
इंदौर के राजा रघुवंशी की हत्या के बाद कुंडली के मंगल दोष को लेकर कई ज्योतिषों ने कई दावे किए हैं। लेकिन किसी ग्रह को मर्डर या हत्या जैसे अपराधों से जोड़ना अनुचित होगा। राजा की पत्नी सोनम रघुवंशी के मांगलिक होने पर ज्योतिषियों का कहना है कि मांगलिक होने के कारण ही सोनम ने अपने पति की हत्या कराई। मांगलिक दोष ने परिवार बसने से पहले ही उजाड़ दिया। हर अनहोनी के बाद पीड़ित परिजनों को सांत्वना और ढाढस देने में कई बार हम प्रकृति के मूलभूत सिद्धांत और नियम को नजरअंदाज कर देते हैं। हमारे सामने सैकड़ों उदाहण है कि मांगलिक दोष होने के बावजूद शादियां खुशहाली के साथ आगे बढ़ रही हैं। इनमें ऐश्वर्या राय, अनुष्का शर्मा और शाहरुख खान जैसे बड़े उदाहरण हैं। दाम्पत्य जीवन की खुशहाली के लिए कोई एक योग या कारक जिम्मेदार नहीं होता। अब अहमदाबाद विमान हादसे में 265 लोगों की मौत के लिए उनकी कुंडली में भी कोई न कोई ग्रह और उनसे बनने वाले योग जिम्मेदार रहे होंगे। लेकिन, किसी एक योग विशेष से सभी की मृत्यु हुई, ऐसा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि सभी मृतक जीवन के अलग-अलग पड़ाव पर थे। हां इसे हम प्रारब्ध का खेल जरूर कह सकते हैं। इन ताजा उदाहरणों के आधार पर हम ज्योतिष शास्त्र को लकीर के फकीर की संज्ञा नहीं दे सकते। यानी किसी घटना के लिए किसी एक योग को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। बहुत सारे संयोगों के साथ जीवन आगे बढ़ता है और अपनी गति को प्राप्त करता है।
विवाह इस जीवन यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। दुनिया भर के धर्म ग्रंथों में इसे विशेष स्थान प्राप्त है। वेदों में वर्णित मनुष्य के जीवन के चार मुख्य लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति के लिए विवाह को जरूरी बताया गया है और 16 संस्कारों में यह एक मुख्य संस्कार है। ज्योतिष शास्त्र में भी विवाह को महत्व दिया गया है। सुयोग्य जीवनसाथी के चुनाव और जीवन पर पड़ने वाले उसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों जैसे स्वास्थ्य, प्रसन्नता, उन्नति आदि की स्थिति जानने में ज्योतिष की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। वर-कन्या की कुंडली का मिलान इसी व्यवस्था का हिस्सा है।
विवाह के लिए कुंडली मिलान को लेकर ज्योतिष शास्त्र की प्रासंगिकता तेजी से बढ़ी है। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और मोबाइल एप्स के दौर में चुटकियों में वर-वधू की कुंडलियों का मिलान कर लिया जाता है। लेकिन, मिलान की यह पद्धति ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांतों का उपहास प्रतीत होती हैं। कुंडली मिलान महज अष्टकूट मिलान और मांगलिक दोष तक सीमित रह गया है, जो अर्धसत्य के साथ आगे बढ़ रहा है। कुंडली मिलान सिर्फ अष्टकूट मिलान और मंगल दोष तक सीमित नहीं है। इसके लिए कुंडली में नक्षत्रों, भावों, ग्रहों और उनके आपसी संबंध युति, दृष्टि और संजोयन, दशा, गोचर आदि का मिलान भी जरूरी है। इसे क्रमवार तरीके से समझते हैं।
ज्योतिष में कुंडली मिलान से पूर्व भी कई बातों को ध्यान में रखने की बात कही गई है।
