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आखिर क्यों संविधान को कुचला तथाकथित किसानों ने?

Red Fort

कुछ तथाकथित किसानों के नाम पर दिल्ली में अराजकता फैलाकर अराजक तत्वों ने विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की राजधानी को बंधक बनाने की कोशिश की। खुलेआम देश का अपमान किया गया। जहां एक ओर राजपथ पर देश का शौर्य दिखाई दे रहा था, तो दूसरी ओर आंतक फैलाने वाली किसानों के नाम पर आंतकी परेड निकाली गई। किसान आंदोलन के नाम पर फर्जी किसानों ने भारतीय लोकतंत्र को पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया। ट्रैक्टर परेड के नाम पर भारतीय संविधान को कुचलने की कोशिश की गई, क्यों दिल्ली पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों को कुचलने की कोशिश की गई? किसानों को ढाल बनाकर देश के गद्दारों ने दिल्ली में आंतक मचा दिया। भारत एक लोकतांत्रिक देश है इसलिए भारत के संविधान की रक्षा करना देश के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। लेकिन 26 जनवरी 2021 को लालकिले की प्राचीर में कुछ किसानों के नाम पर आए उपद्रवी राष्ट्रीय ध्वज को हटाकर अपना निशान साहिब का झंडा लगाकर क्या साबित करना चाहते थे? ऐसे में सवाल उठता है कि दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई शर्तों की अनुमति का किसानों ने पालन किया क्या? नहीं किया तो क्या उन तथाकथित किसान नेता जो किसान होने का मात्र ढोंग करते हैं, उनके उपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए?

देश से गद्दारी करने वाले ये किसान नहीं हो सकते हैं। ये इत्तेफाक भी नहीं हो सकता है कि किसान आंदोलन को कुछ राजनीतिक ठेकेदारों ने सियासी दुकान चमकाने का केंद्र बना लिया और किसानों को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने लगे। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी समेत कांग्रेस नेताओं द्वारा इस आंदोलन की आड़ में अपनी छाती पीट-पीटकर हाय-तौबा मचाते रहे। पूरे विपक्ष ने एक सुर में इस आंदोलन को राजनीतिक मुद्दा बना दिया और खूब बकवास करने लगे।

क्या दिल्ली के वाईफाई मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जो दिल्ली बॉर्डर पर रह रहे किसानों को वाईफाई और उनकी जरुरत की वस्तुएं मुहैया करवा रहे थे? अगर हां तो आज जब दिल्ली के जान माल का नुकसान हो रहा था तो वो कहां व्यस्त थे?

संवैधानिक ढंग से ट्रैक्टर परेड करने के लिए किसानों को क्यों नहीं ट्वीट किया, आखिर क्यों दिल्ली जलनी शुरु हो गई तो केजरी बाबू खामोश थे? क्या उनको केवल और केवल राजनीति करना ही पसंद है, वो भी ओछी राजनीति, जिसके न हाथ होते हैं और न पैर होते हैं।

क्योंकि केजरीवाल को तो केवल वोट चाहिए और उसके लिए वह अपने बच्चों तक की कसम खा लेते हैं। क्योंकि पंजाब में 2014 के लोकसभा चुनाव के समय जरनैल सिंह भिंडरावाला की समाधि पर जाकर पुष्प चढ़ाते हैं, जिससे वो खालिस्तानियों के नेता बनकर उनको वहां 4 लोकसभा सीटें और आगामी विधानसभा चुनाव में 20 विधायक पाने का सौभाग्य मिल गया था। इसको ध्यान में रखते हुए 2022 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल खालिस्तानियों के सबसे बड़े हीरो बन गए हैं।

क्योंकि सालभर के अंदर दिल्ली ने दो दंगों को झेला है, जिसमें माननीय केजरीवाल के तथाकथित पार्टियों के नेता शामिल हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पंजाब से चलने वाले इस आंदोलन में आम आदमी पार्टी पंजाब और कांग्रेस पार्टी के नेताओं की सह पर सबकुछ हो गया है। आखिर ये लोग क्यों भारतीय संविधान के दुश्मन बने हुए हैं? इसका जवाब विपक्ष को मीडिया के सामने आकर देना चाहिए।

(लेख के लेखक ललित कौशिक पेशे से पत्रकार हैं और इसमें व्यक्त विचार इनके निजी हैं)

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