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APMC Act: किसानों के आंदोलन से चिंतित दिखनेवाले शरद पवार जब कृषि मंत्री थे तो उनके विचार इस कानून के बारे में जानकर आप चौंक जाएंगे

नई दिल्ली। एक तरफ दिल्ली की सीमा पर चारों तरफ किसान घेरा डालकर बैठे हैं और केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। वहीं किसान नेताओं की तरफ से 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया गया है। ऐसे में किसानों के समर्थन में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस सहित 11 राजनीतिक दल आ गए हैं। किसान नेता इस पूरे आंदोलन को राजनीति से अलग बता रहे हैं लेकिन जिस तरह से इस आंदोलन को राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिल रहा है वह कई सारे सवाल भी खड़े कर रहा है। किसान आंदोलन के समर्थन में एक तरफ जहां राजनीतिक दल अपना वोट बैंक तैयार करने की जुगत में हैं।

वहीं इसी APMC Act को समाप्त करने की वकालत करनेवाले एक समय पर देश के कृषि मंत्री रहे शरद पवार भी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर इस एक्ट को लेकर हमलावर हो गए हैं। इससे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद इस APMC Act को अपनी पार्टी के द्वारा शाषित राज्यों में समाप्त कराने की बात कर चुके हैं। ऐसे में किसी से छिपी हुई बात नहीं है कि किसान भले अपनी जायज मांगों के साथ आंदोलन करने सड़क पर उतरे हों लेकिन विपक्षी पार्टियां का रूख इस आंदोलन को लेकर जिस का रहा है वह कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है।

अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख और पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार का किसान आंदोलन को लेकर जो बयान आया है उसकी मानें तो केंद्र सरकार ने इस कानून को लेकर जल्दबाजी में फैसला लिया। जिसकी वजह से सरकार को इस तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है इसके साथ ही पवार ने कहा कि अगर इस मामले में जल्द को समाधान नहीं निकाला गया तो यह आंदोलन पूरे देश में फैल जाएगा और पूरे देश के किसान इसमें शामिल हो जाएंगे। इसके साथ ही शरद पवार ने कहा कि वह इस मामले को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मिलेंगे।

लेकिन अब शरद पवार द्वारा APMC Act को लेकर 2010 में दिल्ली की तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को लिखा एक पत्र अब वायरल हो रहा है उस समय केंद्रीय कृषि मंत्री की कुर्सी पर शरद पवार थे और उन्होंने शीला दीक्षित के पत्र लिखा था कि देशभर में किसानों की हालत को बेहतर बनाने के लिए APMC Act हटाया जाना जरूरी है। इससे किसानों की हालत बेहतर होगी। अगर किसानों की स्थिति को बेहतर करना है तो इस एक्ट को लागू करना होगा और साथ ही इसको लेकर एक आम राय भी बनानी होगी।

इसके साथ ही शरद पवार ने एक और पत्र 2011 में शीला दीक्षित को एक पत्र फिर से लिखा और इसमें उन्होंने 2010 के पत्र का जिक्र करते हुए लिखा कि जो पत्र आपको APMC Act और निजी क्षेत्र का कृषि क्षेत्र में सम्मिलित करने को लिखा था उसको लेकर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि इसके जरिए ही हम किसानों की हालत में सुधार कर सकते हैं। शरद पवार ने दोनों ही पत्र में APMC Act को ख़त्म करने के साथ ही इस बात का भी जिक्र किया गया था कि निजी क्षेत्र का कृषि में प्रवेश कैसे जरूरी है और इसके जरिए कैसे भारत जैसे कृषि प्रधान देशों में किसानों की हालत को बेहतर किया जा सकता है। इसी तरह का एक पत्र उस समय मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी लिखा गया था।

APMC ACT: कानून जिसको कांग्रेस बनाए तो पवित्र और NDA सरकार बनाए तो किसान विरोधी?
किसान बिल को विरोध में संसद से सड़क तक किसानों ने संघर्ष शुरू किया तो इसपर विपक्षी दल भी राजनीतिक रोटियां सेंकने आ गए। खैर ये तो होना ही था लेकिन ये कैसे हो सकता था कि जिस विधेयक को कांग्रेस अपने घोषणापत्र में डालकर किसानों का हितैषी होने का दंभ भर रही थी जिसके जरिए वह 2019 में सत्ता तक पहुंचने का जुगत भिड़ा रही थी वह NDA यानी नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा विधेयक लाने के साथ ही अपवित्र कैसे हो गई। वही APMC ACT किसान विरोधी कैसे हो गया।

