नई दिल्ली। इस साल रक्षाबंधन का त्यौहार दो दिन 30 अगस्त और 31 अगस्त को मनाया जा रहा है। ये पर्व भाई-बहन के पवित्र बंधन राखी के त्यौहार को समर्पित है। बहनें और भाई इस दिन नए कपड़े पहनकर तैयार होते हैं। फिर बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है जिसके लिए उन्हें गिफ्ट और पैसे भी मिलते हैं। इस दिन घर में अलग-अलग तरह के पकवान बनते हैं। घरों में रिश्तेदारों का तांता लगता है। हालांकि 30 अगस्त को दिनभर भद्रा का साया है जो कि रात को 9 बजकर 2 मिनट पर समाप्त हो रही है ऐसे में बहनें अपने भाई की कलाई पर रात 09:02 पर राखी बांध सकती हैं। हालांकि हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ काम रात में नहीं किए जाते ऐसे में ज्यादातर लोग अगले दिन 31 अगस्त को ये पर्व मना रहे हैं।
अक्सर भद्रा काल के कारण शुभ कार्यों में रुकावट हो जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं ये होती क्या है। अगर आप भी उन्हीं लोगों में से एक हैं जो कि नहीं जानते भद्रा क्या है और क्यों इस दौरान शुभ कार्यों को करना वर्जित होता है तो नीचे दिए लेख को पढ़ें…
कौन हैं भद्रा
धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिष के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और न्याय के देवता शनिदेव की बहन है। सूर्यदेव की पुत्री होने के बाद भी भद्रा कठोर स्वभाव वाली थी। हर शुभ कार्य-पूजा पाठ में भद्रा रुकावट डालने का काम करती थी। जब भद्रा का आतंक बढ़ गया तो ऐसे में सूर्यदेव, ब्रह्माजी के पास गए और उनसे भद्रा पर काबू करने का आग्रह किया। भद्रा के बढ़ते आतंक पर रोक लगाई जा सके इसके लिए ब्रह्मा जी ने उन्हें पंचांग के प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया और कहा कि वो उस निश्चित समय के बाद किसी भी शुभ कार्यों में विघ्न नहीं डालेंगी। ऐसे में जब भी भद्रा का अशुभ समय चल रहा होता है तो कोई भी शुभ काम करने की मनाही होती है।
भद्रा में शुभ कार्य करने के होते हैं ये परिणाम
अगर कोई भद्रा काल में शुभ कार्य करता है तो भद्रा खुद उस व्यक्ति और काम का विनाश करने में जुट जाती है। पौराणिक कथाओं में इस बात का जिक्र किया गया है कि लंका पति रावण की बहन शूर्पणखा ने उसे भद्रा काल में ही राखी बांधी थी। इसी कारण रावण का विनाश हुआ और वो भगवान राम के हाथों मृत हुआ। यही वजह है कि भद्रा काल को अशुभ माना जाता है और इस दौरान कोई भी शुभ काम जैसे पूजा-पाठ, शादी, मुंडन और नए काम करने की मनाही होती है।