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आइए जानें और समझें गुग्गल क्या है? गुग्गल के लाभकारी एवं औषधीय प्रयोगों को समझें

गुग्गल एक राल जैसे पदार्थ को कहा जाता है। यह गुग्गल पेड़ से प्राप्त होता है। यह बहुत अधिक गर्मी के दौरान पौधे द्वारा उत्सर्जित एक गोंद राल होती है। यह कई रोगों को दूर करने में मदद करता है।

नई दिल्ली। गुग्गुल एक राल जैसे पदार्थ को कहा जाता है। यह गुग्गल पेड़ से प्राप्त होता है। यह बहुत अधिक गर्मी के दौरान पौधे द्वारा उत्सर्जित एक गोंद राल होती है। यह कई रोगों को दूर करने में मदद करता है। राल प्राप्त करने के लिए, मुख्य तने में गोलाई में कट लगाया जाता है।

इन कट्स के माध्यम से, सुगंधित तरल पदार्थ एक सुनहरे भूरे रंग या लाल भूरे रंग में तेजी से ठोस हो जाता है। सूखे राल में कड़वा सुगन्धित स्वाद और गंध होती है। यह प्राप्त राल ही गुग्गुल होती है जो औषधीय उद्देश्य के लिए प्रयोग की जाती है। गोक्षुरादि गुग्गुलु(gokshuradi guggulu) एक फूल वाला पौधा है जो उत्तरी अफ्रीका, मध्य एशिया और उत्तरी भारत के कई हिस्सों में पाया जाता है। इस पौधे की पत्तियां ट्राइफोलिएट होती हैं और झाड़ी की शाखाएं कांटेदार होती हैं। यह जननांग प्रणाली और मूत्र पथ को स्वस्थ रखने में मदद करता है। यह आयुर्वेदिक दवा शरीर से विषाक्त पदार्थों को खत्म करती है और गुर्दे को दोबारा जीवित करती है।

गुग्गुल एक प्रकार की ऐसी औषधि है जो राजस्थान में अधिक मात्रा में पाई जाती है यह पूरे भारत में पाई जाती है। वैसे आबू पर्वत पर पैदा होने वाला गुग्गुल अच्छा सबसे अच्छा माना जाता है। इसको हिन्दी, मराठी, गुजराती, कन्नड़ में गुग्गुल, तेलगू में महिषाक्षी और अंग्रेजी में इण्डियन बेदेलियम आदि नामो से जाना जाता है। गुग्गुल काले और लाल रंग का होता है। इसका स्वाद कड़ुवा होता है।

गुग्गुल का पेड़ रेतीली और पर्वतीय भूमि में पाया जाता है। इसके पत्ते छोटे-छोटे नीम के पत्तों के समान तथा फूल बिल्कुल छोटे-छोटे पांच पंखुड़ी वाले होते हैं। इसके फल छोटे-छोटे बेर के समान तीन धार वाला होता है जिसे गुलिया कहा जाता है। इसके फल पेट दर्द को दूर करने में लाभकारी है। गुग्गुल की प्रकृति गर्म होती है। यदि आपको इसके सभी गुणों का फायदा लेना है तो सुबह-सुबह एक गिलास पानी मे चुटकी भर गुग्गुल डालकर सेवन करना चाहिए।  गुग्गुल के फूल लाल रंग के छोटे, पंचदल युक्त होते हैं। पेड़ से डालियों से जो गोंद निकलता है, उसे गुग्गुल कहते हैं। इसमें रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के गुण पाये जाते हैं जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाते हैं।

क्या है गुग्गल

गुग्गल के पेड़ की छाल से जो गोंद निकलता है उसे गुग्गुल कहा जाता है । इस गोंद के इस्तेमाल से आप कई तरह के रोगों से बचाव कर सकते हो । यह आयुर्वेद का अमृत होने के कारण इसे अमृतम गुग्गल भी कह सकते हैं । एक तरह का छोटा पेड है इसकी कुल उंचाई 3 से 4 मीटर तक होती है। और इसके तने से सफेद रंग का दूध निकलता है जो सेहत के लिए बहुत लाभकारी होता है ।गुग्गुल गोंद की तरह होता है जो गर्म तासिर का और कड़वा होता है। नया गुग्गलु चिकना, सोने के समान, निर्मल, सुगन्धित, पीले रंग का तथा पके जामुन के समान दिखने वाला होता है। इसके अलावा नवीन गुग्गुलु फिसलने वाला, वात, पित्त और कफ को दूर करने वाला, धातु और शुक्राणु या स्पर्म काउन्ट बढ़ाने वाला और शक्तिवर्द्धक होता है।पुराना गुग्गुलु कड़वा, तीखा, सूखा, दुर्गन्धित, रंगहीन होता है। यह अल्सर, बदहजमी, अश्मरी या पथरी, कुष्ठ, पिडिका या मुँहासे, लिम्फ नॉड, अर्श या बवासीर, गण्डमाला या गॉयटर, कृमि, खाँसी, वातोदर, प्लीहारोग या स्प्लीन संबंधी समस्या, मुख तथा आँख  संबंधी रोग दूर करने में सहायता करता है।

