नई दिल्ली। शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami) आज यानी 4 अप्रैल को मनाई जा रही है। इस दिन माता शीतला (Mata Sheetala) की पूजा की जाती है। चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतलाष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। इस दिन माता की पूरी विधि-विधान से की जाती है।
शीतला अष्टमी तिथि
इस साल शीतला सप्तमी 3 अप्रैल की है।
शीतला अष्टमी शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 04, 2021 को सुबह 04:12 से
अष्टमी तिथि समाप्त – अप्रैल 05, 2021 को सुबह 02:59 तक
शीतला सप्तमी व्रत की कथा
शीतला सप्तमी के व्रत की कई कथाएं प्रचलित हैं एक कथा के अनुसार एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया व उसकी दो बहुओं ने व्रत रखा। उस दिन सभी को बासी भोजन ग्रहण करना था। इसलिये पहले दिन ही भोजन पका लिया गया था। लेकिन दोनों बहुओं को कुछ समय पहले ही संतान की प्राप्ति हुई थी कहीं बासी भोजन खाने से वे व उनकी संतान बिमार न हो जायें इसलिये बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा अर्चना के पश्चात पशओं के लिये बनाये गये भोजन के साथ अपने लिये भी रोट सेंक कर उनका चूरमा बनाकर खा लिया। जब सास ने बासी भोजन ग्रहण करने की कही तो काम का बहाना बनाकर टाल गई। उनके इस कृत्य से माता कुपित हो गई और उन दोनों के नवजात शिशु मृत मिले।
जब सास को पूरी कहानी पता चली तो उसने दोनों को घर से निकाल दिया। दोनों अपने शिशु के शवों को लिये जा रही थी कि एक बरगद के पास रूक विश्राम के लिये ठहर गई। वहीं पर ओरी व शीतला नामक दो बहनें भी थी जो अपने सर में पड़ी जूंओं से बहुत परेशान थी। दोनों बहुओं को उन पर दया आयी और उनकी मदद की सर से जूंए कम हुई तो उन्हें कुछ चैन मिला और बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाये उन्होंने कहा कि हरी भरी गोद ही लुट गई है इस पर शीतला ने लताड़ लगाते हुए कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा। बहुओं ने पहचान लिया कि साक्षात माता हैं तो चरणों में पड़ गई और क्षमा याचना की, माता को भी उनके पश्चाताप करने पर दया आयी और उनके मृत बालक जीवित हो गये। तब दोनों खुशी-खुशी गांव लौट आयी। इस चमत्कार को देखकर सब हैरान रह गये। इसके बाद पूरा गांव माता को मानने लगा।
शीतला सप्तमी व्रत व पूजा की विधि
इस दिन श्वेत पाषाण रूपी माता शीतला की पूजा की जाती है। उत्तर भारत में तो विशेष रूप से मां भगवती शीतला की पूजा की जाती है। इस दिन व्रती को प्रात:काल उठकर शीतल जल से स्नान कर स्वच्छ होना चाहिये। तत्पश्चात व्रत का संकल्प लेकर विधि-विधान से मां शीतला की पूजा करनी चाहिये। व पहले दिन बने हुए यानि बासी भोजन का भोग लगाना चाहिये। साथ ही शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत की कथा भी सुनी जाती है। रात्रि में माता का जागरण भी किया जाये तो बहुत अच्छा रहता है।