1. विवाह के समय वर की आयु विषम संख्यक वर्षों में और वधू की आयु सम संख्यक वर्षों में होनी चाहिए।
2. वर और वधू की कुंडलियों की जांच के बाद स्वतंत्र रूप से विवेचना में कुछ बातों पर ध्यान रखने की बात कही गई है। जैसे, भावी पत्नी जीवन के सभी क्षेत्रों में धर्म-अर्थ आदि कार्यों में सफलता दिलाने वाली हो।
3. दोनों के स्वभाव में लचीलापन, सहिष्णुता और एक दूसरे के साथ निर्वाह करने की क्षमता हो। इसके अतिरिक्त दोनों की कुंडलियों में एक-दूसरे के प्रति विश्वास, सहनशक्ति, सत्यवादिता और अच्छे स्वास्थ्य का संकेत मिलता हो।
4. वधू की कुंडली में वैधव्य योग न हो।
5. यदि वधू की कुंडली में वर की कुंडली से ग्रह अधिक बलवान हैं तो वर की आय़ु को खतरा हो सकता है।
6. वधू का जन्म नक्षत्र वर के जन्म नक्षत्र से पहले या वर का नक्षत्र कन्या के जन्म नक्षत्र से दूसरा हो तो वर की मृत्यु या स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
7. दोनों की कुंडलियों में 1, 4,7,8, 12 और 2 भाव की स्थिति को भी देखा जाता है। इसे मांगलिक दोष के तौर भी देखा जाता है। इस पर आगे चर्चा होगी।
वर- कन्या की कुंडलियों में निम्न बिंदुओं की अलग-अलग विवेचना के बाद कुंडली मिलान की बात कही गई है। जन्म नक्षत्र के आधार पर कुंडली मिलान में दोनों कुंडलियों के आठ बिंदुओं को देखा जाता है। इसे अष्टकूट मिलान कहते हैं। इन आठ बिंदुओं 1.वर्ण, 2. वश्य, 3. तारा, 4. योनि, 5. ग्रह मैत्री, 6. गण, 7. भकूट या राशि मैत्री और 8. नाड़ी को क्रमवार कुल बिंदु = (8+1) X 8 ÷ 2 = 36 गुण होते हैं। इसका उद्देश्य वर-वधू दोनों की कुंडलियों की जांच कर यह पता लगाना है कि वे एक-दूसरे के लिए उपयुक्त हैं या नहीं। कुल 36 में यदि 27 गुण तक मिलते हैं तो इसे उत्तम, 25 तो अच्छा और 18 तक गुण मिलते हैं तो विवाह हो सकता है। वर्तमान में कंप्यूटर या मोबाइल एप की गणना से इसे बेहद आसानी से जाना जा सकता है, लेकिन इसकी सही विवेचना वेध और परिहार आदि की सही जानकारी के अभाव में इसके मर्म से ज्यादातर लोग अछूते रह जाते हैं और विवाह संबंधित सही निर्णय से चूक जाते हैं।
आम तौर पर नाड़ी दोष यानी वर और वधू की नाड़ी एक हो तो शून्य अंक मिलते है। इसे अशुभ माना जाता है। अष्टकूट में 27 गुण भी मिले लेकिन नाड़ी में 0 है तो विवाह को त्याज्य बताया गया है। यह आम धारणा है। मोबाइल ज्योतिष की कहानी यहीं खत्म हो जाती है। लेकिन, नाड़ी एक होने पर भी कुछ विशेष स्थिति में नाड़ी दोष नहीं माना जाता है। इसे क्रम वार तरीके से समझा जा सकता है।
1. यदि नाड़ी एक है लेकिन नक्षत्र पदों में वेध नहीं है तो दोष का परिहार यानी दोष खत्म हो जाता है।
2. यदि दोनों का नक्षत्र एक ही है लेकिन चरण अलग-अलग है तो नाड़ी दोष नहीं माना जाएगा। इसके अलावा यदि वर और वधू की एक ही राशि हो और पृथक-पृथक नक्षत्र हो या अलग-अलग राशि हो लेकिन नक्षत्र एक ही हो तो नाड़ी और गण दोष देखने की आवश्यकता नहीं होती। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।