aayurveda

आयुर्वेदीय ग्रंथों में महिषाक्ष, महानील, कुमुद, पद्म और हिरण्य गुग्गुलु इन पाँच भेदों का वर्णन मिलता है। महिषाक्ष गुग्गुलु भौंरे के समान काले रंग का होता है। महानील गुग्गुलु  नीले रंग का, कुमुद गुग्गुलु कुमुद फल के समान रंगवाला, पद्म गुग्गुल माणिक्य के समान लाल रंग वाला तथा हिरण्याक्ष गुग्गुलु स्वर्ण यानि सोने के समान आभा वाला होता है। यह 1.2-1.8 मी ऊँचा, शाखित, छोटे कांटा वाला वृक्षक होता है। यह गाढ़ा सुगन्धित, अनेक रंग वाला, आग में जलने वाला तथा धूप में पिघलने वाला, गर्म जल में डालने से दूध के समान हो जाता है। व्यवहारिक प्रयोग में आने वाला गुग्गुलु हल्का पीले वर्ण का निर्यास होता है, जो कि छाल से प्राप्त होता है, यह अपारदर्शी, रक्ताभ-भूरे रंग का एवं धूसर यानि भूरा-काले रंग का होता है। गुग्गुल तीसरे दर्जे का गर्म प्रकृति वाला एवं सूखा फल होता है। यह वायु को नष्ट करने वाला, सूजन को दूर करने वाला, दर्द को नष्ट करने वाला, पथरी, बवासीर , पुरानी खांसी , फेफड़ों की सूजन, विष को दूर करने वाला, काम की शक्ति बढ़ाने वाला, टिटनेस, दमा , जोड़ों का दर्द तथा जिगर के रोग आदि प्रकार के रोगों को ठीक करने वाला होता है।

गुग्गुल का रासायनिक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि गुग्गुल में सुगंधित तेल 1.45 प्रतिशत, गोंद 32 प्रतिशत और ग्लियोरेजिन, सिलिका, कैल्शियम , मैग्नीशियम तथा लोहा आदि भी इसमें कुछ मात्रा में पाये जाते हैं। यह रक्तशोधन करके सारे शरीर में उत्तेजना उत्पन्न करता है। गुग्गुल में रक्त (खून) के श्वेत कणों को बढ़ाने का विशेष गुण होतो है जिसके कारण से यह गंडमाला रोग में बहुत लाभकारी है। श्वेत रक्तकण हमारी शरीर में रोग खत्म करने की शक्ति को बढ़ाती है जिसके फलस्वरूप कई प्रकार के रोग नहीं होते हैं। इसकी 2 से 4 ग्राम की मात्रा में गुग्गुल का सेवन कर सकते हैं।

गुग्गल ब्रूसेरेसी कुल का एक बहुशाकीय झाड़ीनुमा पौधा है। अग्रेंजी में इसे इण्डियन बेदेलिया भी कहते हैं। रेजिन का रंग हल्का पीला होता है परन्तु शुद्ध रेजिन पारदर्शी होता है। यह पेड़ पूरे भारत के सूखे क्षेत्रों में पाया जाता है। यह पौधा छोटा होता है । सर्दी और गर्मी में धीमी गति से बढ़ता है। इसके विकास के लिए वर्षा ऋतु उत्तम रहती है। इस पेड़ के गोंद को गुग्गुलु, गम गुग्गुलु या गुग्गल के नाम से जाना जाता है। गोंद को पेड़ के तने से चीरा लगा के निकाला जाता है। गुग्गुलु सुगंधित पीले-सुनहरे रंग का जमा हुआ लेटेक्स होता है । भारतभूमि दिनोदिन वनहीन होती जा रही है इस कारण एवम अधिक कटाई होने से यह आसानी से प्राप्त नहीं हो पा रहा है। भविष्य में केवल एक ही गूगल बचेगा इस लगता है ।

