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नरेंद्र मोदी सरकार 2.0: मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति ने 70 साल के वादे पर एक साल के कार्यकाल में लगा दी मुहर

नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में किए गए काम को जनता ने इतना पसंद किया की दूसरी बार सरकार के गठन के लिए भाजपा को जनता की तरफ से बेहतरीन समर्थन प्राप्त हुआ। जनता के आशीर्वाद से 300 से ज्यादा सीट केवल भाजपा के हिस्से में आई। इसके बाद सरकार गठन से लेकर एक साल के पूरे होनेवाले कार्यकाल में जिस तरह से मोदी सरकार को लेकर जनता का भरोसा मजबूत और मजबूत होता जा रहा है वह सच में काबिलेतारीफ है।

हाल ही में कोरोना के इस संकट काल के बीच भी कराए गए सर्वे की मानें तो पीएम नरेंद्र मोदी के ऊपर 71 प्रतिशत से ज्यादा देश की जनता का भरोसा कायम है और वह यह मानते हैं कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हर मुसीबत से लड़कर देश बाहर आ जाएगा और ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि आजादी के 70 सालों में देश ने कई सरकारें देखी इनमें कांग्रेस, जनता दल, भाजपा सहित कई और पार्टी के साथ गठबंधन की सरकारें भी रही लेकिन देश की जनता से आजादी के समय से किए गए वादे को जिस तरह से नरेंद्र मोदी 2.0 सरकार के गठन के बाद से निभाया गया। उससे ही मोदी सरकार के प्रति लोगों का भरोसा तेजी से बढ़ा है।

30 मई 2019 को अपना कार्यकाल शुरू करते ही नरेंद्र मोदी देश की जनता के द्वारा किए गए प्रमुख वादों को पूरा करने में लग गए ऐसा नहीं था कि ये वादे आज के थे आजादी के बाद से ही सरकारें इनमें से कई वादों का झुनझुना जनता के हाथ में थमाती रही थी और सत्ता के सिंहासन पर काबिज होती रही थी। चाहे जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 खत्म कर विशेष दर्जा वापस लेना हो या फिर नागरिकता संशोधन कानून को लाना हो, तीन तलाक कानून पारित कराना हो या अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए ट्रस्ट की स्थापना करने के लिए सरकार द्वारा प्रयास करना हो। ये सारे मुद्दे पुराने थे हां ये अलग बात ती कि पहले सरकार के गठन के समय से प्रधानमंत्री मोदी को इन सारे मुद्दों को लेकर संसद में लगातार विपक्ष के द्वारा घेरने की कोशिश की जाती थी। हालांकि इन मुद्दों के निपटारे के बाद भी देश का विपक्ष मोदी सरकार पर इनके निपटारे में अनियमितता को लेकर हमलावर होता रहता है लेकिन सरकार ने जिस तीव्र गति से अपने दूसरे कार्यकाल के पहले साल में इसका निपटारा किया है वह सच में किसी भी सरकार के मजबूत मनोबल और ताकतवर राजनीतिक इच्छाशक्ति को दर्शाता है।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का निपटारा

केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में करने का प्रस्ताव किया।

17 अक्तूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का हिस्सा बना तथा इसे एक ‘अस्थायी प्रावधान’ के रूप में जोड़ा गया था, जिसने जम्मू-कश्मीर को छूट दी थी, ताकि वह अपने संविधान का मसौदा तैयार कर सके और राज्य में भारतीय संसद की विधायी शक्तियों को प्रतिबंधित कर सके। अनुच्छेद 35A अनुच्छेद 370 से उपजा है और जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश पर 1954 में राष्ट्रपति के एक आदेश के माध्यम से लागू किया गया था। अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर विधायिका को राज्य के स्थायी निवासियों और उनके विशेषाधिकारों को परिभाषित करने का अधिकार देता था। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करने के लिये जोड़ा गया था। किंतु यह कश्मीरियों की भलाई करने में विफल रहा।

इसी को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित करने का फैसला किया। इसे पेश करते हुए संसद में गृहमंत्री ने साफ कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 370 एक ‘अस्थायी प्रावधान’ था। ऐसे में इसे समाप्त किया जाता है और इसके साथ ही अनुच्छेद 35ए को भी खत्म कर दिया गया।

जम्मू कश्मीर और लद्दाख को दो हिस्सों में बांटना

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को समाप्त किए जाने के साथ ही गृह मंत्री अमित शाह ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि अब पूरे राज्य को दो हिस्सों में बांटा जा रहा है। ये दोनों हिस्से वैसे तो केंद्रशासित प्रदेश होंगे लेकिन दोनों के गठन और उनकी संरचना में अंतर होगा। जम्मू-कश्मीर के हिस्से को मिलाकर विधानसभा सहित(विधायिका वाला) एक केंद्रशासित प्रदेश का गठन कर दिया गया तो वहीं लेह-लद्दाख को बिना विधानसभा के केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया मतलब राज्य की पूरी शक्ति केंद्र के हाथों में होगी और यहां का सारा संचालन भी केंद्र के जिम्मे होगा। हालांकि राज्यसभा में अमित शाह ने आश्वासन दिया था कि जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित क्षेत्र बनाने का कदम स्थायी नहीं है तथा स्थिति सामान्य होने पर राज्य का दर्जा बहाल किया जा सकता है।

