नई दिल्ली। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन गीता जयंती मनाई जाती है। सनातन धर्म में गीता जयंती का काफी महत्व माना जाता है। इसलिए हर साल इस दिन भव्य पूजा की जाती है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध से पहले आज ही के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। तभी से यह दिन गीता जयंती के रूप में मनाया जाने लगा है। श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ और अनुसरण करने वाले व्यक्तियों को मृत्यु के बाद भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। गीता सब तरह के संकटों से उबारने का सर्वोत्तम साधन कही जाती है। कहते हैं कि श्रीमद्भगवद्गीता के 18 अध्यायों में कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का उपदेश है।
गीता जयंती पर इस तरह करें पूजा
गीता जयंती के दिन श्रीमद्भगवद्गीता का विशेष पाठ किया जाता है। घरों और मंदिरों में भगवान कृष्ण और श्रीमद्भगवद्गीता की पूजा की जाती है। कई लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं, कहते हैं कि आज के दिन गीता का उपदेश पढ़ने और सुनने का काफी खास महत्व होता है। गीता का पाठ करने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
क्या है श्रीमद्भगवद् गीता का महत्व
यह तो सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में चार वेद होते हैं और इन चार वेदों का सार ही गीता है। यही वजह है कि गीता को हिन्दू धर्म में सर्वमान्य और एकमात्र धर्मग्रंथ कहा गया है। पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि गीता का पाठ करने मात्र से जीवन की वास्तविकता का परिचय होता है। व्यक्ति बिना स्वार्थ कर्म करने के लए प्रेरित होता है। गीता अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध,काम और लोभ जैसी सांससरिक चीजों से मुक्ति का मार्ग दिखाती है। कुरुक्षेत्र में अर्जुन को श्रीकृष्ण ने ज्ञान का पाठ पढ़ाते हुए उन्हें सही और गलत का अंतर भी बताया था।