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हाथरस कांड: जब पीड़िता लड़की की मां ने कैमरे के सामने कहा था- आपसी रंजीश की वजह से हुई थी मार पिटाई, फिर गैंगरेप की बात कैसे आई? (वीडियो)

नई दिल्ली। हाथरस में हुई घटना ने एक तरफ राजनीतिक दलों को सरकार को घेरने का एक मौका दे दिया तो वहीं दूसरी तरफ देश में आम नागरिक भी इस पूरे मामले से क्षुब्ध नजर आ रहा है। लोगों को लग रहा है कि इस मामले में पूरी तरह से पुलिस और प्रशासन ने गलत रूख अख्तियार कर लिया। लेकिन अब जिस तरह से इस पूरे मामले में एक-एक कर ऑडियो और वीडियो सामने आ रहे हैं वह तो कुछ और ही इशारा कर रहे हैं। इस मामले में जिस तरह के सबूत सामने आ रहे हैं इससे साफ पता चलने लगा है कि इस पूरे मामले को एक ऐसा रंग देने की कोशिश की गई जिससे वहां सामाजिक और धार्मिक सौहार्द बिगड़े और दंगे की स्थिति इलाके में बन जाए ताकि जमकर सरकार की बदनामी हो। हालांकि योगी सरकार इस पूरे मामले की सत्यता को सामने लाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है आज सरकार की तरफ से इस बात की घोषणा की गई है कि पीड़ित और आरोपी दोनों पक्ष के लोगों का नारको और पॉलीग्राफ टेस्ट कराया जाएगा। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी हाथरस में हुए कांड पर सियासत रूक नहीं पा रही। एक-एक कर राजनीतिक दल वहां पहुंचने की जुगत में लगे हुए हैं। पुलिस ने पूरे इलाके में धारा 144 लगा रखी है। लेकिन आज आज इस मामले में ढील देते हुए मीडिया को और राहुल प्रियंका को हाथरस के इस गांव में प्रवेश की अनुमति दे दी गई।

लेकिन इस पूरे मामले में एक बेहद चौंकानेवाला खुलासा हुआ है। इस पूरे मामले में जो माहौल खराब हुआ है और सरकार को बदनाम करने की जो कोशिश चल रही है इसमें मीडिया के लोगों की भी भूमिका बड़ी अहम है। इसके साथ ही कई ऐसे नेता भी हैं जो पीड़िता के परिवार से इस बात को कहते ऑडियो में सुने गए कि ऐसा बयान परिवार की तरफ से दिया जाए कि वह प्रदेश सरकार के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। एक साथ हाथरस मामले में कई ऑडियो और वीडियो क्लिप वायरल हो गए हैं जिसने इस पूरे मामले से पर्दा उठा दिया है। ऐसे में हाथरस केस की लीक हुई ऑडियो बातचीत से पता चलता है कि राज्य में भाजपा सरकार की छवि खराब करने के लिए राजनेता और मीडिया इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने की कोशिश कर रहे हैं।

इस पूरे मामले को कैसे सियासी रंग दिया गया इसको लेकर जानकारी अब धीरे-धीरे निकलकर सामने आ रही है। पीड़िता को दलित होने के साथ उनके साथ जो आरोपी है वह सवर्ण हैं यह पूरी मीडिया और विपक्षी दलों को उनके फायदे का सौदा लगा। फिर मीडिया और राजनीतिक दल ने इस पूरी घटना को हाथों हाथ लिया। गैंगरेप की बात को इस पूरे मामले में शामिल किया गया जबकि मेडिकल, फॉरेंसिक और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस पूरी बात की कहीं भी पुष्टि नहीं हुई। वहीं मृत लड़की के जीभ काटे जाने और आंख फोड़े जाने की बात भी फैलाई गई जो पूरी तरह से झूठ निकली इसकी भी पुष्टि कहीं इन रिपोर्ट्स में नहीं हो पाई।

ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि इस पूरे मामले पर इतना राजनीतिक और मीडिया बवाल क्यों? क्या हाथरस मामले में दंगे की साजिश रची जा रही थी? क्या विपक्ष का विरोध दिखावा था? क्या हाथरस के बहाने यूपी में दंगा भड़काने की साजिश थी? आखिर विपक्ष के विरोध के पीछे का सच क्या है? ऐसे तमाम सवाल उठ रहे हैं। यूपी में हाथरस की घटना के बाद से लेकर अब तक हुए घटनाक्रम को लेकर। दरअसल हाथरस में जिस तरह से घटना घटी, उसके बाद बयानों में बदलाव के समीकरण और ऑडियो लीक होने के बाद जो तस्वीर सामने आई, वो कुछ और कहानी बयां कर रही है।

हाथरस पीड़िता की मां ने कैमरे के सामने जो बयान दिया था उसने कई राजनीतिक दलों के झूठ की पोल खोल दी…

लेकिन अब जिस तरह से मीडिया रिपोर्ट में खुलासा हो रहा है वह बेहद चौंकानेवाला है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो हाथरस में हुई घटना कुछ ही हफ्तों में हत्या के प्रयास से कथित सामुहित दुष्कर्म के मामले में तब्दील हो गया। 14 सितंबर को हुई इस घटना में मृतक के भाई ने जो पुलिस में शिकायत दी थी उसमें सिर्फ हत्या के प्रयास का ही जिक्र था। इसके बाद पांच दिन तक पूरा मामला इसी के इर्द-गिर्द घूमता रहा। लेकिन अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में जब उस युवती का इलाज चल रहा था तो उससे कुछ नेता मिलने आए और फिर घटनाक्रम में पहला मोड़ 19 सितंबर को देखनो को मिला। उस युवती का बयान लेने जब पुलिस पहुंची तो उसने हत्या की कोशिश के साथ आरोपित युवक पर छेड़खानी का भी आरोप लगा दिया। इसके बाद क्या था माहौल गरम हुआ और राजनीतिक दल जिसकी फिराक में थे वह मुद्दा उनको मिल गया। नेताओं की आवाजाही पीड़िता के पास बढ़ गई। इसके बाद तीन और दिन गुजरे और 22 सितंबर को पीड़िता से जब पुलिस ने बयान लिया तो इसमें उसने दुष्कर्म की बात भी कही और गांव के ही तीन और आरोपियों के नाम भी बता दिए। इस पूरे मामले पर जब यह घटना हुई तो युवती को हाथरस के बागला जिला अस्पताल ले जाया गया था जहां उसकी मां ने इसे सामान्य झगड़ा बताते हुए गांव के संदीप पर गला दबाने का आरोप लगाया था यह बयान लड़की के भाई का भी था। लड़की की मां ने तो कैमरे के सामने यह बात कही कि यह पूरा मामला आपसी रंजीश का है और इसकी वजह ये घटना घटी। पीड़िता की मां और भाई दोनों ने एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला भी दर्ज कराया था। इसके बाद मेडिकल और फॉरेंसिक जांच में भी इस बात की पुष्टि हो गई थी कि उसके साथ दुष्कर्म नहीं हुआ है।

इस बीच प्रदेश के एक कांग्रेस नेता का वीडियो भी वायरल हो गया जिसमें वह लड़की को परिजन से मिलने के बाद कह रहे हैं कि ‘हमारी बेटी ने अपना सम्मान तो बचा लिया लेकिन, पापियों ने उसकी जुबान काट दी, गर्दन की व रीढ़ की हड़्डी तोड़ दी।’ अब राजनीतिक दलों का इस पूरे प्रकरण को हाथों हाथ लेना उनके फायदे का सौदा था सो उन्होंने किया। फिर इस पूरे मामले में जातीय रंग डालकर दलित वर्सेस सवर्ण बनाया गया ताकि मीडिया भी इस पर सही खेल खेल पाए और फिर अंत में इस मामले में जाति आधारित राजनीति के पुरोधा शामिल हुए जिनकी यह कोशिश थी कि मामले को सांप्रदायिक रंग देकर प्रदेश में दंगा भड़काया जाए हालांकि वह इसमें कामयाब इसलिए नहीं हो पाए क्योंकि इस पूरे मामले में सरकार और प्रशासन की सक्रियता ने उनके मंसूबे पर पानी फेर दिया।

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