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Varuthini Ekadashi 2022: जानिए, वरूथिनी एकादशी का पौराणिक महत्व और उसकी कथा

Varuthini Ekadashi 2022: पूजा के बाद व्रत की कथा पढ़ना और सुनना बहुत जरूरी होता है इसके बिना इस एकादशी की पूजा को अधूरा माना जाता है। तो क्या है इस व्रत की कथा आइये जानते हैं…

नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में देखा जाए तो हर महीने कोई न कोई व्रत या त्योहार पड़ ही जाता है। एकादशी उन्हीं में से एक है, लेकिन विष्णु जी को समर्पित हर एकादशी का अपना अलग महत्व है। इसी तरह  हर साल वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ने वाली एकादशी का भी अलग महत्व है। इस तिथि को पड़ने वाली एकादशी को ‘वरुथिनी एकादशी’ कहा जाता है। इसमें व्रत रखने और भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पूजा के बाद व्रत की कथा पढ़ना और सुनना बहुत जरूरी होता है इसके बिना इस एकादशी की पूजा को अधूरा माना जाता है। तो क्या है इस व्रत की कथा आइये जानते हैं…

वरुथिनी एकादशी’ व्रत की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी के महत्व और इसकी व्रत की कथा को सुनाने का निवेदन किया। इसके बाद उन्हें भगवान कृष्ण ने कथा सुनाते हुए कहा कि “प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर एक राजा राज्य करता था, जिसका नाम ‘मांधाता’ था। धार्मिक विचारों और दानवीरता के गुणों से युक्त वो राजा हमेशा भगवान के ध्यान में लीन रहता था। एक बार की बात है, राजा मांधाता जब जंगल में तपस्या कर रहे थे, तो उसी समय वहां पर एक भालू आया और राजा का पैर खाने लगा और धीरे-धीरे राजा के पैर को घसीट कर जंगल की ओर ले जाने लगा। बुरी तरह से घायल राजा ने खुद की रक्षा करने में स्वयं को पूरी तरह से असमर्थ पाया।

तब उन्होंने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना याचना की। उनकी पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और अपने सुदर्शन चक्र से भालू को मारकर राजा की रक्षा की। लेकिन राजा ने जब अपना घायल पैर देखा तो वो काफी दुखी और निराश हुए इसके बाद उन्होंने फिर से भगवान को याद किया। भगवान विष्णु के दर्शन देने के बाद राजा ने उनसे शारीरिक और मानसिक कष्टों से छुटकारा पाने का उपाय पूछा। इस पर भगवान ने बताया कि ये सब तुम्हारे पूर्व जन्मों का अपराध था। अब तुम मथुरा जाओ और वहां रहकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत करते हुए मेरे ‘वराह अवतार’ की पूजा करो। इस व्रत के फलस्वरूप तुम्हारे पैर एक बार फिर पहले की तरह ही हो जाएंगे। इसके बाद राजा ने वैसा ही किया और उन्हें न केवल उनका पैर वापस मिला बल्कि, हर तरह के दुखों से भी छुटकारा मिल गया।