
नई दिल्ली। भाई बहनों के पवित्र प्रेम का प्रतीक माना जाने वाला रक्षाबंधन का त्योहार हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। राखी का पर्व हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इस बार ये तिथि दो दिन पड़ रही है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो सावन मास की पूर्णिमा इस साल 11 अगस्त के दिन 10 बजकर 39 मिनट पर शुरू होकर रात 08 बजकर 53 मिनट पर समाप्त हो रही है। भद्रा तिथि भी इसी समय से आरंभ हो रही है, जो रात में समाप्त हो जाएगी। राखी का त्योहार भद्राकाल में मनाना काफी अशुभ माना गया है। इसलिए 11 अगस्त को प्रदोष काल में शाम 05 बजकर 18 मिनट से 06 बजकर 18 मिनट तक राखी का त्योहार मनाया जा सकता है। भद्रा तिथि समाप्त होने के बाद रात 08 बजकर 54 मिनट से रात 09 बजकर 49 मिनट तक राखी बांधी जा सकती है। लेकिन सनातन धर्म में सूर्यास्त के बाद राखी बांधना वर्जित है। यही कारण है कि रक्षाबंधन 12 अगस्त को मनाया जाएगा।
भद्राकाल में क्यों नहीं बांधनी चाहिए राखी?
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा शनिदेव की बहन मानी जाती हैं। कहा जाता है कि जब भद्रा का जन्म हुआ था तो सपूर्ण सृष्टि में तबाही होने लगी थी। भद्रा सारी सृष्टि को तहस-नहस करते हुए उसे निगलने लगीं थीं। इतना ही नहीं, तीनों लोक में कहीं भी शुभ और मांगलिक कार्य हो रहा होता, तो माता छाया के गर्भ से जन्म लेने वाली भद्रा वहां पर पहुंच कर सब कुछ तहस-नहस कर देती थीं।
यही कारण है कि भद्रा काल को अशुभ माना जाता है और इस अशुभ मुहूर्त पर राखी बांधना वर्जित है। इसके अलावा, एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार, रावण की बहन ने भद्राकाल में ही राखी बांधी थी, जिस वजह से रावण के पूरे साम्राज्य का विनाश हो गया था।
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