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गलवान की घटना पर बवाल, सेना से सवाल, इतिहास की गलतियों से अपने को बचाने के लिए कांग्रेस का कमाल!

नई दिल्ली। भारत-चीन के बीच सीमा विवाद कोई नई बात नहीं है। स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों की बोई फसल को आज हिंदुस्तान काटने पर मजबूर है जिस तरह से दोनों देशों की सीमा का बंटवारा हुआ उसमें भारत तो शांतिपूर्ण तरीके से उसका समझौता करता आया, लेकिन घुसपैठ की आदत से मजबूर चीन कहां सुधरने वाला है। भारत ही नहीं दुनिया के 24 देशों के साथ चीन का सीमा विवाद चल रहा है। वह हर देश की जमीन पर अपना दावा करता रहता है। यहां तक तो समझ में आता है। लेकिन ड्रैगन तो समुद्र के पानी पर भी अपना दावा करने से नहीं बाज आता। अब भारत के साथ जो तनातनी की स्थिति बनी है वह चीन के उसी घुसपैठ वाले रवैये को रोकने के चक्कर में बनी है। भारत के 20 जवान 15 जून को गलवान घाटी में हुई घटना में शहीद हो गए। इस शहादत के बाद से ही पूरे देश में आक्रोश का माहौल है।

इस भिड़ंत में चीनी सेना को काफी नुकसान हुआ उसके जवान बड़ी संख्या में हताहत हुए। ऐसे मौके पर आज पूरा देश भारतीय सेना के साथ खड़ा है लेकिन कांग्रेस पार्टी ऐसे वक्त में भी देश के प्रधानमंत्री और देश की सेना को बदनाम करने का एक भी मौका नहीं छोड़ रही है। जब भी भारत और चीन के बीच संघर्ष देखने को मिलता है कांग्रेस पार्टी चीन की भाषा बोलने लग जाती है। चाहे मामला डोकलाम का हो या फिर हाल ही में घटित हुई गलवान घाटी की घटना का। कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो सोशल मीडिया के जरिए तीन से चार बार हर रोज भारतीय सेना और सरकार से सवाल पूछ ही रहे हैं, पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता भी राहुल के सुर में सुर मिलाते नजर आ रहे हैं। राजनीति में बयानबाजी जरूरी है इससे परहेज होना भी नहीं चाहिए और फिर देश की सुरक्षा का मामला हो तो विपक्ष की जिम्मेदारी भी बनती है कि वह सरकार से सवाल पूछे लेकिन वह इस सब में सेना को कटघरे में खड़ा कर दे यह राजनीति नहीं हो सकती।

राहुल गांधी और शेष बची कांग्रेस को पता ही नहीं चल पा रहा है कि वह देश का विरोध कर रहे हैं, सेना का विरोध कर रहे हैं या भाजपा का। बयानों की ऐसी अंधी दौड़ शुरू हुई है कि देश की सुरक्षा के मामले पर भी सेना के साथ कांग्रेस तो कम से कम कहीं खड़ी नजर नहीं आ रही। जबकि बाकि का पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा है।

इसके पीछे की वजह भी है। जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री रहते हुए 1962 की चीन के साथ लड़ाई को पूरा देश नहीं भूला है। जब इसी कांग्रेस के शासनकाल में अक्साई चीन(37,244 वर्ग किलोमीटर) भूभाग पर चीन ने कब्जा कर लिया। जिसको पाने की कवायद नरेंद् मोदी सरकार में तेज की गई। यूपीए के शासनकाल में ही 2008 तक चुमूर इलाके में चीनी सेना ने डेमजोक में जोरावर किले को नष्ट कर दिया और 2012 के आते-आते यहां पीएलए का ऑब्जर्विंग प्वाइंट बनाया गया। साथ ही यहां घरों का निर्माण कर चीनी कॉलोनी भी बसा दी गई। इसी यूपीए शासनकाल के दौरान भारत ने 2008-09 में डेमजोक और डूंगती के बीच डूम चेली(द एंशिएट प्वाइंट) तक गंवा दिया। आप कांग्रेस शासन में चीन के साथ निभाई गई दरियादिली को इस बात से समझ सकते हैं कि इसी साल 11 मार्च को लोकसभा में दिए जवाब में विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने बताया था कि चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार स्क्वायर किमी के हिस्से पर अपनी दावेदारी करता है। जबकि, लद्दाख का करीब 38 हजार स्क्वायर किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है। इसके अलावा 2 मार्च 1963 को चीन-पाकिस्तान के बीच हुए एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने पीओके का 5 हजार 180 स्क्वायर किमी चीन को दे दिया था। माना जाए तो अभी जितने भारतीय हिस्से पर चीन का कब्जा है, उतना एरिया स्विट्जरलैंड का भी नहीं है। कुल मिलाकर चीन ने भारत के 43 हजार 180 स्क्वायर किमी पर कब्जा जमा रखा है, जबकि स्विट्जरलैंड का एरिया 41 हजार 285 स्क्वायर किमी है।