इसके अतिरिक्त यदि वर का नक्षत्र वधू के नक्षत्र से 4, 7, 10, 13, 16. 19, 22 और 25वां हो तो मिलान अच्छा है। कुछ विद्वानों का का मानना है कि यदि वर का नक्षत्र वधू के नक्षत्र से गिनने पर पहले 9 नक्षत्रों अर्थात् 1 से 9 के बीच है तो खराब है और यदि इसके आगे के यानी 10 से 18 के बीच में है तो साधारण है। यदि वर का नक्षत्र वधू के नक्षत्र से 18 से 27 के बीच में है तो अच्छा है लेकिन जहां राशि मैत्री व ग्रह मैत्री अनुकूल है वहां यह देखने की आवश्यकता नहीं है।
अष्टकूट मिलान के अलावा नक्षत्रों पर आधारित कुंडली मिलान की व्यवस्था भी बताई गई है, जिसे रज्जू कूट मिलान कहते हैं। इस मिलान से वैवाहिक जीवन के सुख दुख का संकेत मिलता है और दाम्पत्य जीवन की अवधि का पता चलता है। इस मिलान में नक्षत्रों को शरीर के पांच मुख्य श्रेणियों सिर ग्रीवा, कमर, जंघा और पैर में विभाजित किया गया है। वर-वधू के नक्षत्रों के क्रम आधार पर इसकी गणना होती है।
कुंडली मिलान वेध मिलान को भी काफी महत्वपूर्ण बताया गया है। वेध संस्कृत शब्द है। इसका मतलब आपत्ति, बाधा अथवा रुकावट होता है। ज्योतिष में इसका प्रयोग कई प्रकार से होता है। गोचर में इसका बड़ा महत्व है। इसी प्रकार कुंडली मिलान का भी यह प्रमुख अंग है, जिसे वेध मिलान कहते हैं। इसके अनुसार सभी नक्षत्रों के दो-दो के वर्ग या जोड़े बनाए गए हैं। जैसे अश्वनी और ज्येष्ठा, भरणी और अनुराधा और श्रावण और आद्रा आदि। अब देखा जाता है कि वर और वधू के नक्षत्र एक साथ नहीं होने चाहिए अन्यथा यह वेध मिलान हो जाएगा। यह मिलान कुंडली मिलान में दाम्पत्य जीवन के लिए अशुभ बताया गया है। वेध मिलान की अन्य पद्धतियां भी प्रचलित है।
अष्टकूट मिलान, चंद्र लग्न आधारित नक्षत्र मिलान के बाद भाव और भाव के अधिपतियों के साथ ही मंगल, सूर्य, शनि, शुक्र, शुक्र और बृहस्पति दाम्प्त्य जीवन को प्रभावित करते हैं। चंद्रमा, हृदय, मानसिक स्थिति, माता और घर की सुख शांति का प्रतीक है। सूर्य आत्मा, शक्ति, स्वास्थ्य, आध्यात्मिकता और पिता का परिचायक है। शुक्र पति-पत्नी यौन संबंध, कलात्मक दृष्टिकोण, सुंदरता आदि का संकेतक है। बृहस्पति संतान, सभी शुभ कार्यों, विवाह आदि के लिए आशीर्वाद देता है। बृहस्पति का कुंडली में अच्छी स्थिति में होना शुभदायक बताया गया है। लेकिन, मंगल (जो साहस, रक्त संचार, शक्ति, पौरूष का प्रतिनिधित्व करता है) को लेकर लोगों में विभिन्न तरह भ्रांतियां और भ्रम है। यूट्यूब, रील्स और सोशल मीडिया पर मांगलिक दोषों पर झूठ का एक पूरा बाजार गुलजार है। क्या मांगलिक होना सच में किसी श्राप की तरह है। खुशहाल दाम्प्त्य जीवन के लिए मांगलिक दोष की क्या भूमिक है। इसे वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतों से समझते हैं।
क्या होता है मंगल दोष
किसी जातक की जन्मकुंडली के पहले भाव (लग्न) दूसरे अथवा धन भाव, चौथे यानी माता और सुख भाव सातवें भाव (जाया) आठवें भाव (आयु) और 12वें भाव यानी व्यय भाव में मंगल ग्रह स्थित होने पर मांगलिक दोष बनता है। दक्षिण भारत में इसे कुज दोष कहा जाता है। इन छह भावों को दाम्प्त्य जीवन में खुशहाली के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है।