प्राचीन परंपरा

पुराने समय में हर मरघट (आज का मुक्तिधाम) में गूगल के वृक्ष हुआ करते थे । मान्यता थी कि मुर्दे को जलाने के बाद हाथ-मुँह धोकर गुग्गल की पत्ती चबाने से हवा-बाधा नहीं लगती । पहले समय मे मरघट एकांत में होते थे, जहां भूत–प्रेतों, जिन्न, पिशाच और बाहरी हवाओं का वास होता था। गुग्गल देववृक्ष है । मरघट से लौटने पर इसकी पत्तियां चबाने से कोई हवा नहीं लगती । नकारात्मक दोष दूर होते हैं । मानते थे कि ये देववृक्ष हमारे शरीर व स्वास्थ्य की सदा रक्षा करते हैं । परम् शिव भक्त रावण रचित अद्भुत दुर्लभ तंत्रशास्त्र “मंत्रमहोदधि” स्कन्ध पुराण के भाग खंड 4 अध्याय, 12 में तथा अनेको यूनानी मुस्लिम ग्रंथो के अनुसार यदि कोई श्मशान, मुक्तिधाम में गुग्गल के पेड़ों को लगाता है, तो सात पीढ़ी तक सन्तति दोष नहीं होता । पितरों की कृपा से उसके यहां कभी आर्थिक तंगी नहीं होती । परिवार में कभी असाध्य रोग नहीं होते । रोगों या व्याधियों के कारण मृत्यु नहीं होती ।

5000 से अधिक भारतीय ग्रंथों में गुग्गल की “स्तुति” की गई है ।

अष्टांग से लेकर षोडशांग सारे धूप में ही आपको गुग्गुल के बारे में जानकारी मिलेगी| गुग्गल को आग या हवन में डालने पर वह स्थान सुंगध से भरकर पूरा वायुमण्डल शुद्ध व पवित्र हो जाता है। इसलिये इसका धूप में उपयोग किया जाता है । यह कटुतिक्त तथा उष्ण है और कफ, वात, कास, कृमि, क्लेद, शोथ और बबासीरनाशक है । कहा जाता है धूना, गुग्गुल, कपूर एकसाथ जलाना धूप आरती के लिए सबसे उत्कृष्ट होता है| यह एक सुन्दर सी गंध आपके आसपास बना देती है और साथ ही बातावरण को शुद्ध कर देती है| आप जब भी धूप जलाय तब तब अपने घर के खिड़की और दरवाजे जरूर खुले हुए ही रखे इससे इसके धुआँ बाहर निकल जाएगी और साथ ही एक सुन्दर ही खुशबू आपके पूरी घर में रह जाती है| हो सके तो आप सुबह और शाम दोनों समय गुग्गुल से धूप करें और विशेष पूजा के दिन भी आरती करते हुए इसे जरूर जलाय| धूना, कपूर और गुग्गुल एक साथ जलाने से आपके घर से और मन से नेगेटिव एनर्जी यानि ऊर्जा कम हो जाती है और एक सकारात्मकता बानी रहती है जिससे आपको नए काम करने में और सोचने में नई ऊर्जा मिलती है|

गुग्‍गुल कैसा दिखता है ?

गुग्‍गुल दिखने में काले और लाल रंग का जिसका स्‍वाद कड़वा होता है। इसकी प्रवृत्‍ति गर्म होती है। शुद्ध गुग्गल का सेवन पेट की गैस, सूजन, दर्द, पथरी, बवासीर पुरानी खांसी, यौन शक्‍ति में बढौत्‍तरी, दमा, जोडों का दर्द, फेफड़े की सूजन आदि रोगों को दूर करता है । सुश्रुत संहिता, चरक संहिता जैसे आयुर्वेद के अनेकों प्राचीन ग्रंथों में गुग्गुलु का प्रयोग मोटापा (मेदरोग) के उपचार तथा उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, धमनियों का सख्त होना आदि हेतु निर्धारित किया गया है।  यह वसा के स्तर को सामान्य रखने और शरीर में सूजन कम करने में विशेष उपयोगी है । मुख संबंधित किसी भी प्रकार की समस्‍या में गुग्‍गुल का सेवन लाभकारी है । गुग्गुल को मुंह में रखने से या गर्म पानी में घोलकर दिन में 3 से 4 बार कुल्ला व गरारे करने से मुंह के अन्दर के घाव, छाले व जलन ठीक हो जाते हैं।

थायराइड ,ग्रंथिशोथ से छुटकारा

आयुर्वेद की भाषा मे इसे ग्रंथिशोथ कहते हैं । रक्त का संचार पूरी तरह न होने से गले मे सूजन आने लगती है । लगातार दर्द रहता है । गर्दन हिलाने में परेशानी होती है । गुग्गल थायराइड ग्रंथि को क्रियाशील करता है, शरीर में वसा को जलाने की गतिविधियों को बढ़ाकर गर्मी उत्पन्न करता है । गुग्गल कोलेस्‍ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को कम करता है। यह तीन महीने में 30% तक कोलेस्‍ट्रॉल घटा सकता है । गुग्‍गुल का सेवन सुबह-शाम गुड़ के साथ सेवन करने से कई प्रकार के गर्भाशय के रोग ठीक हो जाते हैं। अगर रोग बहुत जटिल है तो 4 से 6 घंटे के अन्तर पर इसका सेवन करते रहना चाहिए । गुग्गल के प्रयोग से शरीर का मेटाबॉलिज्‍म तेज होकर मोटापा मिटने लगता है । इसके साथ ही अगर बार-बार गैस बनने की बीमारी है । आयुर्वेद की वैज्ञानिक संस्कृत टीकाओं जैसे चरक की संस्कृत टीका, वागभट्ट की संस्कृत टीका में भी गुग्गल की स्तुतियों से भरी पड़ी है । गुग्गल के गुणकारी गुणों से प्रभावित होकर “ऑर्थोकी” में इसका मिश्रण किया है ।