एक देश, एक संविधान के सपने को पूरा करना

जम्मू-कश्मीर राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया और राज्य का अपना अलग झंडा और अलग संविधान भी इसके साथ समाप्त हो गया क्योंकि यहां भी भारत का संविदान लागू करने का रास्ता साफ हो गया वहां का संविदान अब घाटी के लिए निष्प्रभावी हो गया है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में दोहरी नागरिकता की सुविधा भी समाप्त हो गई मतलब साफ की एक देश एक निशान एक संविधान और एक विधान की व्यवस्था जम्मू-कश्मीर में भी लागू हो गई। इसके साथ ही राज्य विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का हो गया। यही नहीं जम्मू-कश्मीर में बाहर से आए लोगों के बसने का रास्ता भी साफ हो गया। वाकई नरेंद्र मोदी ने ‘एक देश, एक झंडा और एक संविधान’ के बरसों पुराने देश के सपने को साकार कर दिखाया। हालांकि यह सपना भाजपा के शुरुआती दौर से ही चला आ रहा था जब पार्टी जनसंघ के तौर पर शुरू हुई थी और डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी अनुच्छेद 370 के मुखर विरोधी थे और वो चाहते थे कि कश्मीर पूरी तरह से भारत का हिस्सा बने और वहां अन्य राज्यों की तरह समान कानून लागू हो। अनुच्छेद 370 के विरोध में उन्होंने आज़ाद भारत में आवाज़ उठाई थी। उनका कहना था कि “एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे।” एक तरह से कहें तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सपने को भी इस सरकार ने पूरा किया।

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण की दिशा में पहला कदम

134 साल पुराने अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला 10 नवंब को सुनाया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इस फैसले में रामलला की जीत हुई और राममंदिर जन्मभूमि न्यास को वह जमीन दे दी गई। आपको बता दें कि राम मंदिर निर्माण भाजपा के एजेंडे में शुरू से रहा है और देश के हर आदमी की आस्था इससे जुड़ी रही है। इस पूरे मामले में नरेंद्र मोदी 1.0 सरकार के गठन के बाद से ही लगातार तेजी देखने को मिली सरकार ने न्यायालयों से लगातार अनुरोध किया कि पुराने समय से चले आ रहे इस विवाद का निपटारा जल्द से जल्द किया जाए। कोर्ट के द्वारा भी इस मामले पर तेजी देखी गई अदालत में इसकी सुनवाई के लिए अलग से फास्ट ट्रेक बैंच का गठन किया गया और अंततः फैसला रामलला के पक्ष में आया।

वहीं फासला सुनाते हुए सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाने का भी आदेश दिया था। सरकार ने 82 दिन के अंदर ट्रस्ट का गठन कर संसद में इसकी जानकारी भी दे दी। सरकार ने इस ट्रस्ट का नाम राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र रखा। अब राम मंदिर के निर्माण का काम भी शुरू होनेवाला है। सरकार ने अदालत के इस फैसले के आने के बाद भी देशभर में जिस तरह से अमन शांति कायम रख पाने में सफलता पाई वह भी काफी सराहनीय रहा है।

तीन तलाक कानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं को न्याय

2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा पर रोक लगाई थी। पांच जजों की पीठ ने तुरंत तलाक देने के इस रिवाज को असंवैधानिक करार दिया था। उसने कहा था कि यह इस्लाम की शिक्षा के विरुद्ध है। सुप्रीम कोर्ट ने तभी केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि इस पर कानून बनाया जाना चाहिए और यह संसद की जिम्मेदारी है। इसके बाद 2017 में इस बिल को लोकसभा में पारित किया गया लेकिन यह राज्यसभा से पारित नहीं हो पाया। 25 जुलाई 2019 को मोदी सरकार 2.0 के गठन के बाद एक बार फिर से लोकसभा ने मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल को पारित कर दिया। इसके बाद राज्यसभा से भी इस बिल को पारित करा दिया गया। और इस बिल ने कानून का रूप ले लिया। यही अब तीन तलाक कानून के नाम से जाना जा रहा है। यह भी आजादी के बाद से ही मुस्लिम महिलाओ की मांग रही थी। जिसपर किसी सरकार ने काम करने की हिम्मत नहीं दिखाई बल्कि मोदी सरकार की तरफ से इसको लेकर किए गए वादे को पूरा किया गया और साथ ही अदालत के फैसले का सम्मान भी किया गया।

नागरिकता संशोधन कानून बनाकर विदेशी अल्पसंख्यकों को देश में रहने का मार्ग प्रशस्त करना

नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है यानी इन तीनों देशों के ऊपर उल्लिखित छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन मुस्लिम बहुसंख्यक पड़ोसी देशों से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है। यह छूट उपरोक्त धार्मिक समूह के उनलोगों को प्राप्त है जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत पहुंचे हैं। इन्हीं धार्मिक समूहों से संबंध रखने वाले लोगों को भारत की नागरिकता का पात्र बनाने के लिए नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 संसद में पेश किया गया था। इस विधेयक को 19 जुलाई, 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था और 12 अगस्त, 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। उसके बाद अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2019 को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया। लेकिन उस समय राज्य सभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था।

आपको बता दें कि यह मांग आजादी के समय से ही उठ रही थी इसलिए जब संसद में इस बिल को पेश किया गया तो गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए इस बिल को पास कराने पर जोर दिया था और विपक्ष के कई आजादी के समय से लेकर अब तक के वर्तमान नेताओं के नाम का जिक्र करते हुए उनके पुराने बयानों की याद दिलाई थी और बताया था कि महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू तक के सपने को कैसे इस बिल के माध्यम से सरकार ने पूरा किया।

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