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2014 के बाद विपक्ष से इन 7 राज्यों में भाजपा ने छिन ली सत्ता, मोदी-शाह की जोड़ी ने किया कमाल

नई दिल्ली। 2014 में केंद्र मों नरेंद्र मोदी की सरकार ने सत्ता संभाली तो भाजपा की कमान अमित शाह के हाथों में सौंप दी गई। अमित शाह इससे पहले उत्तर प्रदेश में संसदीय चुनाव के प्रभारी थे। जहां 80 में से 72 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद अपनी शाह की कउसल रणनीति की बदौलत एक समय ऐसा आया कि देश के लगभग 70 प्रतिशत हिस्से पर भाजपा ने सत्ता अपने नाम कर ली। हालांकि 2019 के आते-आते इस संख्या में गिरावट भी आनी शुरू हुई। हिंदी पट्टी के कई राज्यों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा लेकिन फिर इन्हीं राज्यों में सत्ता एक बार फिर से भाजपा की तरफ आती नजर आई।

2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से भाजपा ने पलटकर कभी पीछे नहीं देखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने हर मुश्किल को मौके में बदला और सात राज्यों में विपक्ष से छीनकर सरकार बनाई।

अरुणाचल प्रदेश पहले पार्टी टूटी फिर सीएम हो गए भाजपा में शामिल

37 वर्षीय पेमा खांडू ने 17 जुलाई, 2016 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तब वे कांग्रेस में थे। पार्टी के पास 60-सदस्यों वाली विधानसभा में 47 विधायक थे। दो महीने बाद खांडू समेत 43 विधायकों ने क्षेत्रीय पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) की सदस्यता ले ली जो भाजपा के नेतृत्व वाली नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एऩईडीए) का सदस्य थी। 29 दिसंबर 2016 को पीपीए ने भी खांडू को सस्पेंड कर दिया। एक दिन बाद खांडू 33 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने पूर्वोत्तर में 12 साल बाद दूसरी नॉन-इलेक्टेड सरकार बनाई। वहीं 2019 के विधानसभा चुनावों में पेमा खांडू के नेतृत्व में भाजपा ने 60 में से 41 सीटें जीतकर अपनी सरकार बनाई।

बिहार पहले रार फिर बनी गठबंधन की सरकार

2014 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले जून 2013 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ नाता तोड़ दिया था। आपत्ति भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की ताजपोशी से थी। 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश ने लालू प्रसाद यादव के आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और भाजपा को शिकस्त दी। लेकिन यह महागठबंधन ज्यादा चला नहीं। 20 माह में यानी जुलाई 2017 में नीतीश फिर भाजपा के साथ लौट गए।

नीतीश ने महागठबंधन तोड़ने के बाद कहा था कि मौजूदा परिस्थितियों में जब डिप्टी सीएम और लालू के बेटे तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं तो उनके साथ मिलकर सरकार चलाना मुश्किल हो रहा है। इस सरकार को बनाने में मोदी-शाह की जोड़ी न केवल सक्रिय रही बल्कि मोदी ने ही बिहार में नीतीश के साथ जाने के फैसले को आगे बढ़ाया। मोदी ने लिखा- भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारे प्रयासों में शामिल होने पर नीतीश कुमार को बहुत बधाई।

गोवा सोच में डूबी कांग्रेस नींदे से जागी तो हो चुका था सरकार गठन 

40 सीटों वाली गोवा विधानसभा के चुनाव में किसी को भी बहुमत नहीं मिला था। कांग्रेस ने 17 और भाजपा ने 13 सीटें जीती थी। ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस की ही सरकार बनेगी। लेकिन हुआ इसका उलट। तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने रातोंरात ऐसी रणनीति बनाई कि रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को राज्य में मुख्यमंत्री के तौर पर भेज दिया। इससे छोटी पार्टियां और निर्दलीय साथ आ गए और भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया।

2019 में रही-सही कसर मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कांग्रेस को जोर का झटका जोर से दिया। जब कांग्रेस के 10 विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें सरकार में शामिल किया गया और अब गोवा में 27 विधायकों के साथ पार्टी अपने दम पर बहुमत में है।