गुग्गल को औऱ भी नामों से जाना जाता है

आयुर्वेद के संस्कृत निघण्टु के अनुसार देवधूप, जटायु, कौशिक, पुर, कुम्भ, उलूखलक, महिषाक्षो, महानील ये गुग्गल के संस्कृत नाम हैं ।

हिंदी में गूगल, बंगला, मराठी, गुजराती में गुग्गुल, कंन्नड में इवडोल, फारसी में बियाजहूदान, अरबी में मुष्किल अर्जक, इंग्लिश में इंडियन डेलियम कहा जाता हैं।

गुग्गल के गुण

कड़वा, पित्तकारक, दस्तावर, चरपरा, टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला इसी कारण इसे ऑर्थोकी में मिलाया है । वीर्यदोष नाशक, वीर्य बढ़ाने वाला,

नया गुग्गल बल पुष्टिकारक होता है । मैथुन शक्ति बढ़ाता है । अमृतम गुग्गल त्रिदोष नाशक, वात, पित्त व कफ को जीतने वाला होता है । प्रमेह, मधुमेह, पथरी, कुष्ठ , आमवात, ग्रंथिशोथ Thyroid थायराइड , सूजन, कृमिरोग, नष्ट करने वाला होता है । गुग्गुल को गुग्गल के नाम से भी जाना जाता है। यह एक पौधे का राल है जिसे कम्फोरा मुकुल (Commiphora Mukul) के नाम से जाना जाता है। यह पौधा एक छोटे पेड़ के रूप में बढ़ता है और 4-5 फीट की ऊंचाई तक पहुंचता है। इसकी शाखाएं कांटेदार होती हैं। ये पौधे उत्तरी अफ्रीका से लेकर मध्य एशिया तक पाए जाते हैं, लेकिन ये उत्तरी भारत में सबसे अधिक पाए जाते हैं। ताज़ा गुग्गुल नरम और चिपचिपा होता है। यह राल स्वाद में कड़वी और तासीर में गर्म होती है।  गुग्गुल एक अद्भुत प्राकृतिक हर्ब गुग्गल को पेड़ों का पसीना भी कहते हैं । यह पुराने वृक्ष के ताने से गाड़ा रस तरल पदार्थ के रूप में बहता रहता है । इसी चिपचिपे पानी को इकट्ठा कर सुखा लेते हैं ।

गुग्गल को शुध्द कैसे करें ??

ओषधि हेतु उपयोग करने से पहले इसे त्रिफला अमृता के काढ़े में उबालकर, ठंडा रहने पर ऊपर जो मलाई होती है उसे निकाल कर काम मे लाते हैं ।

महिषाक्षो, महानीलो,

गजेंद्राणाम, हितावुभो

तथा

दीपनः पिच्छीलो बल्य:

कफवात व्रणः पचिः

इस तरह गुग्गल की प्रशंसा में 200 करीब संस्कृत श्लोकों का वर्णन है । गुग्गुल एक वृक्ष है| इससे मिलनेवाले राल जैसे पदार्थ को ‘गुग्गल’ कहा जाता है जिसे धुप करने में इस्तेमाल किया जाता है| अगर भारत की बात करें तो भारत में इस जाति के दो प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं| यह भारत के कर्नाटक, राजस्‍थान, गुजरात तथा मध्य प्रदेश राज्‍यों में उगता है। कुछ कुछ जगह से प्राप्त गुग्गुल का रंग पीलापन लिए श्वेत तथा अन्य कई जगह का गहरा लाल होता है| इसमें मीठी सी एक महक रहती है जिसको अग्नि में जलाने पर यह जगह सुंगध से भर जाता है| इसलिये इसे धूप के रूप में व्यव्हार किया जाता है| गोक्षुरादि गुग्गुलु कुछ दवाओं के साथ आपस में क्रिया कर सकता है। यदि आप गोक्षुरादि गुग्गुलु का उपयोग शुरू करने से पहले कोई दवा ले रहे हैं तो डॉक्टर से सलाह करना सबसे अच्छा है।

 

