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Ajab-Gazab News: जानिए 1000 साल पुराने उस मंदिर के बारे में, जहां आज भी मौजूद है कभी न समाप्त होने वाला ब्रम्हा जी के कमंडल का पवित्र जल

Ajab-Gazab News: ऐसी मान्यता है कि स्वयं माता पार्वती ने यहां पर गणेश जी की प्रतिमा लगाई थी। एक हाथ में मोदक लिए हुए और दूसरे हाथ से अभयहस्त की मुद्रा में विराजमान भगवान गणेश के दर्शन करने के लिए जो भी जाता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

नई दिल्ली। भारत मंदिरों का देश है। यहां की सनातन परंपरा हजारों साल पुरानी है। भारत के हिंदू मंदिरों की वास्तुकला और मान्यताएं दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। कई मंदिर तो हजारों साल पुराने हैं फिर भी जस की तस बने हैं। ऐसा ही एक मंदिर कर्नाटक के चिकमगलूर जिले के कोप्पा में स्थित है। इस मंदिर को ‘कमंडल गणपति मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में स्थापित गणेश प्रतिमा के ठीक सामने एक जल स्रोत का उद्गम स्थल है। ये उद्गम स्थल ब्राम्ही नदी का है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में स्थित भगवान गणेश की स्वयं माता पार्वती द्वारा लगाई गई है। एक हाथ में मोदक लिए हुए और दूसरे हाथ से अभयहस्त की मुद्रा में विराजमान भगवान गणेश के दर्शन करने के लिए जो भी जाता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। समुद्र तल से 763 मीटर ऊपर स्थित सह्याद्री पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा ये गणपति मंदिर बेहद खूबसूरत है। इस स्थान को ‘कर्नाटक के कश्मीर’ के नाम से भी जाना जाता है। करीब एक हजार साल पुराने इस मंदिर में भगवान गणेश की प्रतिमा के सामने से स्थित जल स्रोत के विषय में कहा जाता है कि ये रहस्यमय, अंतहीन, लगातार बहने वाला जलाशय है। इस पवित्र जलाशय की वजह से ही इस मंदिर को कमंडल गणपति कहा जाता है। मंदिर से निकलने वाले पवित्र जल में स्नान करने से मनुष्य के शनि दोष तो दूर होते ही हैं साथ ही सभी दुखों से भी छुटकारा मिलता है।

क्या है इस मंदिर का इतिहास?

कहा जाता है कि एक बार मुसीबतों के देवता ‘शनि देवारू’ ने माता पार्वती को काफी परेशान कर रखा था। इसके बाद अन्य देवी-देवताओं की सलाह पर माता पार्वती भगवान शनि का ‘तपस’ (ध्यान) करने के लिए ‘भूलोक’ (पृथ्वी) पर पहुंच गईं और तपस्या के लिए एक अच्छी जगह की तलाश करने लगीं। मंदिर से 18 किमी की दूरी पर स्थित ‘मृगवधे’ नामक स्थान को उन्होंने अपनी तपस्या के लिए चुना। तपस्या निर्बाध रूप से संपन्न हो सके इसके लिए मां पार्वती ने भगवान गणेश को बाहर बैठा दिया। भगवान गणेश की निष्ठा और मां पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उन्हें सम्मानित करने के उद्देश्य से स्वयं धरती पर अवतरित हुए और आशीर्वाद के रूप में अपने कमंडल से जल निकाल कर जमीन पर छिड़क दिया।

ये जल जिस स्थान पर गिरा वहां ब्राम्ही नदी का उद्गम स्थल बन गया। इस उद्गम स्थल का आकार भी कमंडल की भांति है। यही कारण है कि इस मंदिर को कमंडल मंदिर कहा जाता है। इस तीर्थस्थान की यात्रा करने से शनिदोष दूर होने के साथ भगवान गणेश और माता पार्वती का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।