है कि फॉक्सकॉन और वेदांता ने भारत में सेमीकंडक्टर प्रोग्राम चलाने की बात कही है। इसके साथ ही मालवीय ने चिप निर्माण की पूरी प्रॉसेस के बारे में अलग से ट्वीट भी किया है। पढ़िए उनके दोनों ट्वीट।

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