कृषि उपज मंडी एक्ट (APMC) में बदलाव का कांग्रेस पार्टी विरोध कर रही है हालांकि इसका विरोध केवल कांग्रेस ही नहीं कर रही बल्कि एनडीए के कई सहयोगी दल भी इस बिल का विरोध कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस का यह विरोध कर अपने ही जाल में फंसती नजर आ रही है। 2013 में वह दिन भी याद है जब खुद राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी के शासन वाले 12 राज्य अपने यहां फल और सब्जियों को APMC एक्ट से बाहर करेंगे। अब कांग्रेस पार्टी ही APMC एक्ट में बदलाव का विरोध कर रही है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने किसानों के लिए अपनी उपज को APMC मंडी में बेचने की बाध्यता खत्म कर दी तो कांग्रेस को लगने लगा कि यह किसानों के साथ धोखा है। किसानों को फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित रखने के लिए सरकार यह कदम उठा रही है। इससे जमाखोरी और महंगाई बढ़ेगी और किसानों से कांन्ट्रेक्ट खेती के जरिए पूंजीपति लोग उनकी मजबूरी का फायदा उठाएंगे।

चलिए मान लेते हैं ऐसा होगा तो यह बेहद गलत होगा। अन्नदाता सुखी भवः के सिद्धांत पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सभी किसानों को भरोसा दिलाया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था समाप्त नहीं होगी और बनी रहेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि विधेयकों में MSP को लेकर जो दुष्प्रचार किया जा रहा है वह सरासर झूठ है और किसानों के साथ धोखा है, तो फिर विपक्ष इस मामले पर झूठ क्यों फैला रहा है?

इस विधेयक में यह व्यवस्था की गई कि किसान अब जहां चाहे अपनी फसल बेच सकता है। कांग्रेस कह रही है कि इसके पीछे सरकार का मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को खत्म करना है। हालांकि, खुद प्रधानमंत्री मोदी MSP की व्यवस्था को खत्म करने से इनकार कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने APMC एक्ट के बारे में कहा कि कोई भी व्यक्ति अपना उत्पादन, जो भी वो पैदा करता है, दुनिया में कहीं भी बेच सकता है, जहां चाहे, वहां बेच सकता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कपड़ा बनाने वाला जहां चाहे अपना कपड़ा बेच सकता है, बर्तन बनाने वाला, जूते बनाने वाला अपने उत्पाद कहीं भी बेच सकता है, लेकिन किसान भाई-बहनों को इन अधिकारों से वंचित रखा गया, मजबूर किया गया। अब नए प्रावधान लागू होने से किसान अपनी फसल देश के किसी भी बाजार में अपनी मनचाही कीमत पर बेच सकेंगे।

आज कांग्रेस पार्टी APMC एक्ट को लेकर सरकार का विरोध कर रही है लेकिन 2013 में इसका समर्थन कर रही थी। इतना ही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए पेश किए गए घोषणा पत्र में कांग्रेस पार्टी ने APMC एक्ट को खत्म करने की बात कही थी। नरेंद्र मोदी सरकार ने उसी घोषणा को लागू किया तो कांग्रेस ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। यही कुछ कांग्रेस ने जीएसटी लागू करने के समय भी किया था।

इस पूरे मामले पर कांग्रेस की पोल पार्टी से बर्खास्त किए जा चुके नेता संजय झा ने खोलकर रख दी। एक्ट में बदलाव के खिलाफ कांग्रेस के विरोध पर संजय झा जमकर बरसे। संजय झा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में APMC एक्ट को खत्म किए जाने की बात कही थी और मोदी सरकार ने किसान बिल में यही किया है। संजय झा ने कहा है कि इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की एक ही सोच है।

अब ऐसे में यह सोचना जरूरी है कि एक ही कानून जिसको कांग्रेस बनाए तो पवित्र और NDA सरकार ने बनाया तो किसान विरोधी कैसे हो सकती है?

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