पहला भाव लग्न किसी जातक के चरित्र और व्यक्तित्व को दर्शाता है। दूसरा भाव परिवार का भाव कहा गया है। चौथा भाव घर के वातावरण और माहौल की स्थिति को दर्शाता है। सातवां भाव विवाह, जीवनसाथी और साझेदारी का प्रतिनिधित्व करता है। आठवां भाव स्वास्थ्य के साथ-साथ ससुराल और जीवनसाथी की दीर्घायु की जानकारी देता है। बारहवां भाव व्यय के साथ ही यौन संबंध का भी प्रतिनिधित्व करता है। मांगलिक दोष के निर्णय को लेकर दक्षिण भारतीय पद्धति थोड़ी अलग है। उत्तर भारत में मंगल के दूसरे भाव में स्थित होने को मांगलिक दोष के तौर पर नहीं देखते। लेकिन, दक्षिण भारत के ज्योतिषी इसे मांगलिक दोष मानते हैं। उनका तर्क है कि यह भाव आठवां भाव से सीधे दिखता है। यह भाव ससुराल का प्रतिनिधित्व करता है. जिसके परिणामस्वरूप परस्पर विरोधी रिश्ते होते हैं।
ज्योतिष की शास्त्रीय पुस्तक जातक तत्व में वर्णित श्लोक में मांगलिक दोष के संदर्भ में कहा गया हैः-
धने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे। स्त्रीणां भर्तृविनाशः स्याद् भर्तॄणां दारनाशनम्॥
अर्थात् जिस कन्या या वर की कुण्डली में 1, 4, 7, 8 या 12वें भाव में मंगल हो तो वह कन्या के पति के लिए हानिकारक अथवा अशुभ फलकारक होता है। इसी तरह वर की कुंडली में ऐसी स्थिति होने पर वधू के लिए हानिकारक होता है।
महान ज्योतिष विद्वान कालिदास और मंत्रेश्वर का मत है कि मंगल दोष का विचार लग्न, चंद्रमा और शुक्र इनमें जो सबसे बलवान है, उससे करना चाहिए। ज्योतिष के विभिन्न शास्त्रों में मंगल की इन छह भावों में स्थिति के फल बताए गए हैं, सामान्यतः नकारात्मक हैं।
चर्चित पुस्तक चमत्कार चिंतामणि के अनुसार, प्रथम भाव यानी लन्न में मंगल हो तो जातक को अग्नि और हथियारों से भय होता है। मानसिक तनाव के साथ ही प्रियजनों, पत्नी की मृत्यु का दुख सहन करना पड़ता है। सारावली के अनुसार, दूसरे भाव में मंगल होने पर ऐसे जातक अशुद्ध और विषाक्त भोजन के आदी होते हैं। जीवनसाथी बीमारी का शिकार होता है। परिजन से मतभेद और झगड़े होते हैं और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। चतुर्थ भाव में मंगल होने पर चमत्कार चिंतामणि के अनुसार, जातक को मित्रों, रिश्तेदोरों और परिवार से सहायता या सुख का अभाव रहता है। मन परेशान रहने के साथ ही घर और वाहन के सुख से वंचित रहता है। प्रायः वह विदेशों में वास करता है। चमत्कार चिंतामणि के अनुसार मंगल यदि सप्तम भाव में हो तो जातक को बार-बार परायज मिलती है और जीवनसाथी की असमय मृत्यु हो सकती है। सारावली के अनुसार, जातक कई रोगों से पीड़ित हो सकता है। मानसिक रूप से परेशान होने के साथ ही कई बार आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही पत्नी की जल्द मृत्यु हो सकती है। अष्टम के मंगल को लेकर सारावली में कहा गया है कि जातक रोगी और अल्पायु हो सकता है। चमत्कार चिंतामणि के अनुसार, ऐसे जातक की वाणी कठोर होती है। जीवनसाथ के कारण मानसिक क्लेश और दुख झेलना पड़ता है। 12वें भाव में मंगल होने पर चमत्कार चिंतामणि के अनुसार, जातक को आर्थिक परेशानी और अफवाहों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे जातक दूसरों पर निर्भर होने के कारण कभी-कभी अवसाद के शिकार हो सकते हैं।
