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एक विश्वविद्यालय का खौफनाक दावा, कोरोनावायरस अब इंसानों के हिसाब से खुद को ढाल रहा है

नई दिल्ली। क्या कोरोनावायरस आने वाले वक्त में इंसान के शरीर को उसी तरह से प्रभावित करता रहेगा जैसे आज कर रहा है। क्या दुनियाभर में इंसान इस महामारी से लड़ने वाली एंटीबॉडीज को अपने शरीर में पैदा कर लेंगे। क्या ये बीमारी म्यूटेशन तक पहुंच पाएगी ? कुछ ऐसे ही सवाल हैं जो आज हर कोई पूछ रहा है। वैज्ञानिक इसके पीछे कई तरह के तर्क दे रहे हैं।

कई रिसर्च पेपर पब्लिश किए जा रहे हैं। अब यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिकाें ने अपनी रिसर्च में कोरोना पर नया खुलासा किया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोरोनावायरस 2019 के अंत में काफी तेज़ी से दुनियाभर में फैला। अब यह इंसान के शरीर के मुताबिक खुद को ढाल रहा है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने दुनियाभर में 7500 से अधिक संक्रमित लोगों के जीनोम का अध्ययन किया है।

200 बार हो चुका म्यूटेट

ब्रिटिश शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोरोनावायरस चीन में 6 अक्टूबर से दिसम्बर 2019 के बीच फैलना शुरू हुआ। संक्रमण फैलाने वाले वायरस में जैविक विविधता देखने को मिली है। यह अब तक 200 बार म्यूटेट (बदल) हो चुका है। यह इंसानों में संक्रमण के बाद उसमें खुद को रहने लायक बना लेता है।

कोरोना में होने वाला बदलाव उम्मीद से परे

शोधकर्ता फ्रेंकॉयस बेलोक्स का कहना है कि यह वायरस धीरे-धीरे खुद को म्यूटेट कर रहा था यही वजह है कि दुनियाभर में इसके काफी रूप देखने को मिले हैं। संक्रमण काफी खतरनाक साबित हुआ है। हर वायरस म्यूटेट होता है लेकिन कोरोनावायरस में तेजी से बदलाव हुआ है यह उम्मीद से भी परे था।

वैक्सीन बनाना आसान हो पाएगा

शोधकर्ता के मुताबिक, संक्रमित लोगों में 7500 वायरस के जीनोम सिक्वेंस को जांच गया। जांच के बाद पता चला कि सभी वायरस का पूर्वज एक ही है। इस जानकारी की मदद से कोरोना की वैक्सीन बनाना और इलाज करना थोड़ा आसान हो पाएगा।

कोरोना का एक स्ट्रेन बेहद खतरनाक

ग्लासगो यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में कहा गया है कि कोरोना के दो प्रकारों (स्ट्रेन) से संक्रमण फैला जिसमें एक बेहद खतरनाक था। यही सबसे तेजी से फैल रहा था। कई देशों में संक्रमण के आधिकारिक मामले भले ही जनवरी में देखे गए लेेकिन वायरस दिसम्बर में तेजी से फैल रहा था। फ्रांस के वैज्ञानिकों का दावा है कि यहां का एक शख्स 27 दिसम्बर 2019 को पॉजिटिव मिला जबकि आधिकारिक मामले इसके बाद सामने आए। गौरतलब है कि अबतक कई तरह की रिसर्च इस महामारी पर की जा चुकी हैं लेकिन इसके बावजूद भी इसका पुख्ता इलाज नहीं मिला हैं।

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