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चीन के प्रोफेसर ने किया खुलासा, कोरोना से गलत तरीके से निपटा उनका देश, अगले ही दिन उनकी लैब कर दी गई बंद

वॉशिंगटन। कोरोनावायरस और उसके संक्रमण के फैलाव को लेकर चीन दुनिया भर में सवालों के घेरे में आ गया है। चीन की वुहान लैब पर कोरोना वायरस को बनाने के आरोप लग रहे हैं। जिसके चलते चीनी सरकार लगातार स्पष्टीकरण दे रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति के मुताबिक चीन ने कोरोनावायरस के शुरुआती लक्षणों को दुनिया से छिपाया।

जिसकी वजह से आज करीब 184 देश इस महामारी का भयानक अंजाम भुगत रहे हैं। बता दें अमेरिका का दावा किया है कि चीन न सिर्फ कोरोना संक्रमण से गलत तरीके से निपटा, बल्कि इसकी जानकारी भी छुपाई। व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैले मैकएनानी ने शुक्रवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की चीन से नाराजगी पर सवाल करने पर यह बात कही। उन्होंने कहा कि मैं राष्ट्रपति की चीन से नाराजगी से सहमत हूं।

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चीन का इस बीमारी से निपटने का तरीका गलत था। शंघाई के एक प्रोफेसर ने जब तक वायरस के जेनेटिक सीक्वेंस का खुलासा नहीं किया, तब तक चीन ने इसके बारे में नहीं बताया। इस खुलासे के एक दिन बाद ही चीन ने लैब बंद कर दी, ताकि प्रोफेसर के बयानों को बदला जा सके।

मैकएनानी ने कहा कि चीन ने संक्रमण के इंसान से इंसान में फैलने की जानकारी देने में देरी की। उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को इस बारे में नहीं बताया। इसके साथ ही संक्रमण के बारे में पता करने के लिए अहम समय में अमेरिका के जांचकर्ताओं को वहां जाने की इजाजत नहीं दी। यही कारण है कि हम चीन से नाखुश हैं।

मैकएनानी ने कहा कि अमेरिका को अभी भी चीन से गलत सूचनाएं मिल रही हैं। मौजूदा आकलन से ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति का बयान दूसरे विश्लेषकों के तर्कों से मेल खाता है। कुछ विश्लेषकों का भी यही मानना है कि कोरोना वुहान के लैब में बनाया गया। ट्रम्प ने गुरुवार को कहा था कि वायरस का वुहान इंस्टीटयूट ऑफ बायोलॉजी से कनेक्शन है। हमारे पास इसके सबूत हैं।

उन्होंने कहा कि कोई भी ऐसी जानकारी नहीं है जो चीन अमेरिका तक पहुंचने से रोक सकता है। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण था कि चीन में फैलते संक्रमण के बारे हमें तेजी से जानकारी मिलती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जहां तक डब्ल्यूएचओ की बात है तो उनके कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब मिलना बाकी है।

यही सही है कि अमेरिका चीन की तुलना में डब्ल्यूएचओ को ज्यादा मदद करता है। हर साल हम करीब 400 मिलियन डॉलर (30 हजार करोड़ रुपए) से ज्यादा रकम देते हैं, जबकि चीन सिर्फ 40 मिलियन (300 करोड़ रुपए) की ही मदद करता है। यह साफ है कि इस मामले में डबल्यूएचओ ने चीन के लिए पक्षपात किया। गौरतलब है कि अमेरिका द्वारा WHO की फंडिंग रोके जाने के फैसले पर माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मंशा पर सवाल उठाए थे। इसके साथ ही चीन ने भी विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग रोके जाने पर चिंताएं व्यक्त की थीं।

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