मणिपुर भाजपा के साथ आई छोटी पार्टियां तो कांग्रेस के अरमानों पर फिर गया पानी

पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में भी गोवा को दोहराया गया। कांग्रेस को 60 में से 28 सीटें मिली थी और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। भाजपा को 21, नागा पीपुल्स फ्रंट को 4 और बाकी सीटें अन्य दलों को मिली थी। मणिपुर में कांग्रेस बड़ी पार्टी थी, लेकिन यहां भी बीजेपी ने दूसरी छोटी पार्टियों से गठबंधन करके कांग्रेस को सरकार बनाने से रोका। 2016 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा से जुड़े पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया।

मेघालय में सिर्फ मिली सिर्फ 2 लेकिन सदन में पाई सत्ता

केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी को 60 सदस्यों वाली मेघालय विधानसभा में महज 2 सीट मिली। लग रहा था कि राज्य में 21 सीट हासिल करने वाली कांग्रेस अपनी सरकार बना लेगी। लेकिन मोदी-शाह के नेतृत्व में भाजपा के चतुर रणनीतिकारों ने पासा ही पलट दिया। 60 सदस्यीय मेघालय विधानसभा चुनाव में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) 19, बीजेपी 2, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी) 6, एचएसपीडीपी 2, पीडीएफ 4 और 1 निर्दलीय के साथ आने से इस गठबंधन के पास 34 विधायकों का समर्थन हो गया है।

वहीं सबसे ज्यादा 21 सीट जीतकर राज्य में सबसे बड़ी एकल पार्टी रही कांग्रेस बहुमत से महज 10 सीट दूर रही और फिर से सरकार बनाने की उसकी योजना नाकाम हो गई। इससे पूर्व लोकसभा स्पीकर पीए संगमा के बेटे कोनराड मुख्यमंत्री बन गए।

कर्नाटक में कांग्रेस गठबंधन ने भाजपा को रोक तो लिया लेकिन ज्यादा समय तक नहीं

2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भाजपा 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। लेकिन उसके लिए सात विधायकों का समर्थन जुटाना भारी पड़ा। बीएस येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ गया। तब भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस (78) और जेडीएस (40) ने गठबंधन किया और कुमारस्वामी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी। जुलाई में भाजपा ने राज्य में ऑपरेशन लोटस चलाया और फिर सत्ता में आ गई।

भाजपा के ऑपरेशन में फंसकर कांग्रेस व जेडीएस के 17 विधायकों ने इस्तीफे दिए। भाजपा में शामिल हो गए। जुलाई 2019 में कुमारस्वामी सरकार गिर गई। बाद में बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनीं।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस को झटका, सिंधिया भाजपा में आए, कमलनाथ के पंजे से सत्ता खिसकी

मध्य प्रदेश में 2018 के चुनावों में 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन भाजपा भी बहुत ज्यादा पीछे नहीं थी। ऐसे में युवा कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजी का भाजपा ने फायदा उठाया।

सिंधिया के समर्थक 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी और भाजपा के साथ आकर सरकार बनाई। सिंधिया खुद भाजपा की सीट पर राज्यसभा पहुंच चुके हैं। हालांकि, उपचुनाव शेष हैं और कांग्रेस यदि सभी सीटें जीत लेती हैं तो उसकी वापसी संभव है।

राजस्थान में भी कुछ यही हाल जारी है जिस तरह की अंदरूनी सियासी उठापटक कांग्रेस के अंदर जारी है उसका फायदा सीधे-सीधे भाजपा को होता नजर आ रहा है। वहीं महाराष्ट्र में भी सरकार के गठन के बाद से ही अनिश्चितता के बादल चाए हुए हैं। भले ही शिवसेना महाविकास अघाड़ी में शामिल होकर सरकार चला रही हो लेकिन आए दिन पार्टी की तरफ से जारी बयान बता रहे हैं कि यहां भी भाजपा का दबाब सत्ता पर बढ़ता जा रहा है।

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