अब एक बार कांग्रेस के द्वारा की गई ऐतिहासिक गलती पर भी तो नजर डाल ली जाए जिससे पता चल सके कि राहुल गांधी का ज्ञान अपनी पार्टी और चीन के संबंधों के बारे में कितना है। हालांकि ये बताने की वैसी जरूरत है नहीं फिर भी बता दें कि जब भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद चल रहा था तो राहुल गांधी और पूरा वाड्रा परिवार बिजिंग में छुट्टियां मना रहे थे वहां के राजनयिकों से मिल रहे थे। इस बात को तब दबाने की कोशिश भी खूब हुई लेकिन जब चीनी सरकार की वेबसाइट के जरिए तस्वीरें सामने आई तो कांग्रेस को कुछ बोलते ही नहीं बना। वहीं आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि यूपीए-2 के समय ऐसा पहली बार हुआ कि पहले किसी पार्टी के अध्यक्ष का चीन दौरा हुआ हो वह भी सपरिवार और उसके बाद देश के प्रधानमंत्री उस देश का दौरा करने गए हों। यह तब हुआ जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और सोनिया गांधी अपने पूरे परिवार के साथ चीन पहुंची थीं और वहां एक और विचित्र बात हुई थी कि दो देशों के बीच नहीं दो पार्टियों के बीच एमओयू साईन किए गए थे। मतलब कांग्रेस पार्टी ने तब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) पर हस्ताक्षर किए थे। कितनी विचित्र सी बात है ना। लेकिन इस बात को कांग्रेस क्यों बताना चाहेगी। आखिर इन दो पार्टियों के बीच एमओयू में ऐसा क्या था जिसे बताने से कांग्रेस अबतक डर रही है।

अब जरा आते हैं आजादी के बाद से अबतक सबसे ज्यादा समय तक सत्ता के केंद्र में रही कांग्रेस पार्टी के चीन प्रेम की बात पर। ऐसा नहीं है पूर्व में कांग्रेस की सरकारों का चीन प्रेम कम रहा है। यह तो नेहरू के समय से ही जारी है। भारत से 2 साल बाद आजाद होनेवाला चीन पहले से ही ऐसा रहा है। लेकिन नेहरू चीन की नियत नहीं भांप पाए। भारत तब से हमेशा चीन के साथ खड़ा रहा। एक दस्तावेज की मानें तो भारत जापान के साथ एक वार्ता में हिस्सा लेने के लिए इसलिए नहीं गया क्योंकि वहां चीन को आमंत्रित नहीं किया गया था। कई दावे ऐसे भी हैं जिसमें कहा गया है कि चीन को संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता भी नेहरू जी की कृपा की वजह से प्राप्त हुई। जबकि यह जगह भारत के लिए पहले से तय थी। लेकिन कांग्रेस इसको मानने से हमेशा इनकार करती है। कहते हैं इससे पहले सरदार पटेल इस चीन की कपटी चाल को भांप गए थे और उन्होंने नेहरू को पत्र लिखकर इस बात का संकेत भी दिया था। उन्होंने पत्र में साफ लिखा था कि हमें ध्यान रखना चाहिए की तिब्बत के गायब होने के बाद अब चीन हमारे दरवाजे तक पहुंच गया है।

1959 में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद, नेहरू ने फारवर्ड पॉलिसी लागू करने का मन बनाया। सेना को आदेश दिए गए कि चीनी सैनिकों को विवादित जमीन से बेदखल किया जाए। बिना जमीनी हालात का अंदाजा लगाए हुए इस फैसले से भारत को तगड़ा नुकसान झेलना पड़ा। चीन ने हमारे कई इलाकों पर कब्‍जा कर लिया। भारत ने सैनिकों को गंवाया, वो अलग। इसको लेकर ऑस्ट्रेलिया के पत्रकार मैक्स नेविल ने एक किताब इंडियाज चाइना वार लिखी और इस किताब में इससे जुड़े कई सारे दावे किए गए।

अब बात राहुल गांधी की, पता होगा कि पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वह कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए थे। नेपाल के रास्ते चीन में उन्होंने प्रवेश किया था। वहां वह चीन के कई अधिकारियों से मिले थे। उनमें से कुछ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के वरिष्ठ नेता भी थे जिनसे उनकी मुलाकात हुई थी। राहुल गांधी को तब एयरपोर्ट पर विदाई देने के लिए चीनी दूतावास के अधिकारी के पहुंचने की खबर भी आई थी। राहुल गांधी को जब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था तो चीन की तरफ से उन्हें बधाई संदेश तक भेजा गया था।

ऐसी और भी कई घटना है जिससे साफ पता चलता है कि चीन की बात आते ही कैसे कांग्रेस पार्टी मुखर होकर राजनीति करते-करते सेना को भी इसमें घसीटने से बाज नहीं आती है।

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