कानपुर। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने एक बार फिर समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की मुखालिफत की है। एआईएमपीएलबी के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने रविवार को कहा कि समान नागरिक संहिता की कोई जरूरत नहीं है। रहमानी ने कानपुर में मीडिया से बात करते हुए संविधान के तमाम अनुच्छेद गिनाए। उन्होंने कहा कि मुसलमानों के अलावा ईसाई और पारसियों के भी अपने सिविल कोड हैं। रहमानी ने ये भी कहा कि सोच बदलने की जरूरत है। वरना ईरान और इराक 10 साल तक जंग लड़ते रहे। उनके पास कोई समान नागरिक संहिता नहीं थी। रहमानी ने कहा कि इन सबसे भाईचारा नहीं बढ़ने वाला है।
#AIMPLB के अध्यक्ष खालिद सैफुल्लाह रहमानी, देश को यूनिवर्सल सिविल कोड की कोई ज़रूरत नहीं है। हर व्यक्ति को अपने मज़हब के हिसाब से जीने की आज़ादी है। ईरान-ईराक 10 साल तक लड़े। उनके पास कोई कॉमन सिविल कोड नहीं था। सोच बदलने की जरूरत है। #Kanpur #Islam @NBTLucknow pic.twitter.com/JTmp13w4bH
— Praveen Mohta (@MohtaPraveenn) June 11, 2023
बता दें कि शनिवार को ऐसी खबरें आई थीं कि केंद्र सरकार संसद के मॉनसून सत्र में समान नागरिक संहिता संबंधी बिल ला सकती है। यूसीसी के बिल के तौर-तरीकों को विधि आयोग ने न्याय विभाग को सौंपा है। इसके तहत सभी धर्मों के मूल तत्वों का सम्मान करते हुए यूसीसी का बिल तैयार करने का सुझाव दिया गया है। इस बिल के पास होने के बाद शादी, तलाक और उत्तराधिकार संबंधी मामले सभी समुदायों के लिए एक जैसे होंगे। एआईएमपीएलबी इसी का विरोध कर रहा है। उसका कहना है कि यूसीसी उसके पर्सनल लॉ में दखल देने का मामला है।
अभी देश में सिर्फ गोवा में यूसीसी लागू है। गोवा पर पुर्तगाल के शासन के दौरान यूसीसी लागू किया गया था। वहीं, उत्तराखंड और गुजरात सरकार ने यूसीसी पास कराने के लिए कमेटी का गठन किया था। उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने बीते दिनों कहा था कि कमेटी ने अपना सुझाव दे दिया है। जल्दी ही उत्तराखंड विधानसभा में यूसीसी का बिल पास कराया जाएगा। यूसीसी लागू करने की बात भारत के संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में भी है। इसमें कहा गया है कि समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में सरकार कदम उठाएगी। सुप्रीम कोर्ट भी कई फैसलों में यूसीसी लाने के लिए केंद्र सरकार को कह चुका है।