गुग्गल से मिटने या दूर होने वाले रोग

गुग्‍गुल कफ, वात, कृमि और अर्श नाशक होता है ।

इसलिये ही अमृतम पाइल्स की माल्ट में इसलिए ही गुग्गल मिलाकर निर्मित किया है । पाइल्स की माल्ट गुदा के मस्सों को सुखा देता है तथा पुनः नहीं होने देता इसके अलावा इसमें सूजन और जलन को कम करने के गुण भी होते हैं ।

 

गुग्गल के योग से निर्मित दवाएँ

ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट, ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल

(गुग्गल एवं स्वर्ण भस्म युक्त) ।

ज्ञात हो कि ऑर्थो से पीड़ितों के लिए बहुत ही असरकारी है ।

उन दोनों में गुग्गल विशेष रूप से मिलाया है ।

रोगाधिकार– गठियावाय, मांसपेशियों में खिंचाव, गर्दन, पीठ, कमर व कंधों का दर्द, जोड़ों, घुटनों एवम बदन दर्द सहित सर्व वात विकार नाशक है ।

स्नायु मण्डल पुष्टि शक्तिदायक

ऑर्थोकी अमृतम की अद्भुत

वात-विनाशक ओषधि है ।

7 दिन लगातार सेवन से शरीर के सभी नए- पुराने वात-विकार, हाहाकार कर निकल जाते हैं ।

बार-बार होने वाला पेट खराब, अक्सर कब्ज होने के कारण आई शिथीलता, कमजोरी व आलस्य मिटाता है ।

रक्त में जमे यूरिक एसिड घोलने में सहायक है

तथा ग्रंथिशोथ। (Thyriod) में। लाभकारी है ।

गुग्गल युक्त ऑर्थोकी

हड्डियों से जुड़ी समस्‍याओं का समाधान करने में सहायक है । हड्डियों में किसी भी प्रकार की परेशानी में गुग्गुल युक्त ऑर्थोकी (Orthokey) बहुत उपयोगी होता है। हड्डियों में सूजन, चोट के बाद होने वाले दर्द और टूटी हड्डियों को जोड़ने एवं रक्त के जमाव को दूर करने में बहुत लाभकारी है।

ऑर्थोकी कमजोर हड्डियों को ताकत देकर बलशाली बनाता है ।

गिरने का भय मिटाता है ।

गुग्गल को गुड़ के साथ मिलाकर सेवन करने से स्त्रियों के गर्भाशय के रोग दूर करता है ।

गर्भाशय तथा महिलाओं के विकार, प्रदर रोगों के लिए गुग्‍गुल का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए गुग्गुल को सुबह-शाम गुड़ के साथ सेवन करने से कई प्रकार के गर्भाशय के रोग ठीक हो जाते हैं। अगर रोग बहुत जटिल है तो 4 से 6 घंटे के अन्तर पर इसका सेवन करते रहना चाहिए

सदा स्वस्थ और सुंदर बने रहने के लिये

अमृतम नारी सौन्दर्य माल्ट

का जीवन सेवन। करना महिलाओं

के लिए अति उत्तम रहता है ।

यह महिलाओं के मन की मलिनता मिटाने बहुत ही सहायक है ।

दर्द और सूजन से राहत दें

गुग्‍गुल में मौजूद इन्फ्लमेशन गुण दर्द और सूजन में राहत देने में मदद करता है। इसके अलावा यह शरीर के तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाने में भी बहुत मदद करता है । साथ ही ऑर्थोकी भी लेवें ।

त्‍वचा व चर्म रोगों में फायदेमंद- गुग्‍गुल

खून की खराबी के कारण शरीर में होने वाले फोड़े, फुंसी व चकत्ते आदि के कारण गुग्‍गुल बहुत लाभकारी होता है। क्‍योंकि इसके सेवन से खून साफ होता है। त्‍वचा संबंधी समस्‍या होने पर इसके चूर्ण को सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें।

स्किनकी टेबलेट व प्योर की सिरप बहुत लाभकारी है ।

कब्‍ज के कब्जे से मुक्त करें- 

गुग्गल

अगर आपको कब्‍ज की शिकायत रहती हैं तो आपके लिए गुग्‍गुल का चूर्ण फायदेमंद हो सकता है। इसके लिए लगभग 5 ग्राम गुग्गुल में सामान मात्रा में त्रिफला चूर्ण को मिलाकर रात में हल्का गर्म पानी के साथ सेवन करने से लम्बे समय से बनी हुई कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है तथा शरीर में होने वाले सूजन भी दूर हो जाते हैं ।

सहायक हर्बल ओषधि के रूप में

कब्ज की चूर्ण, (Kabj Key Churn)

