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भारत-चीन सीमा विवाद पर सरकार से सवाल पूछने वाली कांग्रेस को भी कुछ वाजिब सवालों का जवाब ढूंढ लेना चाहिए!

नई दिल्ली। लद्दाख के गलवान घाटी में चीन की सेना के साथ हुई झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए। इस शहादत के बाद से ही पूरे देश में आक्रोश है। इस झड़प में चीन को काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। चीन हालांकि अपने नुकसान को लेकर कुछ खुलासा नहीं कर रहा लेकिन दुनिया भर की मीडिया से प्राप्त खबरों की मानें तो इस झड़प में चीन के 43 से ज्यादा सैनिक मारे गए। ऐसे मौके पर जहां पूरा देश सेना और सरकार के साथ खड़ा है वहीं कांग्रेस पार्टी और उनके नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश की सेना को बदनाम करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रही है। जब भी भारत और चीन के बीच संघर्ष की स्थिति देखने को मिलती है। कांग्रेस पार्टी को चीन के पक्ष में बयान देते या फिर सुरक्षा मामलों पर सेना और सरकार विरोधी बयान जारी कर चीन को खुश करते देखा जा सकता है। ये ऐसा पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस ऐसा कर रही है इस तरह का रवैया पार्टी का पहले भी रहा है।

भारतीय सेना के पराक्रम को पूरी दुनिया सलाम कर रही है। पीएम मोदी के कुशल नेतृत्व में सबका विश्वास बढ़ा है। लेकिन कांग्रेस का भरोसा ना तो पहले इनदोनों ही चीजों में था ना अब है ऐसा प्रतीत होता है।

पिछले कुछ वर्षों में, पूर्वी लद्दाख में कुछ संवेदनशील क्षेत्रों में अक्सर चीन और भारतीय सेना का आमना-सामना हुआ है। यह वर्तमान में भारत की तरफ से सीमा तक बनाए जा रहे बेहतर बुनियादी ढांचे के कारण और हमारे सीमा गश्त में सुधार और वहां लगातार की गई सुरक्षा वृद्धि का परिणाम रहा है। क्योंकि चीन की तरफ से यह सब हजम कर पाना थोड़ा ज्यादा मुश्किल है।

बार-बार सीमा पर भारतीय और चीनी सेना का फेसऑफ किसी भी प्रकार से भारतीय सेना की कमजोरी या खराब होते रिश्तों का संकेत नहीं है। लेकिन हां यह इस बात का संकेत जरूर दे रहा है कि भारतीय सेना बेहतर और सधे तरीके से अब सीमा की निगरानी को लेकर काम कर रही है। इसी का नतीजा है कि चीन को बार-बार इससे परेशानी हो रही है। पीएलए की किसी भी गतिविधी पर अब भारतीय सेना की सीधी नजर है। किसी भी विषम परिस्थिति चीनी सेना को भारतीय सेना की तरफ से बराबर का जवाब दिया जा रहा है। जैसे-जैसे हम सीमा पर तेज गति से विकास करेंगे, नई सड़कें, पुल का निर्माण तेजी से कर यहां तक अपनी पहुंच सुगम बनाएंगे। चीन के पेट में तेज दर्द होगा और इस तरह की स्थितियां बनेंगी। जिसमें दोनों देशों की सेना बार-बार आमने-सामने होंगी।

इस बात को समझने के लिए आपको थोड़ा 2014 के जुलाई महीने में लौटना होगा। जब मोदी सरकार की तरफ से बीआरओ को आदेशित किया गया कि LAC पर पहुंच बनाने के लिए 100 किलोमीटर के सड़क के निर्माण के काम को पूरा किया जाए। सरकार ने इन फैसलों में पूर्व की सरकारों में चल रही अफसरशाही और अन्य विभागीय अड़चनों को समाप्त कर दिया और बीआरओ को ढेर सारे अदिकार दिए गए। कई विभागीय कार्रवाई जो लंबे समय तक अटकी पड़ी रहती थी उसका फटाफट निपटारा करने का निर्देश दिया गया और सरकार के इस फैसले के बाद से तेजी से वास्तविक नियंत्रण रेखा तक सड़क के निर्माण कार्य में तेजी लाई गई।

इसके बाद सरकार के इस तरह के प्रयास को गृहमंत्रालय ने सीमा सुरक्षा से जुड़े अन्य एजेंसियों के लिए भी बढ़ा दिए। सरकार की तरफ से हर सुरक्षा एजेंसी को उनके द्वारा सीमा प्रबंधन में आ रही बाधाओं के बारे में बताने को कहा गया और तमाम अड़चनों को दूर कर इस दिशा में तेजी से काम को बढ़ाया जाने लगा। चीन और भारत की सीमा जहां-जहां मिलती है सभी जगह तेजी से इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में तेजी लाई गई।

लगातार और सतत काम करके रिकॉर्ड समय में कई सड़कों के निर्माण कार्य को पूरा किया गया और कई पर तेजी से काम जारी है। ऐसे में चीन को यह समझ में आ गया कि जिन निर्जन इलाकों में भारतीय सेना की पहुंच बेहतर नहीं थी उसकी पकड़ उन इलाकों में बढ़ रही है जिस को पचा पाना चीन के लिए थोड़ा ज्यादा मुश्किल होने लगा।

