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शनि के वक्री होने पर बदलेगा भाग्य, नेहरू टाटा, इंदिरा हैं शनि की कृपा के उदाहरण

शनि 13 जुलाई को वक्री होने जा रहे हैं। एक आम धारणा है कि शनि सदैव कष्ट देने वाले ग्रह हैं। लेकिन, वह कर्म के साथ ही न्याय के कारक हैं, मेहनत-ईमानदारी के साथ जीने वाले लोगों को शनि विशेष सफलता प्रदान करते हैं।

वैदिक ज्योतिष में शनि को बेहद महत्वपूर्ण ग्रह माना गया है। बृहस्पति भाग्य तो शनि कर्म के कारक हैं। एक आम धारणा है कि शनि की दृष्टि, दशा या गोचर किसी जातक के लिए कष्टकारी ही होता है, लेकिन यह बात सही नहीं है। शनि कर्म के साथ न्याय के भी कारक हैं। व्यक्ति जीवन में जो भी कर्म करता है, शनि उसी अनुरूप फल प्रदान करते हैं। जो जैसा बोयेगा वैसा काटेगा वाली युक्ति शनि पर बिल्कुल सटीक बैठती है। ऐसे में शनि को शुद्धिकरण का कारक कहा जाए तो गलत नहीं होगा, क्योंकि शनि गरीब, मजदूर और नौकरों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके प्रति किए गए व्यवहार के अनुरूप भी शनि का दंड या कृपा प्राप्त होती है। शनि से संबंधित उपायों में ऐसे लोगों के प्रति कृतज्ञता, सेवा और दोष रहित चरित्र को शायद इसलिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

शनि 13 जुलाई को मीन राशि में वक्री हो जाएंगे। इससे पहले 29 मार्च 2025 को शनि कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में आए थे। शनि की साढे़साती, ढैय्या, वक्री आदि का नाम सुनते ही अज्ञानतावश लोग भयभीत हो जाते हैं, लेकिन इनका एक अर्थ वृहद कल्याणी और लघु कल्याणी भी होता है। शनि भय नहीं भाग्य को बदलने वाले ग्रह हैं। कुंडली में शनि की मजबूत स्थिति अपार प्रसिद्धि दे सकती है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की कुंडली में शनि मजबूत स्थिति में था। इससे बाधाओं और कठिनाइयों से भरे रास्ते पर चलकर अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बनें। रतन टाटा की कुंडली में शनि ने उन्हें धैर्य, दृढ़ता और दूरदर्शिता दी, जिससे वह एक सफल उद्योगपति बने।

भारत में पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरणसिंह और राजीव गांधी शनि की साढ़ेसाती या शनि की दशा में ही देश के प्रधानमंत्री बनें। शनि प्रबल राजयोगकारक हैं। यह व्यक्ति को राजसत्ता और जनता में लोकप्रिय बनाते हैं। सर्वोच्च राजयोग पंचमहापुरुष राजयोग में शश नामक एक अति विशेष राजयोग का सृजन शनि द्वारा ही होता है। यह व्यक्ति को शून्य से शिखर तक पहुंचा देता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की कुंडली में भी इसी शश नामक पंचमहापुरुष योग ने प्रधानमंत्री पद दिलाया था। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, किसी जातक की जन्मकुंडली में यदि शनि दशम भाव में हो या दशमेश से संबंध बनाए और दशवें भाव में मंगल भी स्थित हो तो व्यक्ति समाजसेवा के लिए राजनीति में आता है। क्योंकि शनि को जनता का हितैषी या कारक बताया गया है और मंगल में नेतृत्व के गुण विद्यमान होते हैं। दोनों का संबंध व्यक्ति को राजनेता बना सकता है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार वक्री होने का मतलब

शनि वर्तमान में मीन राशि में गोचर कर रहे हैं। 13 जुलाई को वक्री होंगे और 28 नंवबर को मार्गी होंगे। ग्रहों का वक्री होना एक सामान्य खगोलीय घटना है। पृथ्वी से देखने पर जब कोई ग्रह अपनी सामान्य गति से धीमा चलता हुआ प्रतीत होता है, तो वह अपनी ऑर्बिट अथवा परिभ्रमण मार्ग में पीछे जाता हुआ प्रतीत होता है। ज्योतिष शास्त्र में इसे ही ग्रहों का वक्री होना कहा गया है। हालांकि वैज्ञानिक रूप से ग्रहों की गति में कोई बदलाव नहीं होता है। लेकिन ज्योतिष शास्त्र में इसका विशेष महत्व है।