फ्रेश की चूर्ण,

सहज अनारदाना चूर्ण का सेवन करें

जिन्हें हमेशा कब्जियत बनी रहती हो वे कीलिव स्ट्रांग सिरप नियमित लेते रहें ।

मुंह स्‍वास्‍थ्‍य व मुख रोगों के लिए बेहद उपयोगी

मुंह से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्‍या में गुग्‍गुल का सेवन करना अच्‍छा रहता है। गुग्गुल को मुंह में रखने से या गर्म पानी में घोलकर दिन में 3 से 4 बार इससे कुल्ला व गरारे करने से मुंह के अन्दर के घाव, छाले व जलन ठीक हो जाते हैं ।

गंजापन दूर करें-गूगल

आधुनिक जीवनशैली और गलत खान-पान के कारण आजकल बढ़ी उम्र के लोग हीं नहीं बल्कि युवा भी गंजेपन का शिकार हो रहे हैं। अगर आपकी भी यहीं समस्‍या हैं तो आप गुग्गुल को सिरके में मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से सिर पर गंजेपन वाले स्थान पर लगाएं इससे आपको लाभ मिलेगा । अन्यथा

कुंतल केयर हेयर आयल

अच्छी तरह बालों में लगाकर

अमृतम हर्बल शेम्पू

से बाल धोवें । यह खारे, बोरिंग व प्रदूषित पानी से बालों की रक्षा करता है ।

अम्‍लपित्त से छुटकारा

आमतौर पर उल्‍टा-सीधा या अधिक मिर्च मसाले युक्त आहार लेने से अम्‍लपित्त यानि खट्टी डकारों की समस्‍या हो जाती है। इस समस्‍या से बचने के लिए आप गुग्‍गुल का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए 1 चम्मच गुग्गुल का चूर्ण एक कप पानी में मिलाकर रख दें। लगभग एक घंटे के बाद छान लें। भोजन के बाद दोनों समय इस मिश्रण का सेवन करने से अम्लपित्त की समस्‍या से छुटकारा मिल जाता है ।

अथवा इससे बने योग जिओ माल्ट

का सेवन एक ख़ुराक- करे अम्ल पित्त ( Acidity) का नाश !

यह गुलकन्द से निर्मित है ।

उच्च रक्तचाप नाशक – गुग्गल

रक्तचाप के स्तर को कम और सामान्य स्तर पर बनाए रखने में गुग्‍गुल बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा गुग्‍गुल दिल को मजबूत रखता है और दिल के टॉनिक के रूप में जाना जाता है !

मोटापा नाशक– गुग्गल

गुग्‍गुल का इस्‍तेमाल शरीर में फैट को कम करने के लिए किया जाता है। सदियों से यह एक मोटापा विरोधी एजेंट के रूप में काम करता है। अगर आप मोटापे की समस्‍या से परेशान है तो शुद्ध गुग्गुलु की 1 से 2 ग्राम को गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करें। गुग्गुल शुद्ध करने के लिए इसे त्रिफला के काढ़े और दूध में पका लें।

सेवन में सावधानी

गुग्‍गुल की प्रकृति गर्म होने के कारण इसका ज्‍यादा इस्‍तेमाल करने पर इसे गाय के दूध या घी के साथ सेवन करे। साथ ही इसका प्रयोग करते समय तेज और मसालेदार भोजन, अत्याधिक भोजन, या खट्टे खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।

बच्चों को खिलाएं – गुग्गल युक्त

चाइल्ड केअर माल्ट

पेट के सभी रोग होंगे दूर हो जाएंगे । बच्चों की

हेल्थ के लिए बहुत ही उपयोगी है ।

पीलिया रोग, खून की कमी, भूख न लगना आदि यकृत रोगों। में

कीलिव माल्ट।

अत्यंत लाभकारी है..

संक्रमण के कारण गले की सूजन और दर्द को ठीक करने में सहायक है गुग्गल और कफमुक्ति माल्ट ये आसान उपाय आपको हमेशा स्वस्थ्य रख सकते हैं ।

आयुर्वेद का सूत्र है

पहला सुख निरोगी काया आदि तथा अपना स्वास्थ्य, सबका साथ। हमारा स्वास्थ्य अच्छा होगा, तब ही हम सबका साथ निभा सकते हैं और दुनिया भी हमारा साथ देती है। शास्त्रों में स्वस्थ शरीर बनाये रखने व स्वास्थ्य के विषय बहुत से योग, प्रयोग, धर्म-कर्म, साधना-उपासना, व्रत-उपवास, अलग-अलग धर्मों की विभिन्न मान्यताएँ आदि बहुत लंबी राम कहानी लिखी पड़ी है। “चंद्रकांता” सन्तति नामक पुस्तक -लेखक देवकीनंदन खत्री ने गुग्गल वृक्षों के पत्ते, तने, जड़ आदि के अनेकों तांत्रिक तथा यंत्र–मंत्र की सिद्धि हेतु अदभुत उपाय सुझाये हैं ।वृक्षों में पंचमहाभूत यथा- आकाश, अग्नि, जल, वायु और पृथ्वी ये सभी होते हैं । वृक्ष “अग्निम” अर्थात सूर्य की तरह देदीप्तिमान होते हैं । जल को “अंजुमन” में भरकर अर्पित करने से परम् शांति मिलती है।“यश” कीर्ति वृक्ष लगाने से स्वतः ही प्राप्त होती है । गुग्गल दर्द दूर कर मर्द बनाने में सहायक है । शरीर के सभी तरह के दर्द व वात रोगों में बहुत उपयोगी है।

