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Opposition Meeting: सीटों के बंटवारे पर ही टिकी है विपक्षी एकता की नींव, अगर समझौता न हुआ तो बीजेपी से पार पाना होगा मुश्किल!

akhilesh stalin mamata kejriwal

नई दिल्ली। विपक्षी दलों की आज से बेंगलुरु में 2 दिन की बैठक है। केंद्र की सत्ता पर लगातार 2 बार से काबिज बीजेपी और खासकर पीएम पद से नरेंद्र मोदी को हटाना इनका फिलहाल एकमात्र एजेंडा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि मोदी के नेतृत्व में केंद्र की बीजेपी सरकार के दौर में हालात खराब हुए हैं। इसके अलावा विपक्षी दल लगातार आम जनता को होने वाली दिक्कतों, संवैधानिक संस्थाओं पर हमले जैसे आरोप भी लगाते हैं। पटना में बीते दिनों विपक्षी दलों ने पहली बैठक की थी। अब वे बेंगलुरु में जुट रहे हैं। इस बार ज्यादा विपक्षी दल यहां दिखने वाले हैं।

विपक्षी दलों के एजेंडे से पहले ये बताते हैं कि इस बार बेंगलुरु की बैठक में कौन-कौन से नए दल साथ दिखेंगे। अभी तक की जानकारी के मुताबिक एमडीएमके, केडीएमके, वीसीके, आरएसपी, फॉरवर्ड ब्लॉक, आईयूएमएल, केरल कांग्रेस (जोसेफ) और केरल कांग्रेस (मणि) के नेता भी बेंगलुरु बैठक में हिस्सा लेंगे। इनके अलावा अपना दल (कमेरावादी और एमएमके के भी विपक्ष की बैठक में हिस्सा लेने की उम्मीद है। इनमें से ज्यादातर दल दक्षिण भारत के हैं। साथ ही दलों की लोकसभा में एक या दो सीट तक ही प्रतिनिधित्व है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि बड़े दलों के साथ ये छोटे दल क्या लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें हासिल कर सकेंगे?

सबसे अहम सवाल राज्यों में सीटों के बंटवारे पर है। उदाहरण के तौर पर यूपी में अखिलेश यादव की सपा, बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी, तमिलनाडु में स्टालिन की डीएमके और केरल में वामदलों को बड़ा क्षेत्रीय दल माना जाता है। पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकारों पर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) काबिज है। महाराष्ट्र में एनसीपी बड़ी क्षेत्रीय पार्टी है। उद्धव ठाकरे भी यहां ताल ठोकते हैं। इन सभी राज्यों में कांग्रेस और अन्य दलों की हालत न के बराबर है। बड़ा सवाल ये है कि ये सभी क्षेत्रीय दल क्या अपने प्रभाव वाले राज्यों में अपनी सीटें कांग्रेस या बाकी विपक्षी दलों के लिए छोड़ देंगे? इस सवाल का जवाब ही तय करेगा कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी दलों का गठबंधन कितना सफल रहेगा। क्योंकि अगर ऐसा न हुआ, तो लोकसभा में बीजेपी के खिलाफ फिर एक सीट पर कई उम्मीदवार होंगे और ऐसे में वोट बंटने का नुकसान विपक्षी दलों को उठाना पड़ेगा।

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