ज्योतिष सिद्ंधात के अनुसार, मंगल, बृहस्पति और शनि बाह्य ग्रह हैं और जब ये सूर्य से 5,6,7 या 8 भाव में होते हैं या जब ये सूर्य से सामान्यतः 120 से 240 अंश तक दूर होते हैं तो वक्री हो जाते हैं। इसी तरह आतंरिक ग्रह बुध सूर्य से 15 से 27 डिग्री की दूरी पर होता है तो वक्री हो जाता है और सूर्य से इतने ही अंश पीछे होने पर मार्गी हो जाता है। शुक्र सूर्य से 27 से 47 डिग्री आगे होता है तो वह वक्री हो जाता है। सूर्य से इतने ही अंश पीछे होने पर मार्गी हो जाता है। शनि कुल 140, बृहस्पति 120, मंगल 80, शुक्र 42 और बुध 24 दिनों की अवधि के लिए वक्री होते हैं। राहु-केतु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं हैं। ये गणितीय गणना से प्राप्त दो संवेदनशील बिंदु हैं, इनकी गति सदैव वक्री होती है। चंद्रमा और सूर्य कभी वक्री नहीं होते हैं।

सामान्य तौर पर ग्रहों का वक्री होना अच्छा नहीं माना गया है। इसका जनमानस पर नकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है। ग्रहों के वक्री होने पर उनकी ऊर्जा झीण यानी कमजोर हो जाती है। ऐसे में वह पूरी तरह शुभ प्रभाव नहीं दे पाते हैं, लेकिन वक्री होने पर ग्रहों का चेष्टाबल सामान्य से अधिक होता है। इसका मतलब हुआ कि इससे संबंधित प्रयासों में तेजी आ जाती है। ग्रहों के वक्री होने का फल पूरी तरह कुंडली में ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है।

यदि शनि के वक्री फल की बात करें तो शास्त्रों के अनुसार, शनि को एक कठोर कार्यपालक के तौर पर देखा जाता है। वह हमारे जीवन में चुनौतियां और सबक लेकर आते हैं। जन्मकुंडली में शनि के वक्री होने पर इसका प्रभाव तीव्र हो जाता है। इसका आश्रय है कि सामान्य से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। वक्री शनि की गति विशेष तौर शनि से 12वें भाव से संबंधित कारकत्वों, संघर्ष और पीड़ा को बढ़ा सकती है। इसका एक पक्ष यह है कि शनि वक्री अवस्था में अधिक बलशाली और प्रभावी हो जाते हैं। जैसा कि शनि को कर्म का देवता कहा जाता है ऐसे में वक्री होने की स्थिति में शनि शुभ और अशुभ दोनों की तरह के परिणाम देते हैं। जातक यदि परिश्रमशील है तो वह जातक को सफलता प्रदान करते हैं और एक ही कार्य को दोहराने के लिए प्रेरित करते हैं। सामान्य तौर पर माना जाता है कि शनि करियर और स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं।

पौराणिक कथाओं से समझें शनि और उनके कारकत्व

ग्रहों की प्रकृति और उनके आपसी संबंधों के सिद्धांत को पौराणिक कथाओं के दृष्टांत रूपी कथाओं से आसानी से समझा जा सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य का विवाह संज्ञा से हुआ, जो एक दिव्य वास्तुकार, विश्वकर्मा की पुत्री थीं। वे कुछ समय तक खुशी से रहे और उनके तीन बच्चे हुए। उनमें से एक यमराज थे। कथाओं के मुताबिक, सूर्य के ताप से परेशान होकर संज्ञा ने उन्हें छोड़कर जाने का निर्णय लिया। उनकी संतानों ओर सूर्य को इस संबंध में जानकारी ना हो इसलिए उन्होंने अपनी परछाई से एक प्रतिरूप बनाई। संज्ञा की इस प्रतिरूप का नाम छाया रखा गया, जिसका अर्थ परछाई है। इसके बाद संज्ञा ने तप के बल पर स्वयं को घोड़ी के रूप में बदल लिया और ध्यान-तप के लिए एकांत में रहने जंगल को चली गई। इधर, सबकुछ सामान्य गति से आगे बढ़ रहा था। सूर्य और छाया से दो पुत्र भी हुए, उनमें एक शनि थे। लंबे समय बाद एक दिन छाया का राज खुल गया। इसके पीछे भी कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें एक कथा है कि संज्ञा पुत्र यम ने छाया की उपेक्षा से परेशान होकर अपने पिता सूर्य से शिकायत करने पहुंच गए। इसके बाद सूर्य ने जब छाया से बात की तो सारी सच्चाई सामने आ गई। एक कथा के अनुसार, सूर्य ने अपने ताप से एक दिन पकड़ लिया कि छाया संज्ञा नहीं बल्कि उनका प्रतिरूप है। इसके बाद छाया ने संज्ञा से संबंधित सारी घटना बता दी। इसके बाद सूर्य ने छाया को अपमानित करके अपने महल से निकाल दिया। शनि के मनोदशा पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। इसके बाद उनका स्वभाव दुख, असंतोष और उदासी से भर गया। क्रोध और पीड़ा के चलते शनि ने अपने पिता को अस्वीकार कर दिया।

