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Chaitanya Mahaprabhu: कृष्ण के संदेश प्रचारक चैतन्य महाप्रभु की जयंती आज, जानिए कैसे पड़ा उनका नाम ‘गौरांग’?

Chaitanya Mahaprabhu B’day: चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी, इस दिन को ‘गौरव पूर्णिमा’ के रूप में मनाते हैं। चैतन्य महाप्रभु देश भर में बने ‘इस्कॉन संस्था’ के संस्थापक थे। इसके अलावा वो एक महान आध्यात्मिक शिक्षक और गौडिय वैष्णववाद के संस्थापक भी थे।

नई दिल्ली। भगवान कृष्ण के संदेश प्रचारक चैतन्य महाप्रभु की 17 फरवरी को यानी आज जयंती है। उनका जन्म हिंदू कैलेंडर के अनुसार विक्रम संवत सन् 1542 में फाल्गुन पूर्णिमा यानी होलिकादहन के दिन बंगाल के नादिया नगर में हुआ था, जिसे अब मायापुर कहा जाता है। कहा जाता है, कि उनके जन्म के समय बहुत से विद्वानों ने भविष्यवाणी की थी, कि ये बालक जीवन भर ‘हरिनाम’ का प्रचार करेगा। चैतन्य महाप्रभु बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। चैतन्य महाप्रभु अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक थे। अत्यधिक गोरे होने के कारण उन्हें ‘गौरांग’ नाम से भी पुकारा जाने लगा।

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बहुत कम आयु में ही वो न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे।15-16 वर्ष की आयु में ही इनका विवाह ‘लक्ष्मीप्रिया’ के साथ हो गया था, लेकिन विवाह के कुछ वर्षों के पश्चात ही पत्नी की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उनका दूसरा विवाह ‘विष्णुप्रिया’ के साथ हुआ था। चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी, इस दिन को ‘गौरव पूर्णिमा’ के रूप में मनाते हैं। चैतन्य महाप्रभु देश भर में बने ‘इस्कॉन संस्था’ के संस्थापक थे। इसके अलावा वो एक महान आध्यात्मिक शिक्षक और गौडिय वैष्णववाद के संस्थापक भी थे। वैष्णववादी इन्हें श्रीकृष्ण का राधा रानी के संयोग का अवतार मानते हैं। चैतन्य महाप्रभु को (18 फरवरी, 1486-1534) वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक माना जाता है। गौरांग ने वैष्णवों के ‘गौड़ीय संप्रदाय’ की आधारशिला रखने के साथ भजन गायकी की एक नयी शैली को भी जन्म दिया।

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इसके अलावा उन्होंने राजनैतिक अस्थिरता के दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को भी बल दिया। उन्होंने  जात-पात, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी, साथ ही विलुप्त होते वृंदावन को भी फिर से बसाया। गौरांग ने अपने जीवन का अंतिम भाग वृंदावन में ही व्यतीत किया। उनके द्वारा शुरु किए गए महामंत्र नाम और संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव न केवल देश में बल्कि पश्चिमी जगत तक में फैला है। कहा जाता है, कि यदि गौरांग ना होते तो वृंदावन आज महज एक मिथक और भ्रम ही होता। चैतन्य महाप्रभु के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं। श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित ‘चैतन्य चरितामृत’, श्री वृंदावन दास ठाकुर रचित ‘चैतन्य भागवत’ और लोचनदास ठाकुर का ‘चैतन्य मंगल’ इनमें से प्रमुख हैं।