इस तरह यदि मंगल पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें और 12वें भाव में स्थित हो तो मांगलिक दोष का सामना करना पड़ सकता है। ये सभी स्थितियां जीवन में विभिन्न तरीके के संकट जैसे रोग, पारिवारिक विघटन, दाम्प्त्य जीवन में अशांति और आर्थिक परेशानियों का संकेत देती हैं। कुंडली में मंगल के साथ कई शुभ ग्रह भी स्थित होते हैं जो ज्यादातर मंगल दोषों का परिहार या इसके असर को कम कर देते हैं। वैसे कुंडली में मंगल का बलवान होना करियर और जीवन में तरक्की के लिए जरूरी माना जाता है। संभवतः यही आक्रामकता कभी-कभी वैवाहिक जीवन में टकराव का कारण बन जाती है।
उपाय जानने से पहले मंगल को जाने
भारतीय दर्शन में किसी भी सिद्धांत को समझाने के लिए दृष्टांत माध्यम होता है। जैसे वेद सिद्धांत है तो पुराण उनके दृष्टांत हैं। इस तरह मंगल की उत्पत्ति को पौराणिक कथाओं के आधार पर जानने के बाद इसके वैज्ञानिक पक्ष और ज्योतिष पक्ष को समझना बेहद आसान हो जाएगा। मंगल की उत्पत्ति को लेकर प्रायः दो कथाएं प्रचलित हैं। पहली कथा भगवान विष्णु के अवतार वाराह से जुड़ी है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने पृथ्वी को अनंत सागर की गहराइयों में छिपा दिया, तब भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर उन्होंने हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी का उद्धार किया। बाद में पृथ्वी उनके ऊपर मोहित हो गई और इससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। बाद में चलकर यह पुत्र मंगल ग्रह के रूप में स्थापित हो गया।
एक अन्य कथा भगवान शंकर से जुड़ी हुई हैं। एक बार भगवान शिव के पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर जा गिरी। इससे एक सुंदर बालक उत्पन्न हुआ। भगवान शिव के आर्शीवाद के कारण इस बालक का नाम मंगल पड़ा। मंगल भूमिपुत्र है इसलिए जगह, जमीन, जायदाद और मकान के कारक माने गए हैं। इन्हें ग्रहों का सेनापति कहा गया है। पौरूष, वीरता, शत्रु पर विजय आदि मंगल के कारतत्व हैं। सौरमंडल में मंगल पृथ्वी के बाद चौथा ग्रह है। मंगल की सूर्य 22,40,00,000 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका ब्यास 6860 किलोमीटर है। 689 दिनों में यह सूर्य की एक परिक्रमा को पूरी करता है। पृथ्वी से इसकी दूरी 9,8 करोड़ किलोमीटर है। दिखने में लाल रंग होने के कारण इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है। मंगल अस्त होने के 120 दिन बाद उदय होता है। उदय के 300 दिन बाद वक्री होता है। वक्री के 60 दिन बाद मार्गी और 300 दिन बाद फिर से अस्त हो जाता है। ज्योतिष गणना में इसका विशेष महत्व है।
अब बात मांगलिक दोष के उपाय और परिहार की
मांगलिक दोष दो प्रकार के बताए गए हैं। आंशिक मांगलिक और पूर्ण मांगलिक। आंशिक मांगलिक का पूर्ण मांगलिक की तुलना में कम गंभीर प्रभाव होता है। आंशिक मांगलिक का तात्पर्य मंगल अपनी स्वयं की राशि या मित्र राशि में बैठने से संबंधित है। हालांकि वैदिक ज्योतिष के किसी भी प्रमाणिक शास्त्र में आंशिक और पूर्ण मांगलिक जैसे शब्द नहीं हैं। अब मांगलिक दोषों की बात करें तो देश और दुनिया में कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनकी कुंडली में मांगलिक दोष हैं। फिर भी वह खुशहाल वैवाहिक जीवन जी रहे हैं। इसमें बॉलीवुड स्टार शाहरुख खान, अभिनेत्री ऐश्वर्या राय, अनुष्का शर्मा, शाहिद कपूर आदि कई हस्तियों का नाम शामिल हैं। इनकी कुंडलियां सार्वजनिक हैं इसलिए हम सभी इन पर चर्चा कर सकते हैं। हमारे आसपास भी कई ऐसे लोग होंगे, जो मांगलिक होने के बावजूद खुशहाल दाम्प्त्य जीवन गुजार रहे हैं।
