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Mahashivratri 2022: जानें उस मंदिर के बारे में जहां 40 साल में एक बार होते हैं भोलेनाथ के दर्शन, रहस्य भी उड़ा देंगे होश

Mahashivratri 2022: महाशिवरात्री के दिन लोग भगवान शंकर का व्रत रखते हैं और शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ा कर शिव को प्रसन्न करने के प्रयास करते हैं। पूरे देश में भगवान शंकर के कई विशाल मंदिर जैसे सोमनाथ मंदिर, केदारनाथ मंदिर, टुंगनाथ, काशी मंदिर आदि स्थापित हैं जहां पर दर्शन के लिए लोग बहुत दूर-दूर से आते हैं।

नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पूजे जाने वाले 33 करोड़ देवी-देवताओं में सबसे अधिक जिन्हें पूजा जाता है वो हैं त्रिदेव। ब्रह्मा, विष्णु, महेश के एकस्वरूप को हम ‘त्रिदेव’ के नाम से जानते हैं। उन्हीं देवों में से एक देव ‘महेश’ यानी भगवान शिव को समर्पित पर्व शिवरात्री 1 मार्च 2022 यानी कल मनाया जाएगा। शिव को सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार का अधिपति माना जाता है। शिव साधक इस त्योहार को बड़े धूम-धाम से नाचते गाते मनाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। शिवरात्री को शिव उपासक जगह-जगह शिव पार्वती के विवाह की झांकी भी निकालते हैं। भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने घोर तपस्या की थी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिरों में शिव भक्तों का तांता लगा रहता है। महाशिवरात्री के दिन लोग भगवान शंकर का व्रत रखते हैं और शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ा कर शिव को प्रसन्न करने के प्रयास करते हैं। पूरे देश में भगवान शंकर के कई विशाल मंदिर जैसे ‘सोमनाथ मंदिर’, ‘केदारनाथ मंदिर’, ‘टुंगनाथ’, ‘काशी मंदिर’ आदि स्थापित हैं, जहां पर दर्शन के लिए लोग बहुत दूर-दूर से आते हैं। उन्हीं मंदिरों में से एक खास मंदिर है जो 40 साल में एक बार में खुलता है। दक्षिण भारत में स्थित ये मंदिर रहस्यों से भरा पड़ा है। आइये जानते हैं कौन सा है ये मंदिर और क्या है इसकी मान्यता…

दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में मैंगलोर शहर के पास ‘गोकर्ण’ नाम का एक गांव है। लोक कथाओं में प्रतलित है कि गोकर्ण भगवान शिव और विष्णु का शहर है, जिसकी वजह से ये स्थान काफी पवित्र माना जाता है और इसी स्थान पर स्थित है सबसे पुराना और अद्भुत मंदिर गोकर्ण का ‘महाबलेश्वर मंदिर’। करीब 1500 साल पुराना ये मंदिर कर्नाटक के सात मुक्ति स्थलों में से एक है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को ‘आत्मलिंग’ के नाम से जाना जाता है, जिसके दर्शन का सौभाग्य 40 साल में सिर्फ एक बार ही प्राप्त होता है। अपने इसी महत्व के चलते इसे ‘दक्षिण का काशी’ भी कहा जाता है। इस मंदिर को महत्व भी काशी के विश्वनाथ मंदिर के बराबर ही दिया जाता है।

कहा जाता है कि भगवान शंकर ने ये शिवलिंग लंकापति रावण को उसके साम्राज्य की रक्षा करने के लिए दी थी, लेकिन भगवान गणेश और वरुण देवता ने अपनी चतुराई से शिवलिंग को यहां स्थापित करवा दिया। उसके बाद रावण ने इस शिवलिंग को यहां से ले जाने के लिए तमाम कोशिशें कीं, लेकिन वो शिवलिंग को निकाल नहीं पाया। तभी से ये शिवलिंग यहां स्थापित हो गया। ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग में भगवान शिव का वास है। दक्षिण भारत के इस महाबलेश्वर मंदिर में 6 फीट लंबा शिवलिंग स्थित है। मंदिर के निर्माण में सफेद ग्रेनाइट का उपयोग किया गया है।

इस मंदिर में द्रविड़ वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिलते हैं। महाबलेश्वर मंदिर का उल्लेख महाभारत और रामायण के हिंदू पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। दर्शन के लिए इस मंदिर में जाने से पहले ‘कारवार बीच’ में डुबकी लगाना जरूरी होता है उसके बाद मंदिर के सामने स्थित ‘महा गणपति मंदिर’ के दर्शन करने के बाद महाबलेश्वर मंदिर के दर्शन किए जाते हैं। महाबलेश्वर मंदिर के दर्शन से पहले गणपति मंदिर के दर्शन आवश्यक हैं।

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Newsroompost इसकी पुष्टि नहीं करता है।