News Room Post

Opposition Unity: बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी से कांग्रेस की जारी है तकरार, कई राज्यों में भी विपक्षी एकता में रोड़ा अटकने के आसार!

Opposition meeting

नई दिल्ली। पहले पटना और फिर बेंगलुरु। पटना में 17 तो बेंगलुरु में 26 दलों के नेताओं का जुटान। विपक्ष की बीजेपी के खिलाफ साझा कोशिश के ये दो नजारे पिछले दिनों दिखे। विपक्ष के नेताओं ने एक राय से I.N.D.I.A. नाम से गठबंधन भी बना लिया। फिर तय हुआ कि अगली बैठक मुंबई में होगी। मुंबई में होने वाली बैठक में देशभर में विपक्षी दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर चर्चा की बात है, लेकिन फिलहाल जो हालात दिख रहे हैं, वो विपक्षी एकता की राह में बड़ा रोड़ा जैसा है। वजह ये है कि बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी और कांग्रेस के बीच बयानबाजी की जंग जारी है। वहीं, बंगाल समेत कई राज्यों में सीटों के बंटवारे पर भी आम राय होना फिलहाल मुश्किल लग रहा है। हालांकि, कहावत है कि राजनीति का ऊंट कभी भी कोई करवट बैठ सकता है।

पहले बंगाल की बात कर लेते हैं। यहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और लोकसभा में नेता विपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने एक बार फिर ममता बनर्जी और टीएमसी पर निशाना साधा है। अधीर रंजन ने शनिवार को कहा कि टीएमसी के नेता भ्रष्ट हैं। उन्होंने कहा कि राज्य प्रशासन और बीडीओ तो टीएमसी के निर्देश पर काम करते हैं। अधीर रंजन चौधरी ने ये भी कहा कि ममता तो 2011 में कांग्रेस की मदद से ही सत्ता में आई थीं। अब राज्य की जनता का उनसे मोहभंग हो चुका है। इस पर टीएमसी के शांतनु सेन ने पलटवार किया और कहा कि विपक्षी गठबंधन की वजह से हम कुछ बोल नहीं रहे। शांतनु ने कहा कि हम कांग्रेस पर हमला नहीं कर रहे, लेकिन ये न समझा जाए कि हम कमजोर हैं।

अब बात उन राज्यों की कर लेते हैं, जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं और इस वजह से विपक्षी दलों के बीच सीट बंटवारे का मामला खटाई में पड़ सकता है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली और पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) बहुत बड़ी तादाद में सीटें जीतकर सत्ता में है। बंगाल में ममता की टीएमसी लगातार तीसरी बार ज्यादा सीटों के अंतर से सत्ता में आई थी। यूपी की बात करें, तो यहां अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) 125 विधानसभा सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी दल है। केरल में वामदल लगातार दूसरी बार सत्ता में आए। वहीं, तमिलनाडु में डीएमके सत्ता में है। बिहार में जेडीयू और आरजेडी बड़े दल हैं। महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी के अलावा अब उद्धव ठाकरे भी ताल ठोक रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में भी नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ते रहे हैं। कुल मिलाकर सबकी नजर इस पर है कि ज्यादा लोकसभा सीटों वाले इन राज्यों में किस तरह विपक्ष के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति बनती है। फिलहाल आसार तो इसके ही हैं कि इन राज्यों में एक सीट पर एक प्रत्याशी का फॉर्मूला सफल नहीं हो सकता है। खासकर इस वजह से कि एक क्षेत्रीय दल का दूसरे राज्य में जनाधार बहुत कम है। वहीं, कांग्रेस भी इन राज्यों में खस्ताहाल है।

Exit mobile version