नई दिल्ली। गोरखपुर में स्थापित गीता प्रेस को गाँधी शांति पुरस्कार 2021 दिए जाने की घोषणा के बाद से ही लगातार सियासी बवाल छिड़ा हुआ है। कांग्रेस और बीजेपी के बीच इसको लेकर वाक्युद्ध की शुरुआत हो गई है। लगातार इस मुद्दे को लेकर छिड़े विवाद के बीच एक और बड़ी प्रतिक्रिया सामने आई है। दरअसल, अब इस पूरे मामले पर गृहमंत्री अमित शाह ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। जिसके बाद सियासी माहौल के एक बार फिर गर्म होने की पूरी संभावना है।
भारत की गौरवशाली प्राचीन सनातन संस्कृति और आधार ग्रंथों को अगर आज सुलभता से पढ़ा जा सकता है तो इसमें गीता प्रेस का अतुलनीय योगदान है। 100 वर्षों से अधिक समय से गीता प्रेस रामचरित मानस से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता जैसे कई पवित्र ग्रंथों को नि:स्वार्थ भाव से जन-जन तक पहुँचाने का अद्भुत…
— Amit Shah (@AmitShah) June 19, 2023
अमित शाह ने ट्वीट करके जयराम रमेश को जवाब देते हुए लिखा, “भारत की गौरवशाली प्राचीन सनातन संस्कृति और आधार ग्रंथों को अगर आज सुलभता से पढ़ा जा सकता है तो इसमें गीता प्रेस का अतुलनीय योगदान है।” इसके साथ ही गृहमंत्री अमित शाह ने आगे अपने ट्वीट में ये भी लिखा कि, “100 वर्षों से अधिक समय से गीता प्रेस रामचरित मानस से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता जैसे कई पवित्र ग्रंथों को नि:स्वार्थ भाव से जन-जन तक पहुँचाने का अद्भुत कार्य कर रही है।”
The Gandhi Peace Prize for 2021 has been conferred on the Gita Press at Gorakhpur which is celebrating its centenary this year. There is a very fine biography from 2015 of this organisation by Akshaya Mukul in which he unearths the stormy relations it had with the Mahatma and the… pic.twitter.com/PqoOXa90e6
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) June 18, 2023
आपको बता दें कि इससे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करके इस पुरस्कार को गीत प्रेस को दिए जाने को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा। जयराम रमेश ने सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए लिखा, “2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर में गीता प्रेस को प्रदान किया गया है जो इस वर्ष अपनी शताब्दी मना रहा है। अक्षय मुकुल द्वारा इस संगठन की 2015 की एक बहुत ही बेहतरीन जीवनी है जिसमें वह महात्मा के साथ इसके खराब संबंधों और उनके राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चल रही लड़ाइयों का पता लगाता है। यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।”