
नई दिल्ली। हर साल अश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन आसमान से अमृत की वर्षा होती है। इस अमृत को ग्रहण करने के लिए खीर बनाकर रात में छत पर रखने की परंपरा है। रात भर बरसने वाली चांदनी और गिरने वाली ओस खीर में घुलकर उसे अमृत तुल्य बना देती है। माना जाता है कि इस खीर को खाने से त्वचा संबंधी और अन्य कई रोग दूर होते हैं। इसके अलावा, इसे मां लक्ष्मी के जन्म दिवस के रूप में भी मनाते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान आज के दिन ही माता लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। इसलिए शरद पूर्णिमा को मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व होता है। तो आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन-विधि क्या है?
शुभ-मुहूर्त
अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 09 अक्टूबर की सुबह 03 बजकर 41 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 10 अक्टूबर की सुबह 02 बजकर 59 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। वहीं, मां लक्ष्मी की पूजा के शुभ-मुहूर्त की बात करें तो सुबह 04 बजकर 40 मिनट से 05 बजकर 29 मिनट तक ब्रम्ह मुहूर्त में, इसके बाद दोपहर 11 बजकर 45 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त में और शाम 06 बजकर 18 मिनट से 04 बजकर 21 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग में मां लक्ष्मी की पूजा का शुभ योग बन रहा है। इस दौरान माता की पूजा करना विशेष फलदायी होता है।
पूजा-विधि
1. शरद पूर्णिमा के दिन सुबह स्नानादि करने के बाद घर के मंदिर को अच्छी तरह से साफ कर लें।
2.इसके बाद पूजास्थल पर गंगा जल छिड़क कर उसे स्वच्छ कर ले और वहां एक चौकी स्थापित करें। अब इस पर पीला वस्त्र बिछाकर मां लक्ष्मी और विष्णु जी की प्रतिमा या फोटो की स्थापना करें।
3.तत्पश्चात भगवान को गंगाजल छिड़क कर स्नान कराएं।
4.अब एक कलश में जल भरकर कलश स्थापित करें।
5.इसके बाद प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक जलाकर कमल और गुलाब का पुष्प अर्पित करें।
6.अब उन्हें सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं।
7.पूजा के बाद मां कनकधारा स्त्रोत और क्षी विष्णुसहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करें।
8.इसके बाद माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विधिपूर्वक आरती करें।
9.अंत में भगवान को प्रणाम कर भूल-चूक के लिए क्षमा याचना करें।