जबकि इसके उलट यूपीए के कार्यकाल में लगातार ऐसी परियोजनाओं को गति नहीं दी गई बल्कि उसे अटकाया भटकाया जाता रहा। यूपीए के 2004 से 14 तक कार्यकाल में तीन पर्यावरण मंत्री रहे। जयराम रमेश, जयंती नटराजन और तब के तत्कालिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जिनके पास भी यह विबाग रहा। लेकिन इन तीनों की तरफ से इन परियोजनाओं को पास सर्टिफिकेट देने का काम ही नहीं हो पाया। फाइल के बढ़ने की गति इतनी धीमी थी कि 2014 तक इसमें कुछ खास प्रगति नहीं हो पाई। यूपीए सरकार में तब के तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने भी इस बारे में संसद में जवाब दिया था कि हां कई परियोजनाओं को पूरा करने की गति बेहद धीमी है। कई विभागों की तरफ से इस पर ध्यान ना देना ही इसकी सबसे बड़ी वजह रही थी। आपको बता दें के यूपीए के इस 10 साल के कार्यकाल में पीएम मनमोहन सिंह के पास खुद आधे समय तक पर्यावरण मंत्रालय रहा था।

वहीं मोदी सरकार के आने के बाद बीआरओ के डीजी को इस मामले में कई बड़े अधिकार दिए गए। इससे पहले ऐसी हर मंजूरी के लिए रक्षा मंत्रालय के पास आना पड़ता था। 66 ऐसी सड़क परियोजनाएं जो सीधे भारत-चीन सीमा तक जाती थी जिनके निर्माण कार्य की गति बेहद धीमी थी उसको तेज करने पर बल दिया गया। इसके साथ ही सीमा सड़क संगठन(BRO)के मुख्य अभियंता स्तर तक के अधिकारियों के अधिकार के दायरे को बढ़ाया गया ताकि काम की गति में तेजी आ सके। फंड को लेकर भी कई अधिकार इन अधिकारियों को दिए गए। इसके बाद कई हेवी मशीनरी को एयर लिफ्ट कराकर इन दुर्गम स्थानों तक पहुंचाया गया। सरकार ने 2017- 2020 के बीच बड़े पैमाने पर आधुनिक निर्माण उपकरणों की खरीद जैसे अन्य महत्वपूर्ण कदम भी उठाए। इन निर्माण उपकरण और सामग्री को 2017 से चिनूक हेलिकॉप्टर के जरिए एयरलिफ्ट कराकर सीधे इन दुर्गम स्थलों तक पहुंचाया गया। इसके बाद से ही लगातार इन प्रोजेक्ट्स को रिकॉर्ड समय में पूरा किया जाने लगे।

इस अंतर को आप ऐसे समझ सकते हैं कि 2008 से 2017 के बीच सलाना रोड़ के लिए पहाड़ों की कटाई से लेकर अन्य और कामों की रफ्तार 230 किलोमीट प्रतिवर्ष थी जो 2017-20 के बीच बढ़कर 470 किलोमीटर प्रति वर्ष हो गई। मतलब इस रफ्तार को दोगुना कर दिया गया। वहीं 2008-17 तक हर साल 170 किलोमीटर सरफेसिंग का काम हो पा रहा था जो 2017-2020 में बढ़कर 380 किलोमीटर प्रतिवर्ष हो गया।

2014 तक इन दुर्गम इलाके में 1 टनल का निर्माण कार्य किया जा सका। जबकि 2014 के बाद से अब तक 6 टनल बनाए जा चुके हैं और 19 और टनल पर काम किया जा रहा है। 2008 से 2014 तक 7270 मीटर पुल का निर्माण कार्य इस इलाके में किया गया जबकि 2014 से 20 तक यह रफ्तार दोगुनी दिखी इस दौरान अब तक 14450 मीटर पुल का निर्माण किया जा चुका है। वहीं 2008 से 2014 तक 3610 किलोमीटर कुल सड़कों का निर्माण इस क्षेत्र में किया गया जबकि 2014-20 तक इन दुर्गम इलाकों में 4764 किलोमीट सड़कें बिछाई जा चुकी हैं।

इन उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है भले कांग्रेस इस मामले में सरकार को घेरने की कोशिश कर रही हो लेकिन सरकार ने देश की सीमा को सुरक्षित बनाने के लिए साफ नियत से इन निर्माण कार्यों को किया और जिस तेज गति से इस विकास कार्य को आगे बढ़ाया गया इसी का नतीजा है कि चीन को अपनी घुसपैठ और जमीन कब्जाने वाली मानसिकता में अड़चन आती दिखाई देने लगी। भारत के वैश्विक स्तर पर बढ़ते दबदबे और डोकलाम में चीनी सेना को पीछे हटाने में मिली भारत की सफलता भी उसे नहीं पच रही थी जिसके बाद सीमा पर इस तरह के हालात पैदा हो गए। लेकिन कांग्रेस इन सब चीजों में भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रही है तो जवाब तो कांग्रेस को भी देना बनता है कि देश की सुरक्षा से जुड़े इन मामलों को इतना लटकाया-भटकाया क्यों जाता रहा।

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