गोक्षुरादि गुग्गुलु के स्वास्थ्य लाभ

गुर्दे की पथरी का इलाज़

गोक्षुरादि गुग्गुलु(gokshuradi guggulu) में ऐसे गुण होते हैं जो गुर्दे की पथरी को तोड़ने या उनके आकार को कम करने के लिए कहे जाते हैं ताकि स्वस्थ मूत्र पथ को बनाए रखने में मदद मिल सके।

मूत्र के  बहाव को स्वस्थ करे

यह जीवाणुरोधी गुणों के साथ मूत्र के स्वस्थ प्रवाह को बनाए रखता है और पेशाब करते समय होने वाली जलन को भी कम करता है।

प्रजनन प्रणाली स्वस्थ रखे

गोक्षुरादि गुग्गुलु(gokshuradi guggulu) में स्पर्म के बनने और ओवुलेशन बढ़ाने के लिए जाना जाता है। यदि आप बांझपन की समस्याओं से गुजर रहे हैं तो यह फायदेमंद है| यह शुक्राणुओं की गुणवत्ता में भी सुधार करता है।

मोटापा घटाए—-

यह एक प्राकृतिक डियूरेटिक है जो मोटापे को ठीक करने के लिए उपयोगी है। यह ताकत को बढ़ाता है फैट को कम करता है।

जोड़ों के दर्द में आराम दे—

गोक्षुरादि गुग्गुलु(gokshuradi guggulu)मांसपेशियों को आराम देने में सहायक है। यह जोड़ों और मांसपेशियों के दर्द को कम करने में उतना ही फायदेमंद है।

मासिक धर्म चक्र को नियमित करे

गोक्षुरादि गुग्गुलु(gokshuradi guggulu)को मासिक धर्म चक्र को नियमित करने के लिए जाना जाता है क्योंकि यह एक यूरिन को उत्तेजित करता है। यह पीकोड और पीकॉस को भी ठीक करता है।

वाइट डिस्चार्ज

यह प्रजनन प्रणाली को स्वस्थ रखने में मदद करता है| यह महिलाओं में वाइट डिस्चार्ज को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।

टिश्यू को डिटॉक्सिफाई करता है

त्रिफला के गुणों से युक्त यह आयुर्वेदिक दवा हमारे शरीर में टिश्यूओं को डिटॉक्स करने और उन्हें फिर से जीवित करने में भी अत्यधिक उपयोगी है।

बवासीर

एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के साथ गोक्षुरादि गुग्गुलु का उपयोग बवासीर और फिस्टुला को ठीक करने के लिए किया जाता है।

कोलेस्ट्रोल

गुग्गुलु के गुण कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए जाने जाते हैं और ये खून के बहाव को भी कण्ट्रोल करता है।

बिस्तर गीला करने की समस्या

गोक्षुरादि गुग्गुलु(gokshuradi guggulu)मूत्र की समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है जो बदले में बिस्तर गीला करने की समस्याओं में मदद करता है।

गाल ब्लैडर की पथरी कम करे

गुग्गुलु में मौजूद गुण पित्ताशय की पथरी के बनने को रोकने और मूत्र पथ को स्वस्थ रखते हुए उनके आकार को कम करने के लिए जाने जाते हैं|

गठिया का इलाज़ करे

गठिया के इलाज के लिए बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जाता है| यह तीव्र गठिया का इलाज करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

प्रोस्टेट के आकार को बनाए रखता है

गोक्षुरादि गुग्गुलु प्रोस्टेट के आकार और कामकाज को बनाए रखने में मदद करता है।

गोक्षुरादि गुग्गुलु के साइड इफेक्ट्स 

गुग्गुल का अधिक मात्रा में सेवन करना यकृत के लिए हानिकारक हो सकता है। गुग्गुल का अधिक सेवन से कमजोरी, मूर्च्छा (बेहोशी) , अंगों में ढ़ीलापन, मुंह की सूजन तथा दस्त अधिक आने की समस्यां उत्पन्न हो सकती है। मुंह में छाले , रक्तपित्त , आंखों में जलन, उष्ण वात, पित्त से होने वाला सिरदर्द और पैर का फूल जाना आदि रोगों की अवस्था में गुग्गुल गाय के दूध का घी के साथ सावधानी पूर्वक सेवन करना चाहिए नहीं तो इससे हानि हो सकती है।

