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बृहस्पति का बेहद अहम समय, आदिगुरु शंकराचार्य और अमिताभ को दिया गजब का प्रोटेक्शन

इस वर्ष 2025 में बृहस्पति का अतिचारी होना और तीन राशियों वृषभ, मिथुन और कर्क में गोचर के साथ ही वक्री होना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। देवताओं के गुरु माने जाने वाले बृहस्पति का देश और दुनिया के साथ ही निजी जीवन में क्या यह बड़े बदलाव का संकेत है इसे समझते हैं.

वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह को अत्यधिक महत्व दिया गया है। इन्हें देवताओं का गुरु का कहा जाता है। जन्मकुंडली में बृहस्पति की केंद्र-त्रिकोण में स्थिति कई दोषों का परिहार कर देती है। शास्त्रों के अनुसार, लग्न अथवा प्रथम भाव बैठे बृहस्पति कुंडली के सवा लाख दोषों को खत्म कर देते हैं। आदिगुरु शंकराचार्य, महान गायिका और भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन बृहस्पति की कृपा और आशीर्वाद के बड़े उदाहरण हैं।

सबसे पहले हम आदिशंकराचार्य की कुंडली पर विचार करते हैं। बृहस्पति ने उन्हें आध्यात्म की पराकाष्ठा पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। कर्क लग्न की कुंडली में बृहस्पति षष्ठेश और नवमेश होकर आठवें भाव में विराजमान हैं। मोक्ष त्रिकोण के एक महत्वपूर्ण भाव, अष्टम में आध्यात्मिक ग्रह बृहस्पति यदि अशुभ प्रभाव में न हो तो योग के अभ्यास और अमरत्व की प्राप्ति के लिए अति शुभ हो सकता है। जैसा कि आदिगुरु शंकराचार्य की कुंडली दर्शाती है।

अमिताभ बच्चन पर भी बृहस्पति की असीम कृपा हुई तो वे सदी के महानायक बन गए। उनके समकालीन और उनसे बड़े-छोटे न जाने कितने अभिनेता अभिनय में अमिताभ से इक्कीस रहे लेकिन अमिताभ जैसा रुतबा नहीं पा सके। अमिताभ की जन्मकुंडली में लाभेश और धनेश होकर बृहस्पति छठे भाव में अपनी उच्च राशि कर्क में विराजमान हैं। इसकी वजह से वह सिनेमा जगत में अपने समकक्ष अभिनेताओं से प्रतिस्पर्धा में हमेशा आगे रहे। छठे भाव में उच्च के होकर बैठे वर्गोत्तम बृहस्पति ने 1982 में हुए हादसे में अमिताभ को सुरक्षित बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। त्रिशांश में बृहस्पति की स्थिति भी इसकी पुष्टि करती है।

लता मंगेशकर की कुंडली पर विचार करते हैं। मधुर आवाज तो अनेक गायिकाओं की होती है और एक से एक दिग्गज शास्त्रीय गायिकाएं भारत में हुई हैं। लेकिन, बृहस्पति की कृपा लता मंगेशकर पर हुई तो उनके व्यक्तित्व में वजन आया और उनकी आवाज की रुहानियत का कोई मुकाबला नहीं रहा। लता मंगेशकर की जन्मकुंडली में अष्टमेश और लाभेश होकर बृहस्पति लग्न में बैठे हैं। इसलिए अष्टम भाव की अशुभता में कमी आने के साथ ही पंचम भाव, जिसमें सूर्य और बुध कन्या राशि में बैठकर बुधादित्य योग बना रहे है। बुध जो कि द्वितीय भाव (वाणी का भाव भी है) के स्वामी होकर पंचम में स्थित हैं। बृहस्पति के दृष्टि संबंध से उनकी शुभता बढ़ गई। लग्नेश होकर शुक्र के चतुर्थ भाव में स्थिति भी उनकी कुंडली को शुभता प्रदान करती है। इसके साथ ही लता मंगेशकर की कुंडली में राज योग, महाभाग्य योग, धन योग और सरस्वती योग ने उन्हें अपार प्रसिद्धि और सफलता दिलाई।

