नई दिल्ली। गोवर्धन पूजा हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसे अन्नकूट के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक मास की प्रतिपदा के दिन मनाया जाने वाला ये त्योहार कृषि एवं धन से संबंधित होता है। इसे दीपावली के दूसरे दिन शाम को मनाया जाता है। गोर्वधन पूजा का बृज में खास महत्व होता है। इस त्योहार के मनाने की परंपरा के पीछे एक कथा प्रचलित है, जो काफी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र के घमंड का मर्दन करने के उद्देश्य से गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण कर लिया था। इस दिन गिरिराज गोवर्धन की पूजा करके मन्दिरों में अन्नकूट करने का विधान है। इसमें शाम के समय गोबर का गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा की जाती है। इसके अलावा भी गोवर्धन के दिन वरुण, इन्द्र, अग्नि आदि देवताओं और बलि पूजा, गोवर्धन पूजा, मार्गपाली आदि की पूजा भी की जाती है।
गोवर्धन पूजा पर गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर उनकी भी पूजा की जाती है। प्रचलित कथा के अनुसार, द्वापर युग में 56 प्रकार के पकवान बनाकर लोग भगवान इन्द्र की पूजा करते थे। ये भोग इतना अधिक मात्रा में चढ़ाया जाता था कि उसका पूरा पहाड़ खड़ा हो जाता था। इसके अलावा, इस दिन पशु-बलि देने की भी प्रथा थी। जबकि वहीं श्री कृष्ण ने ये कहते हुए इस पूजा का विरोध किया जो देव हत्या का समर्थन करता है, वो देवता कहलाने योग्य नहीं। इस पर इन्द्र देव ने क्रुद्ध होकर बृज पर भारी वर्षा कर दी। इसके बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को एक उंगली से उठाकर लोगों को छत्र छाया प्रदानकर बारिश से रक्षा की। इसके बाद से लोगों ने इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारंभ कर दी।
अन्न कूट पूजा के मौके पर पूरे परिवार और वंश को आमंत्रित कर उनके लिए एक सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है। इस भोज में चावल, बाजरा, कढ़ी, साबुत मूंग, चूड़ा और सभी मौसमी सब्जियां मिलाकर एक व्यंजन बनाया जाता है।