पौराणिक कथा के इस दृष्टांत से ज्योतिष के सिद्धांत को आसानी से समझा जा सकता है। सूर्य देश स्तर पर पिता यानी राजा, नेता, राष्ट्रपति और सरकार का प्रतिनिधित्व करता है। शनि ठीक उसके विपरीत जनता और साधारण लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य शक्ति और तानाशाही है तो शनि लोकतंत्र और अधिक उदार राजनीतिक विचार हैं। यदि हम किसी राजनेता की कुंडली देखते हैं तो सबसे पहले सूर्य और शनि की स्थिति देखी जाती है। यदि सूर्य मजबूत है तो जातक का रुझान सत्ता सुख को लेकर अधिक होगा। शनि मजबूत हैं, तो जातक जनता और आम लोगों के लिए लड़ने वाला होगा। सूर्य और शनि को एक रेखा के प्रारंभिक और अंतिम बिंदु कहा जाए तो गलत नहीं होगा। सूर्य सौर मंडल के प्रारंभिक बिंदु हैं और शनि उसी रेखा के अंतिम बिंदु हैं। कालपुरुष की कुंडली में सूर्य मेष राशि अथवा लग्न में उच्च के होते हैं और शनि ठीक उनके सामने तुला राशि में उच्च के होते हैं। सूर्य राजा है तो शनि प्रजा अथवा नौकर। इसलिए शनि को कर्म का कारक भी कहा गया है, जिससे उनकी महत्ता अत्यधिक बढ़ जाती है। इसलिए शनि को अपनाएं क्योंकि वह हमें सत्य की ओर ले जाने का प्रयास करते हैं ताकि सूर्य का हमारा आंतरिक प्रकाश अधिक चमक सके।

साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव, मीन राशि में शनि का गोचर

साढ़ेसाती किसी जातक के कुंडली में जन्मकालीन चंद्रमा पर शनि के 7.5 वर्ष का गोचर है, जो 2.5 वर्ष की अवधि के तीन क्रमों में होता है। पहला चरण उस राशि के लिए होता है, जो गोचस्थ शनि से ठीक एक भाव आगे हो। दूसरा चरण उस चंद्र राशि से होता है जहां शनि गोचर कर रहे हैं और तीसरा चरण गोचरस्थ शनि से पीछे वाली राशि। वर्तमान में शनि मीन राशि में गोचर कर रहे हैं। इसका अर्थ हुआ कि मीन राशि में साढ़ेसाती का दूसरा चरण चल रहा है। मेष राशि में पहला चरण शुरू हुआ है और कुंभ राशि में साढ़ेसाती का तीसरा चरण चल रहा है। साढ़ेसाती को वृहद कल्याणी और ढैय्या को लघु कल्याणी भी कहते हैं। इस तरह शनि की ढैय्या लगभग ढाई वर्ष की अवधि होती है। वर्तमान में सिंह और धनु राशि पर ढैय्या चल रही है। इसकी स्थिति गोचस्थ शनि से चौथे और आठवें भाव चंद्रमा की स्थिति से देखते हैं। साढ़ेसाती और ढैय्या को पूरी तरह से अशुभ नहीं कहा जा सकता है।

ज्योतिष के सामान्य सिद्धांत के अनुसार, साढ़ेसाती का पहला चरण शारीरिक समस्याओं और बीमारियों से संबंधित होता है। दूसरा चरण, पिछले जन्मों के कर्म ऋणों से मुक्त करता है। तीसरा चरण काफी सरल होता है, इसमें कुछ देरी होती है लेकिन सहनीय होता है और जातक अंततः अपने साथ सकारात्मक बदलाव देखना शुरू कर देता है। साढ़ेसाती निश्चित रूप से आपके जीवन के उन क्षेत्रों को प्रभावित करती है, जिनमें सुधार या सुधार की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। अष्टकवर्ग के सिद्धांत के अनुसार, यदि चंद्र कुंडली में चतुर्थ भाव और अष्टम भाव की शनि के अष्टकवर्ग में 5 या अधिक शुभ बिंदु मिले तो जातक साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव से सहज ही बच जाता है।

अब बात शनि के मीन राशि में गोचर की। मीन राशि जलतत्व राशि है। इसके स्वामी बृहस्पति हैं, जिन्हें देवताओं का गुरु कहा जाता है और यह भाग्य के देवता माने जाते हैं। शनि कर्म और न्याय के देवता हैं। इसका अभिप्राय है कि शनि जब अपने गुरु की राशि में प्रवेश करेंगे तो भाग्य के भरोसे चलने वाली व्यवस्थाएं कर्म प्रधान अथवा कर्म के आधीन हो जाएंगी। तेजी से बदलते देश और दुनिया के बदलते परिदृश्य से इसे समझा जा सकता है। इससे पहले वर्ष 1965 में शनि मीन आए थे, तब भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ। इसके बाद 1996 में मीन राशि में जब शनि का गोचर हुआ तो देश में सत्ता परिवर्तन देखने को मिला। वर्ष 1935 में जब शनि का मीन राशि में गोचर हुआ तो दूसरे विश्व युद्ध की नींव रखी गई।

वर्ष 2025 में शनि के मीन राशि में गोचर को लेकर प्राकृतिक और जलीय आपदाओं की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण और विपरीत मौसम के साथ ही आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। व्यक्ति विशेष पर इस गोचर का प्रभाव कुंडली में शनि और चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करेगा।