विवाह, आजीविका अथवा करियर, शिक्षा, संतान, स्वास्थ्य, आध्यात्मिक पक्ष और भाग्योदय आदि मामले में बृहस्पति की अहम भूमिका होती है। संहिता शास्त्र में भी बृहस्पति धर्म-कर्म, राष्ट्र की वित्तीय व्यवस्था, शिक्षण संस्थान, विदेशी व्यापार, राजनयिक संबंध आदि का प्रतिनिधित्व करते हैं। आमतौर पर बृहस्पति लगभग 12 वर्षों में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करते हैं। एक राशि में वह लगभग 12-13 माह तक रहते हैं। लेकिन, 2025 में वे तीन राशियों वृषभ, मिथुन और कर्क में गोचर करेंगे। इस दौरान वे अतिचारी होने के साथ ही वक्री भी रहेंगे। इसका असर देश-दुनिया के साथ ही आम व्यक्ति पर भी पड़ेगा। इससे वित्तीय अस्थिरता, धर्म एवं आध्यात्म के मामले में असमंजस की स्थिति पैदा हो सकती है।

बृहस्पति की खगोलीय स्थिति से समझे फलित के सिद्धांत

हमारे सौरमंडल में बृहस्पति सबसे बड़ा ग्रह है। पृथ्वी के मुकाबले इसका व्यास 1100 गुना ज्यादा है। इसकी विशालता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि लगभग 1300 पृथ्वियां इसमें समा सकती है। सूर्य से क्रम में पांचवां ग्रह बृहस्पति का वायुमंडल मुख्य रूप से हाइड्रोजन 75 फीसदी और हीलियम 24 फीसदी से बना है, जबकि शेष एक फीसदी में विभिन्न भारी तत्व हैं। यह सौरमंडल का सबसे तेज़ गति से घूमने वाला ग्रह है। इसका एक दिन पृथ्वी के 10 घंटों के बराबर होता है। यह सूर्य की परिक्रमा लगभग 12 वर्षों में करता है और इसकी औसत कक्षीय गति लगभग 29,236 मील प्रति घंटा है। बृहस्पति का चुंबकीय क्षेत्र सौरमंडल में सबसे शक्तिशाली है, जो पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर की तुलना में दस गुना बड़ा है और इसी वजह से भारतीय ज्ञान परंपरा में इस चुम्बकीय बल को गुरुत्व बल या गुरुत्वाकर्षण बल कहा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि बृहस्पति पृथ्वी के रक्षक तौर पर काम करता है। इसके साथ ही यह हमारे सौर मंडल के लिए एक वैक्यूम क्लीनर की तरह भी काम करता है। अपने विशाल गुरुत्वाकर्षण के कारण यह भटकते हुए क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं को अपने अंदर समाहित कर लेता है। इससे पृथ्वी इन क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं से सुरक्षित है। खगोल वैज्ञानिकों ने बताया बृहस्पति द्वारा पृथ्वी को सुरक्षित करने की सबसे चर्चित घटना वर्ष 1994 में हुई थी। शूमेकर-लेवी नामक धूमकेतु नौ टुकड़ों में विभाजित होकर बृहस्पति से टकरा गया। यदि बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक नहीं होता तो वह पृथ्वी से टकरा सकता था। बृहस्पति का एक नकारात्मक पक्ष भी है। कभी-कभी यह अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण से क्षुद्रग्रहों को पृथ्वी से टकराने के लिए भी भेज सकता है। 65 मिलियन वर्ष पहले ऐसे ही एक घटना में डायनासोर पृथ्वी से विलुप्त हो गए।

वैदिक साहित्य में संरक्षण के इसी स्वरूप को ज्ञान का कारक बताया गया है। आश्चर्य की बात है कि सदियों पहले ज्योतिष के विद्वानों ने बृहस्पति के इस स्वरूप की व्याख्या कर दी थी। फलित ज्योतिष में मनुष्यों के जीवन पर पड़ने वाले बृहस्पति के असर इन्हीं सिद्धांतों का सूक्ष्म विश्लेषण है। बृहस्पति की महत्ता को रेखांकित करते हुए वैदिक ज्योतिष में उन्हें गुरु की उपाधि भी पूरी तरह वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है, जिसकी विवेचना समय के साथ व्यापकता से आगे बढ़ रही है।