रक्तस्राव का कारण हो सकता है: —

सर्जरी से कम से कम 2 सप्ताह पहले गोक्षुरादि गुग्गुलु को लेने से बचना चाहिए क्योंकि इससे सर्जरी के दौरान और बाद में रक्तस्राव का खतरा बढ़ सकता है। यह रक्तस्राव विकारों वाले लोगों में रक्त के थक्के बनने को धीमा भी कर सकता है।

गैस्ट्रिक जलन:—

 इसकी बहुत ज्यादा खुराक लेने से पेट में दर्द, सिरदर्द, मतली, त्वचा पर चकत्ते, खुजली, हिचकी और दस्त हो सकते हैं।

उच्च कोलेस्ट्रॉल वाले रोगियों में लक्षण खराब हो सकते हैं: —

यह उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए उचित नहीं है क्योंकि गुग्गुल शरीर में एस्ट्रोजन को कम कर सकता है और कुछ स्थितियों के बिगड़ने का कारण हो सकता है। थायरॉयड स्थिति वाले लोगों को भी इसके उपयोग से बचना चाहिए।

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताएं इससे बचें: —-

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को इसे लेने  से बचना चाहिए या इसे डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए क्योंकि यह दवा मासिक धर्म के बहाव को बढाने के लिए जानी जाती है।

गुग्गुल के सेवन काल में देर रात तक जागना और दोपहर को सोना नहीं चाहिए क्योंकि इससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। खट्टे पदार्थ, अधिक भोजन, श्रम, धूप, मद्य और क्रोध आदि अवस्था में गुग्गुल का उपयोग करने से हानि हो सकती है। गुग्गुल के दोषों को दूर करने वाला कतीरा द्वारा गुग्गुल के गुणों को सुरक्षित रखकर इसके दोषों को दूर करता है।

आवश्यक सावधानियां :

गुग्गुल का सेवन करने वाले रोगियों को खटाई, मिर्च, कच्चे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए और न ही संभोग क्रिया करनी चाहिए।

गुग्गुल का सेवन करने वाले रोगी को शराब, मदिरा और कोई भी नशें का पदार्थं जो वह सेवन करता हो तुरन्त ही छोड़ देना चाहिए।

इसका सेवन करने वालों को क्रोध नहीं करना चाहिए।

कई योग गुग्गुल के ऐसे भी होते हैं जिनमें नाम मात्र का भी परहेज नहीं होता है जैसे-योगराज गुग्गुल इत्यादि।

गोक्षुरादि गुग्गुलु कुछ दवाओं के साथ आपस में क्रिया कर सकता है। यदि आप गोक्षुरादि गुग्गुलु का उपयोग शुरू करने से पहले कोई दवा ले रहे हैं तो डॉक्टर से सलाह करना सबसे अच्छा है।

गोक्षुरादि गुग्गुलु का उपयोग कैसे करें?

डॉक्टर के पर्चे के आधार पर इसकी 1 से 2 गोलियां दिन में 2 से 3 बार ली जा सकती हैं। यह आम तौर पर आपकी स्थिति के आधार पर मुश्ता, पशनबहेडा, उशीरा या कुछ अन्य आयुर्वेदिक तत्वों के पानी के काढ़े के साथ लिया जाता है।

 

1. क्या इसे भोजन से पहले या बाद में लिया जा सकता है?

गोक्षुरादि गुग्गुलु(gokshuradi guggulu) को पानी के साथ या दूध के पहले और बाद में लिया जा सकता है|

 

2. क्या गोक्षुरादि गुग्गुलु को खाली पेट लिया जा सकता है?

गोक्षुरादि गुग्गुलु को भोजन से पहले लिया जा सकता है, लेकिन इसका सेवन कैसे करें इस बारे में अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें|

 

3. क्या गोक्षुरादि गुग्गुलु को पानी के साथ लिया जा सकता है?

हां, गोक्षुरादि गुग्गुलु(gokshuradi guggulu)का सेवन पानी के साथ किया जा सकता है।

 

गुग्गल के गुण

कड़वा, पित्तकारक, दस्तावर, चरपरा, टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला इसी कारण इसे ऑर्थोकी में मिलाया है । वीर्यदोष नाशक, वीर्य बढ़ाने वाला, नया गुग्गल बल पुष्टिकारक होता है । मैथुन शक्ति बढ़ाता है । अमृतम गुग्गल त्रिदोष नाशक, वात, पित्त व कफ को जीतने वाला होता है । प्रमेह, मधुमेह, पथरी, कुष्ठ , आमवात, ग्रंथिशोथ, थायराइड , सूजन, कृमिरोग, नष्ट करने वाला होता है ।