News Room Post

Twitter: संवैधानिक पद की गरिमा का भी नहीं कर पा रहे सम्मान, विरोध का ऐसा स्तर की राष्ट्रपति को भी करने लगे ट्रोल

Netaji ORiginal Photo VS Presonjit

नई दिल्ली। देश में राजनीतिक पदों और संवैधानिक संस्थाओं का विरोध करते-करते कब संवैधानिक पद तक पहुंच गया किसी को समझ में भी नहीं आया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चुनाव आयोग, आरबीआई, सुप्रीम कोर्ट, सीबीआई जैसी कई संस्थानों और पदों का ऐसा विरोध विपक्षी पार्टी उनके पोषक पत्रकार और वैसी ही मानसिकता वाले लोग करते रहे, तब तक तो मामला ठीक था। लेकिन ये पूरा का पूरा नैरेटिव कब देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों के विरोध तक पहुंच गया किसी को समझ में भी नहीं आया।

पूरा वाकया ये था कि केंद्र सरकार की तरफ से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया गया। इसको लेकर केंद्र सरकार की तरफ से पूरे देश में कार्यक्रम किया गया। कोलकाता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मौके पर विक्टोरिया मेमोरियल में एक कार्यक्रम में शामिल हुए। इसी को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के अवसर पर शनिवार को राष्ट्रपति भवन में उनकी एक पेंटिंग का अनावरण किया। इसके बाद इस पूरे मामले में केंद्र सरकार और खासकर नरेंद्र मोदी का विरोध करनेवाला एक गिरोह सक्रिय हो गया और देश के राष्ट्रपति जो की एक सर्वोच्च संवैधानिक पद है, कोई राजनीतिक पद नहीं उसकी गरिमा को तार-तार करने पर लग गए।

इस गिरोह में टीएमसी और कांग्रेस के कई राजनेता, कई जानेमाने पत्रकार, कई और नामी गिरामी हस्तियां शामिल हो गए और फिर सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ट्रोल करना शुरू कर दिया। इन्होंने राष्ट्रपति द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जिस पेंटिंग का अनावरण किया था उसको बंग्ला फिल्म के अभिनेता प्रोसेनजीत चटर्जी का बताकर ट्रोल करना शुरू कर दिया। अभिनेता प्रोसेनजीत चटर्जी ने एक फिल्म में नेताजी का किरदार निभाया था। राष्ट्रपति के द्वारा जारी किए गए पेंटिंग के साथ इस कलाकार की वह पुरानी तस्वीर लगाकर बताया गया कि उसकी फोटो को राष्ट्रपति भवन में नेताजी की जगह पर लगा दिया गया।

इसको लेकर खुलासा तब हुआ जब नेताजी के पोते चंद्र कुमार बोस ने नेताजी की तस्वीर साझा की। इसमें वह तस्वीर दिख रही है जिसकी पेंटिंग का अनावरण राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया था। लेकिन इससे पहले ही एक गिरोह पूरी तरह से राष्ट्रपति को ट्रोल करने के लिए सक्रिय हो चुका था। वहीं सरकारी सूत्रों की तरफ से भी यह साफ कर दिया गया कि नेताजी की यह तस्वीर एकदम सही है।

इसको लेकर एक ट्वीट भी मिला जिसमें दिखाया गया है कि कैसे एक संवैधानिक पद की गरिमा को तार-तार करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया। ये वही लोग हैं जो नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के बाद से प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के नेताओं, सरकार के मंत्रियों और कई स्वायत्त संस्थाओं को लगातार सोशल मीडिया के जरिए अपने निशाने पर लेते रहे हैं।


लेकिन इस बार जो हुआ वह सच में सोचनीय था। कमजोर रिसर्च के दम पर जिस तरह से भारत के सर्वोच्च पद पर बैठे राष्ट्रपति जो कि एक संवैधानिक पद है जिसकी अपनी गरिमा है। जो किसी भी तरह से राजनीतिक पद नहीं है उसको निशाना बनाया गया, यह देश में पहली बार ही हुआ है। इन लोगों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पेंटिंग में गलतियां ढूंढने का दावा तो किया लेकिन उसको लेकर मजबूत खोज पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद जो कुछ हुआ वह एक सर्वोच्च पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने के अलावा कुछ भी नहीं था।

इन ट्रोलर को जवाब देने के लिए कुछ लोग सामने आए और उन्होंने इन तस्वीरों का असल बताते हुए यह तक लिख दिया कि ऐसे लोग पीएम मोदी और सरकार सहित स्वायत्त संस्थाओं का विरोध करते हुए इतने अंधे हो गए कि इन्हें राष्ट्रपति पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं रहा और इसी का नतीजा है कि इन लोगों ने एक गलत सूचना के आधार पर एक सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को अपना निशाना बनाया।

Exit mobile version