बृहस्पति से संबंधित ज्योतिषीय सिद्धांत

देवगुरु होने के नाते बृहस्पति को सबसे शुभ ग्रह माना गया है। ये जिस राशि या नक्षत्र पर संचार करते हैं, उन राशियों और नक्षत्रों के फल को प्रभावित करते हैं। बृहस्पति उदित होने पर सभी शुभ कार्य होते हैं और इनके अस्त होने पर धर्म संगत शुभ कार्य को निषेध बताया गया है। इन्हें दो राशियों धनु और मीन का स्वामित्व प्राप्त है। कर्क राशि में यह उच्च (0-5 अंश) और मकर राशि में नीच (0-5 अंश) की स्थिति में होते हैं। बृहस्पति की मूल त्रिकोण राशि धनु (0-10 अंश) है। सूर्य, मंगल और चंद्रमा इनके नैसर्गिक मित्र, बुध और शुक्र नैसर्गिक शत्रु और शनि सम होते हैं। बृस्पति की पंचम, सप्तम और नवम पूर्ण दृष्टियां होती हैं। बृहस्पति पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्रों के भी स्वामी हैं।

बली बृहस्पति जातक को आनंदित, आशावादी, उदार, सामाजिक और सहज बनाता है। शास्त्रीय पुस्तक जातक पारिजात के अनुसार, चतुर्थ भाव में स्थित बृहस्पति जातक को आनंदित रखता है। बृहस्पति धर्म, आध्यात्मिकता और आतंरिक ज्ञान का कारक है। कुंडली में यदि बृहस्पति अच्छी स्थिति में है तो जातक भाग्यशाली माना जाता है। लग्न में जहां बृहस्पति दिग्बली होता है वहां में स्थित होने पर यह पंचम भाव को देखता है। इससे कुंडली के सवा लाख दोष दूर हो जाते हैं। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। बृहत्पाराशर होराशास्त्र के अनुसार, केंद्र में स्थित बृहस्पति बहुत बड़ा रक्षक होता है। कुंडली में निर्बली बृहस्पति जातक को बढ़ा-चढ़ाकर बातें करने वाला, आडंबर युक्त जीवन जीने वाला, कई बार निराश चित्त वाला और निर्बल इच्छा शक्तिवाला बनाता है। एक महत्वपूर्ण सिद्ंधात है कि बृहस्पति जिस भाव में बैठता है। उस भाव से संबंधित कार्य में अवरोध डाल सकता है। जहां देखता है, उसकी वृद्धि करता है। शास्त्रों के अनुसार, 2/5/7/11 भाव में बृहस्पति कई बार कारकत्व की शुभता में कमी ला सकता है।

2025 में देश-दुनिया के साथ निजी जीवन को कैसे प्रभावित करेंगे बृहस्पति

सामान्य तौर पर बृहस्पति लगभग 13 महीने में राशि परिवर्तन करते हैं। लेकिन, 2025 में वे तीन राशियों में गोचर करेंगे। 14 मई 2025 को वह वृषभ राशि से मिथुन में प्रवेश कर चुके हैं। इसके बाद 18 अक्टूबर 2025 को अपनी उच्च राशि कर्क में प्रवेश करेंगे। इसके बाद 5 दिसंबर 2025 को बृहस्पति मिथुन राशि में दोबारा प्रवेश करेंगे। 12 जून 2025 से बृहस्पति अस्त हो चुके हैं और 9 जुलाई 2025 को कुल 27 दिनों बाद उदय होंगे। 11 नवंबर 2025 से 11 मार्च 2026 में कुल 120 तक वक्री रहेंगे। बृहस्पति वर्ष 2025 में तीन राशियों में गोचर से अतिचारी होंगे अर्थात् अपनी सामान्य गति से तेज गति से भ्रमण करेंगे। शास्त्रों में अतिचारी और वक्री ग्रहों की चाल अच्छी नहीं मानी गई है।

बृहस्पति की वक्री अवस्था में देश को अकाल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही धर्म-आध्यात्म के मामले में जनता के एक बड़े भाग में अरुचि होने के साथ ही धार्मिक उन्माद जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। इसके साथ ही अराजकता का माहौल बन सकता है। कई राज्यों में हिंसक घटनाएं, सत्ता परिवर्तन के योग भी बन सकते हैं। मिथुन राशि में बृहस्पति के गोचर को लेकर शास्त्र कहते हैं –

