
नई दिल्ली। सनातन धर्म में पितृ पक्ष का बहुत महत्व होता है। इस दौरान पुत्रों द्वारा अपने पितरों को तर्पण देने का नियम है। ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। 15 दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष का आज अंतिम दिन है। इसे सर्वपितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पितृ पक्ष में काफी सावधानी बरती जाती है। इसमें किसी पूजा-पाठ या शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है। जिन लोगों के कई भाई-बहन होते हैं उनमें अक्सर असमंजस की स्थिति बनी रहती है कि पितरों का तर्पण आखिर किसे करना चाहिए? तो आइए जानते हैं, घर में कई भाई-बहन होने पर किसे तर्पण करना चाहिए…
हिंदू धर्म में माता- पिता की अंतिम क्रिया ज्येष्ठ पुत्र (सबसे बड़ा पुत्र) और कनिष्ठ पुत्र (सबसे छोटा पुत्र) द्वारा ही संपन्न कराए जाने का नियम है। माता-पिता का अंतिम संस्कार बड़े बेटे द्वारा ही संम्पन्न कराया जाता है लेकिन उनकी नामौजूदगी में छोटा बेटा इस संस्कार को कर सकता है। श्राद्ध कर्म सभी भाइयों को मिलकर करना चाहिए लेकिन इसका विधान सबसे बड़े या छोटे बेटे द्वारा ही संपन्न किया जाना चाहिए। अगर किसी परिवार में सभी पुत्र संगठित न होकर अलग-अलग घरों में रह रहे हों, तो श्राद्ध का अधिकार सभी को प्राप्त होता है।
इसके अलावा, जिस मृत व्यक्ति का पुत्र नहीं है तो उसका भाई, पौत्र या प्रपौत्र भी तर्पण कर सकता है। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष(Pitru Paksha) के दौरान पितर किसी न किसी का रूप धारण कर पृथ्वी लोक पर अपने बच्चों को आशीर्वाद देने आते हैं।
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