नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में शारदीय नवरात्र का बहुत ही विशेष महत्व है। इस बार शारदीय नवरात्र की शुरुआत 15 अक्टूबर, रविवार से हुई थी। इस साल की ये शारदीय नवरात्रि बेहद खास थी क्योंकि इसकी शुरुआत से ठीक एक दिन पहले साल का आखिरी सूर्य ग्रहण भी लगा था। जैसा की आप जानते है हमारे देश में नवरात्रि के त्यौहार को बड़े ही धूम-धाम से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। देश के अलग-अलग जगहों में इसे अलग-अलग तरीके और विधि के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों ता देवी दुर्गा की उपासना की जाती है और इसके दशवें दिन दशहरा या विजयदशमी का उत्सव मनाया जाता है। लेकिन नवरात्रि में अष्टमी और नवमी इन दो तिथियों को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। नवमी के दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरुप की आराधना की जाती है। इस दिन कन्या भोजन कराने का भी बहुत महत्व है। कई लोग इस दिन कन्या को भोजन करवाकर नौ दिनों से चले आ रहे इस व्रत का पारण करते हैं। इस दिन हवन और आरती कर इस विशेष पर्व का समापन करते हैं। तो आइए जानते हैं माता सिद्धिदात्री का स्वरूप पूजा विधि, मंत्र और आरती।
माता सिद्धिदात्री का स्वरूप
शास्त्रों के अनुसार माता सिद्धिदात्री भी धन और ऐश्वर्य की देवी मां लक्ष्मी की तरह कमल पर विराजमान रहती हैं। माता सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं, जिनमें से प्रत्येक भुजा में शंख, चक्र और कमल का फूल विराजमान है। शास्त्रों के अनुसार माता सिद्धिदात्री सभी आठ सिद्धियों की देवी है, जिन्हें अणिमा, ईशित्व, वशित्व, लघिमा, गरिमा, प्राकाम्य, महिमा और प्राप्ति के नाम से जाना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार माता सिद्धिदात्री की पूजा करने से इन सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
माता सिद्धिदात्री की पूजा करने से पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान करके पूजा स्थल की साफ सफाई करें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से सिक्त करें। फिर मां सिद्धिदात्री को फूल, माला, सिंदूर, गंध, अक्षत इत्यादि अर्पित करें। साथ ही तिल और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं। इस दिन आप मालपुआ, खीर, हलवा, नारियल भी माता को भोग लगा सकते हैं। इसके बाद माता सिद्धिदात्री स्तोत्र का पाठ करें और धूप दीप जलाकर माता की आरती करें। आरती से पूर्व दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करना न भूलें।
कन्या पूजन और हवन
नवरात्र महापर्व के अंतिम दिन माता को विदाई देते समय कन्या पूजन और हवन करने की पूरी विधि शास्त्रों में वर्णित की गई है। मान्यता है कि हवन करने के बाद ही व्रत का फल प्राप्त होता है। इसलिए माता दुर्गा की पूजा के बाद हवन जरूर करें। ऐसा करने से सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और माता सिद्धिदात्री की कृपा सदैव अपने भक्तों पर बनी रहती है।
करें इन मंत्रों का जाप
* ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।
* ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।
* वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम् ।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम् ।।
* या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।