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Dussehra 2022: एक ऐसा मंदिर जहां दशहरे के दिन रावण की होती है पूजा, जानिए इसके पीछे का रहस्य

Dussehra 2022: जहां एक ओर रावण को द्वेष भावना से देखते हुए लोग उससे घृणा करते हैं, तो दूसरी ओर देश में स्थित एक स्थान पर लोग दशानन की पूजा करते हैं। ये बात जानकर अगर आपको हैरानी हो रही है तो आपको थोड़ा और हैरान हुए एक और बात बता देते हैं कि यहां पर रावण का भव्य मंदिर भी है।

नई दिल्ली। आज पूरे देश में धूमधाम से विजयदशमी का पर्व मनाया जा रहा है। देश के हर कोने में दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध करके बुराई का अंत किया था। तब से लोग इसे असत्य पर सत्य की जीत के उत्सव के रूप में मनाते हैं। जहां एक ओर रावण को द्वेष भावना से देखते हुए लोग उससे घृणा करते हैं, तो दूसरी ओर देश में स्थित एक स्थान पर लोग दशानन की पूजा करते हैं। ये बात जानकर अगर आपको हैरानी हो रही है तो आपको थोड़ा और हैरान करते हुए एक और बात बता देते हैं कि यहां पर रावण का मंदिर भी है। ये स्थान उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर में स्थित है। यहां स्थित रावण का ये मंदिर साल में सिर्फ एक बार दशहरे के दिन चंद मिनटों के लिए खोला जाता है। उद्योग नगरी कानपुर में स्थित इस मंदिर में विजयदशमी के दिन पूरे विधि-विधान से रावण का दुग्ध स्नान किया जाता है इसके बाद उसका अभिषेक और श्रृंगार किया जाता है। इतना ही नहीं यहां पूजा के बाद रावण की स्तुति कर आरती भी की जाती है।

यहां के पुजारियों के अनुसार, जब भगवान राम ने रावण को नाभि में तीर मारा था, तो तीर लगने और उसके धराशाही होने के बीच कालचक्र द्वारा जो रचना हुई उसने रावण को पूजनीय बना दिया था। इसी कारण से ‘जब श्री राम ने लक्ष्मण से रावण के पैरों की ओर खड़े होकर सम्मानपूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कहा था। कहा जाता है कि धरती पर कभी रावण जैसा ज्ञानी न कोई पैदा हुआ है और न कभी होगा। रावण के इसी गुण और स्वरूप को पूजनीय मानते हुए कानपुर में रावण की पूजा करने का नियम है।’ प्रकांड पंडित होने के साथ-साथ वो भगवान शिव और माता शक्ति का का परम भक्त भी था। इसलिए शक्ति के प्रहरी के रूप में रावण के मंदिर का निर्माण कराया गया है। उसकी पूजा और तपस्या से प्रसन्न होकर मां छिन्नमस्तिका ने उसे वरदान दिया था कि माता की पूजा तभी सफल होगी जब उनके भक्त रावण की पूजा की जाएगी। रावण को पूजे जाने का एक कारण ये भी है।

साल 1868 में महाराज प्रसाद शुक्ल द्वारा स्थापित इस मंदिर के खुलने का इंतजार साल भर किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर सच्चे मन से मांगी गई मन्नतें पूरी भी होती हैं। कहा जाता है कि जिस दिन रावण को मोक्ष प्राप्त हुआ था, उसका जन्म भी उसी दिन हुआ था। हर साल दशहरे के दिन करीब 11:00 बजे ये मंदिर खुलता है और साल भर के लिए इसे बंद कर दिया जाता है।