newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Kamada Ekadashi 2022: प्रेत योनि से मुक्ति दिलाती है कामदा एकादशी, जानिए इसकी कथा और पूजा-विधि

Kamada Ekadashi 2022: ये एकादशी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के बाद भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यही नहीं इस व्रत को विधिपूर्वक करने से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।

नई दिल्ली। हिंदू संवत्सर की पहली एकादशी कही जाने वाली कामदा एकादशी आज यानी 12 अप्रैल को मनाई जा रही है। हिन्दू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है। ये एकादशी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के बाद भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यही नहीं इस व्रत को विधिपूर्वक करने से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो जितना पुण्य कन्यादान, स्वर्ण दान और हजारों वर्षों की तपस्या करने से मिलता है, उससे कहीं अधिक पुण्य कामदा एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है।

कामदा एकादशी व्रत की पूजा-विधि

1. कामदा एकादशी व्रत के नियमों का पालन इसके एक दिन पहले यानी दशमी तिथि करना शुरू हो जाता है। इसके एक दिन पहले से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

2. इसके बाद भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके लिए भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान करवाने के बाद उन्हें चंदन का तिलक लगाएं और फूल अर्पित कर और प्रसाद का भोग लगाएं।

3. इसके बाद कपूर और दीपक जलाकर भगवान विष्णु की आरती करना चाहिए और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। इसके बाद एकादशी व्रत कथा का वाचन अवश्य करना चाहिए।

4. शाम के समय भगवान विष्णु की आरती करने और रात के समय भजन कीर्तन करना काफी लाभकारी होता है।

5. एकादशी के दूसरे दिन यानी द्वादशी की सुबह भी पूजन करें और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराएं साथ ही उन्हें दान-दक्षिणा उपहार आदि भी प्रदान करें। इसके बाद व्रत का पारण करें।

कामदा एकादशी व्रत कथा
हिंदू पुराणों के अनुसार प्राचीन काल में हिंदू राजा दिलीप ने भी इस एकादशी के व्रत की महानता अपने गुरु वशिष्ठ के मुख से सुना था। गुरु वशिष्ठ ने उन्हें बताया था कि एक बार भोगीपुर नामक नगर के राजा पुंडरीक के शासन काल में उनके राज्य में कई अप्सराएं, किन्नर और  गंर्धव निवास करते थे। उसी राज्य में ललिता और ललित नाम के दंपति रहते थे उन दोनों के बीच अत्यंत गहरा प्रेम था। एक दिन ललित राजा के दरबार में गान कर रहे थे तभी उनको अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई, जिसके चलते उनके सुर, लय और ताल बिगड़ने लगे। उनकी ये गलती राजा से छिप न सकी उन्होंने इसे पकड़ लिया। इसके बाद ललित ने राजा को पूरी बात बता दी, इस पर राजा ने अत्यंत क्रोधित होकर ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। श्राप की वजह से वो मनुष्य से राक्षस बन गया, जिससे दुखी ललिता श्रृंगी ऋषि के पास पहुंची। इसके बाद ऋषि ने उसे कामदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। ललिता ने ऋषि द्वारा बताए नियमानुसार पूरे विधि विधान से चैत्र एकादशी का व्रत रखा भगवान नारायण से प्रार्थना की। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान नारायण उसकी मनोकामना पूरी की और उसके राक्षस बन चुके पति ललित को एक बार फिर से मनुष्य बना दिया। कहा जाता है इस व्रत को रखने ब्रह्म हत्या जैसे पापों और पिशाच योनि से भी मुक्त प्राप्त हो जाती है।