जैसा कि हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि पहले, चौथे, सातवें, आठवें और 12वें भाव में मंगल की स्थिति मांगलिक दोष बनाती है। यदि दक्षिण भारतीय सिद्धांत को मानें तो 2 भाव का मंगल भी मांगलिक दोष बनाता है। इसका मतलब छह भावों में मंगल की स्थिति से कुंडली में मांगलिक दोष होता है। यदि चंद्रमा और शुक्र ग्रह को लग्न में रखकर मांगलिक दोष के सिद्धांत को भी मान लिया जाए तो इस धरती पर लगभग 70 फीसदी लोग मांगलिक होंगें। यदि चंद्रमा और शुक्र के सिद्धांत को छोड़ भी दें तो लगभग आधी आबादी की कुंडली में मांगलिक दोष होना चाहिए। एक आम धारणा है कि मांगलिक दोष वैवाहिक जीवन को तहस-नहस कर सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है। अकेले मांगलिक दोष को कभी भी वैवाहिक जीवन में आने वाले व्यवधान के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
कुंडली में जब बृहस्पति की दृष्टि मंगल पर पड़ जाए तो मांगलिक दोषों का काफी हद तक परिहार हो जाता है। इसके साथ ही मंगल जिस भाव में बैठा है यदि उसके स्वामी का दृष्टि, स्थिति और दृष्टि संबंध बन जाए तो भी मांगलिक दोष नगण्य के समान हो जाता है। जहां तक मांगलिक दोष के निवारण की बात है तो कई तरह की लंबी पूजाएं मसलन, कुंभ विवाह, वृक्ष विवाह, हनुमान और श्रीकृष्ण की आराधाना, मंगल से संबंधित दान आदि उपाय सुझाए जाते हैं, लेकिन इनके पीछे का सिद्धांत मंगल से उत्पन्न होने वाली ऊर्जाओं को व्यवस्थित करन से है। श्रद्धा के साथ इन उपायों का जीवन में आंशिक लाभ जरूर होता है। लेकिन, मांगलिक दोष के मर्म को समझ लिया जाए तो इसके दुष्प्रभाव स्वयं पर कभी हावी नहीं हो सकते। इसके लिए संबंधित मंगल और मंगल के आराध्य श्री हनुमान जी, शिव और अपने इष्ट मंत्रों के जाप से मंगल की स्थिति से उत्पन्न ऊर्जा के नकारात्मक ताप से पूर्णतः सुरक्षित रहते हुए आनंद के साथ दाम्प्त्य जीवन की गति को प्राप्त किया जा सकता है।
प्रारब्ध के मर्म को समझे और बेफिक्र हो जाएं
जीवन की सभी प्रमुख घटनाएं प्रारब्ध से बंधी हुई है। विवाह जैसी महत्वपूर्ण घटनाएं भी इसी का हिस्सा है। भाग्य बदलने में क्रियामाण कर्म की छूट को भी पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। ज्योतिष में तीन प्रकारके कर्म फल के बताए गए हैं, जो भाग्य को प्रभावित करते हैं। दृढ़, अदृढ़ और दृढ़ादृढ़। दृढ़ फल पूरी तरफ प्रारब्ध अथवा भाग्य के अधीन अर्थात् निश्चितऔर स्थायी होते हैं, जबकि अदृढ़ फल अस्थायी, कमजोर और बदल सकते हैं। दृढ़ादृढ़ फल दोनों के बीच का मिश्रण होता है। सही जीवनसाथी के चुनाव का प्रयास हमारे हाथ में है, लेकिन चुनाव प्रारब्ध के हाथ में है। व्रत संयम और नियम से हम किसी भी स्थिति में प्रसन्न जरूर रह सकते हैं।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।