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Ajab-Gazab News: सैकड़ों साल से एक तरफ झुका है भारत का ये मंदिर, छ: महीने से अधिक समय तक पानी में डूबे रहने के बावजूद बना है जस का तस

Ajab-Gazab News: मंदिर की ऐतिहासिक महत्‍ता के कारण इस मंदिर को पीसा की झुकी हुई मीनार से श्रेष्ठ माना जाता है। यहां के निवासी मंदिर को भगवान शंकर का चमत्कार मानते हैं। बता दें कि जहां एक ओर वाराणसी के गंगा घाट पर स्थित सभी मंदिर ऊपर की तरफ निर्मित हैं

नई दिल्ली। दुनिया भर में बनी प्राचीन इमारतों की वास्तुकला और अनोखेपन को देखकर आज भी वर्तमान के वास्तुकला विदों को आश्चर्य होता है। आज तो तकनीकि के विकास ने इन कार्यों को आसान कर दिया है, लेकिन पुराने समय में तकनीकि के अभाव में भी ऊँची-ऊँची इमारतों पर बनी बारीक कारीगरी और वास्तुकला के पैमाने पर सटीक बैठती इन मंदिरों की दशा और दिशा आश्चर्य करने पर मजबूर करती है। आज हम आपको भारत में स्थित एक ऐसे ही मंदिर के विषय में बताने जा रहे हैं, जो सैकड़ों सालों से एक तरफ 9 डिग्री झुका हुआ है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में मणिकर्णिका घाट में स्थित ये मंदिर ‘रत्नेश्वर महादेव’ के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के अद्भुत वास्तुकला को देखने के लिए दुनियाभर से लोग यहां आते हैं। मंदिर की ऐतिहासिक महत्‍ता के कारण इस मंदिर को पीसा की झुकी हुई मीनार से श्रेष्ठ माना जाता है। यहां के निवासी मंदिर को भगवान शंकर का चमत्कार मानते हैं। बता दें, कि जहां एक ओर वाराणसी के गंगा घाट पर स्थित सभी मंदिर ऊपर की तरफ निर्मित हैं, वहीं रत्नेश्वर महादेव का मंदिर मणिकर्णिका घाट के नीचे बना हुआ है।

इसमें सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात ये है कि ये मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित है और हर साल छह महीनों से भी अधिक समय तक पानी में डूबा रहता है। गंगा में पानी की वृद्धि होने और मंदिर के पानी में डूबे होने की वजह से इस मंदिर में केवल दो-तीन महीने ही पूजा हो पाती है। मंदिर को लेकर कई किस्से और कहानियां भी प्रचलित हैं। कुछ लोग इसे ‘काशी करवट’ कहते हैं तो कुछ लोगों के अनुसार, किसी ने अपनी माता के ऋण से उऋण होने के लिए रत्नेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था। लेकिन मंदिर के टेढ़ा होने के कारण वो अपनी मां के ऋण से उऋण नहीं हो पाया था। इसके अलावा ये कहानी भी प्रचलित है कि महारानी अहिल्याबाई होल्कर की दासी ‘रत्ना बाई’ की काशी में मणिकर्णिका घाट के सामने भगवान शंकर का मंदिर बनवाने की काफी इच्छा थी, जिसके लिए उन्होंने अहिल्या बाई होल्कर से पैसे उधार लिए थे।

मंदिर बनने के बाद उसकी सुंदरता देखकर अहिल्या बाई होल्कर काफी प्रसन्न हुईं और दासी से कहा कि वो मंदिर को अपना नाम न दे, लेकिन दासी ने उनकी बात नहीं मानी और दासी रत्ना ने मंदिर का नाम अपने नाम पर ‘रत्नेश्वर महादेव मंदिर’ रख दिया। रत्ना की इस बात से अहिल्या बाई होल्कर नाराज हो गईं और श्राप देते हुए कहा कि ”मंदिर में पूजा-अर्चना बहुत कम हो पाएगी।” ऐसी मान्यता है कि यही वजह है कि मंदिर ज्यादातर समय तक पानी में डूबा रहता है।