नई दिल्ली। अक्टूबर का पूरा महीना त्योहारों से भरा रहा है। कल से नवंबर माह की शुरूआत हो रही है और इसके पहले ही दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। ये त्योहार हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 01 नवंबर को पड़ रही है। इस पर्व पर गाय और भगवान की पूजा-अर्चना करने की परंपरा है। सनातन धर्म में गाय अत्यंत पूजनीय मानी जाती है। कहा जाता है कि गाय में हिंदू धर्म के सभी 33 करोड़ देवी-देवता वास करते हैं। इस दिन गाय की पूजा और उसकी सेवा आदि करने से सभी तरह के कष्टों का नाश होता है साथ ही घर में सुख-समृद्धि भी आती है। गोपाष्टमी के दिन गाय और गोवंशों की सुरक्षा,संवर्धन और उनकी सेवा का संकल्प लेकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं की इस त्योहार को मनाने की शुरूआत कैसे हुई? तो आइये जानते हैं इसकी पौराणिक कथा, शुभ-मुहूर्त और पूजा-विधि…
शुभ-मुहूर्त
अष्टमी तिथि का प्रारम्भ – नवम्बर 01, 2022 की सुबह 01:11 बजे
अष्टमी तिथि की समाप्ति – नवम्बर 01 2022 की शाम 11:04 बजे
पूजा विधि
गोपाष्टमी के दिन प्रात: जल्दी उठकर गायों और बछड़ों को स्नान आदि कराया जाता है। इसके बाद गौ माता को हाथों से मेहंदी,हल्दी,रोली के थापे लगाए जाते हैं। तत्पश्चात धूप,दीप,गंध,पुष्प,अक्षत,रोली,गुड़,वस्त्र आदि सामग्री से गाय की पूजा की जाती है। अंत में गाय की आरती कर उन्हें चारा खिलाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गाय की पूजा करने के बाद उसकी परिक्रमा कर कुछ दूरी तक उसके साथ चलना चाहिए। इसके बाद गौमाता की चरण रज को माथे पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है साथ ही भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है।
गोपाष्टमी पर्व की पौराणिक कथा
श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, श्री कृष्ण ने जब 6 वर्ष की आयु में कदम रखा तो मां यशोदा से उन्होंने गाय चराने की इच्छा जताते हुए कहा कि ‘मैया अब मैं बड़ा हो गया हूं और अब गोपाल बन कर गाय चराना चाहता हूं।’ इस पर माता यशोदा ने उन्हें समझाते हुए कहा कि ‘शुभ-मुहूर्त आने पर मैं तुम्हें जरूर गोपाल बनाउंगी।’ उसी समय शाण्डिल्य ऋषि का वहां आगमन हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण की जन्मपत्री देख कर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गौचारण का शुभ-मुहूर्त निकाला। इसके बाद माता यशोदा ने उनका श्रंगार किया और जैसे ही उन्हें जूतियां पहनाने लगीं। उन्होंने जूतियां पहनने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि ‘मेरी गईयां भी तो नंगे पैर ही रहती हैं, फिर मैं जूती कैसे पहनूं।’ गायों का रक्षक होने के कारण ही भगवान श्री कृष्ण का नाम ‘गोविंद’ पड़ा। गोविंद ने गोवर्धन पर्वत भी मुख्य रूप से गायों और बछड़ों की रक्षा के लिए उठाया था।