नई दिल्ली। देशभर में समान नागरिक संहिता को लेकर जारी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अहम सवाल पूछा है। शीर्ष अदालत ने केंद्र से पूछा है कि क्या मुस्लिम परिवार में जन्मा कोई व्यक्ति संपत्ति के मामलों में धर्मनिरपेक्ष कानूनों का पालन कर सकता है या उसे मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) का पालन करने के लिए बाध्य किया जाएगा? मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई मई के दूसरे सप्ताह में करेगा।
क्या है पूरा मामला?
यह याचिका केरल के अलप्पुझा की रहने वाली साफिया पी.एम. नाम की महिला ने दायर की है। साफिया ने अपनी याचिका में कहा है कि उसका परिवार नास्तिक है, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ के कारण उसका पिता चाहकर भी अपनी बेटी को एक-तिहाई से अधिक संपत्ति नहीं दे सकता। बाकी संपत्ति पर भविष्य में पति के भाइयों के परिवार का कब्जा हो जाने की आशंका है।
याचिकाकर्ता का बेटा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है और बेटी उसकी देखभाल करती है। शरीयत कानून के अनुसार, बेटी को बेटे की तुलना में आधी संपत्ति मिलती है। ऐसे में पिता बेटी को सिर्फ एक-तिहाई संपत्ति ही दे सकता है, जबकि बाकी दो-तिहाई संपत्ति बेटे के नाम करनी होगी। अगर भविष्य में बेटे और पिता की मृत्यु हो जाती है, तो बेटे के हिस्से वाली संपत्ति पर पिता के भाइयों के परिवार का दावा बन जाएगा।
🚨 #BREAKING :
Supreme Court seeks Modi govt’s response on Muslim Woman’s request to ‘Opt-Out’ of Shariat for ‘Indian Succession Laws’ 🎯
— Bad days ahead for ‘Shariat’…! pic.twitter.com/9jtQesZIrV
— NewsSpectrumAnalyzer (The News Updates 🗞️) (@Bharat_Analyzer) January 28, 2025
संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला
साफिया का कहना है कि वह और उसका पति मुस्लिम नहीं हैं, इसलिए उन्हें भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संपत्ति का बंटवारा करने की अनुमति मिलनी चाहिए। फिलहाल यह अधिनियम मुसलमानों पर लागू नहीं होता, जिसे साफिया ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि संविधान का अनुच्छेद 25 नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने या नास्तिक बनने का अधिकार देता है। इसके बावजूद सिर्फ किसी धर्म विशेष में जन्म लेने के आधार पर व्यक्ति को उस धर्म के पर्सनल लॉ को मानने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। वकील ने दलील दी कि यदि याचिकाकर्ता और उसके पिता लिखित में यह घोषित कर दें कि वे मुस्लिम नहीं हैं, तब भी शरीयत कानून के मुताबिक उनकी संपत्ति पर रिश्तेदारों का दावा बन जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कहा कि यह मामला एक महिला से जुड़ा है, जो शरीयत को नहीं मानती। इस पर CJI संजीव खन्ना ने कहा कि यह सभी धर्मों पर लागू होगा और सरकार को इस पर जवाब दाखिल करना होगा। CJI ने कहा, “यदि हम कोई आदेश पारित करते हैं, तो यह सुनिश्चित करने के लिए कई औपचारिकताएं होंगी।” इस पर SG मेहता ने सहमति जताते हुए कहा कि दिलचस्प बात यह है कि याचिकाकर्ता की केवल एक बेटी है और वह अपनी पूरी संपत्ति उसे देना चाहती हैं, लेकिन शरीयत कानून के अनुसार वह सिर्फ 50% ही दे सकती हैं।
शरीयत एक्ट और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम में क्या प्रावधान है?
शरीयत एक्ट की धारा 3 के अनुसार, मुस्लिम व्यक्ति को यह घोषणा करनी होती है कि वह शरीयत के मुताबिक उत्तराधिकार के नियमों का पालन करेगा। लेकिन जो ऐसा नहीं करता, उसे भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम का लाभ नहीं मिल पाता। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 58 में यह प्रावधान है कि यह मुसलमानों पर लागू नहीं होता। इस प्रावधान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अब बहस तेज हो गई है।