मिथुने संगते जीवे ज्येष्ठाख्यो-वत्सरो भवेत्.. अर्थात् बृहस्पति जब मिथुन राशि में प्रवेश करता है तो ज्येष्ठ नामक वर्ष आता है। यह बच्चों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए शुभ नहीं होता है। अपि च, मिथुने च गुरुर्याति तत्राब्दे दारुणं भयम्.. यानी जिस वर्ष मिथुन राशि में बृहस्पति गोचर करें, देश को भय और कष्टकारक घटनाओं का सामना करना पड़ता है। पड़ोसी देशों से पारस्परिक टकराव और युद्ध जैसे हालात बनते हैं। वर्षा में अनियमिता जैसे हालात होंगे। कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की स्थिति पैदा हो सकती है। कर्क राशि में बृहस्पति के गोचर को लेकर कहा गया है कि ‘बृहस्पतिर्यदा कर्के स्वल्पमेघः प्रवर्षति…’ बृहस्पति जब कर्क राशि में गोचर करते हैं तो अनुकूल वर्षा की कमी होती है। राष्ट्राध्यक्षों में परस्पर टकराव या युद्ध का माहौल बन सकता है। निजी जीवन पर बृहस्पति के प्रभाव की बात करें तो ये एक शुभ ग्रह है, जो जातक के जीवन में शुभता लाने के साथ धर्म की वृद्धि करते हैं। लेकिन, अतिचारी, वक्री और अस्त होने पर बृहस्पति की शुभता प्रभावित हो जाती है।

अतिचारी बृहस्पति का फल

बृहस्पति का अतिचारी (तेज गति) होना क्या देश और दुनिया में शांति और खुशहाली के लिए नई चुनौतियों का संकेत है। बृहस्पति इस वर्ष अतिचारी होकर वृष से मिथुन और मिथुन से कर्क और कर्क में वक्री होकर मिथुन राशि में गोचर करेंगें। बृहस्पति के अतिचारी होने की यह स्थिति 2032 तक रहेगी, जब तक बृहस्पति तुला राशि में प्रवेश नहीं करते हैं।

महाभारत युद्ध के साथ-साथ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी बृहस्पति अतिचारी थे। 2019 से 2021 के बीच भी बृहस्पति थोड़े समय के लिए अतिचारी हुए, जब हमने कोरोना का प्रकोप देखा। बृहस्पति किसी भी राशि में तेजी से (अतिचारी गति) चलते हैं, तब अशांति पैदा करते हैं। बृहस्पति की तेज गति अराजकता और व्यवधान फैलाने के लिए उकसाएगी। ऐसे में क्या यह कहा जा सकता है कि हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं? वर्तमान में पूर्व और पश्चिम में प्रमुख शक्तियों के साथ वैश्विक युद्ध के हालात हैं। ज्योतिष गणनाओं के अनुसार, महाभारत शुरू होने से पहले सौर मंडल में जबरदस्त उथल-पुथल थी। बृहस्पति लगातार सात राशियों में गोचर कर रहे थे, यानी लगभग सात वर्षों तक अतिचारी थे।

बृहस्पति की निरंतर अतिचारी गति का सीधा अर्थ है परेशानी। बृहस्पति की तेज गति के प्रभाव, सत्ता का परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ा झटका, मुद्रास्फीति, देशों के बीच युद्धों के कारण दुनिया भर में अराजकता, लोगों का कमजोर स्वास्थ्य, सुरक्षित पानी की सीमित पहुंच और जीवन शक्ति की हानि, संक्रामक रोगों का प्रकोप, जहरीली गैस से मृत्यु, प्राकृतिक आपदाएँ आदि जैसी घटनाएं सामने आ सकती है। खाद्य और ऊर्जा की ऊंची कीमतों के साथ वैश्विक वित्तीय संकटों का सामना भी करना पड़ सकता है। व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो जिन जातकों की कुंडलियों में बृहस्पति नीच या शत्रु राशि में हैं या राहु-केतु के साथ हैं तो उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन, यह स्थिति पूरी तरह गोचर की स्थिति, दशा और कुंडली में बन रहे संयोगों और योगों पर निर्भर करता है।