newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Onam 2022: क्यों मनाते हैं ओणम का पर्व?, जानिए क्या है इसकी पौराणिक कथा?

Onam 2022: चिंगम मलयालम कैलेंडर का पहला महीना माना जाता है। पूरे 10 दिनों तक चलने वाला ओणम अधिकतर अगस्त-सितम्बर के महीने में ही पड़ता है। आज इस मौके पर आइए आपको बताते हैं कि क्यों मनाते हैं ओणम का त्योहार? साथ ही ये भी बताते हैं कि इसकी पौराणिक कथा और मान्यता क्या है?

नई दिल्ली। त्योहारों का मौसम शुरू हो चुका है। देश के हर राज्य में कोई न कोई त्योहार मनाया जा रहा है। एक ओर जहां महाराष्ट्र समेत पूरे देश में गणेश चतुर्थी का पर्व चल रहा है, वहीं, दूसरी ओर केरल राज्य में ओणम चल रहा है जिसके समापन का दिन आज यानी 7 सितंबर है। ओणम केरल  के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। इस पर्व के उपलक्ष्य में केरल राज्य में 4 दिनों की छुट्टी रहती है। लोगों में ओणम के प्रति उत्साह और इसके महत्व को देखते हुए साल 1961 में इसे केरल का नेशनल फेस्टिवल घोषित कर दिया गया था। मलयालम सोलर कैलेंडर की गणना के अनुसार, ये त्योहार हर साल चिंगम मास में मनाया जाता है। चिंगम मलयालम कैलेंडर का पहला महीना माना जाता है। पूरे 10 दिनों तक चलने वाला ओणम अधिकतर अगस्त-सितम्बर के महीने में ही पड़ता है। आज इस मौके पर आइए आपको बताते हैं कि क्यों मनाते हैं ओणम का त्योहार? साथ ही ये भी बताते हैं कि इसकी पौराणिक कथा और मान्यता क्या है?

ओणम की पौराणिक कथा

राज्य में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में पृथ्वी के दक्षिण भाग में राजा बलि का सामाज्य फैला हुआ था। राजा बलि जो बडे दानी थे, विष्णु-भक्त प्रह्लाद के पोते थे। देवताओं को अपना शत्रु मानने वाले बलि के पास से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता था। एक बार उन्होंने स्वर्ग को जीतने के लिए एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसके पुरोहित दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इसके बाद देवताओं द्वारा इस समस्या का समाधान निकालने की गुहार पर भगवान विष्णु ने एक उपाय खोजा। इसके बाद वो वामन अवतार लेकर देवताओं की सहायता के उद्देश्य से राजा बलि के पास पहुंच गए। वहां उन्होंने राजा से दान में तीन पग भूमि मांग ली। गुरु शुक्राचार्य को सारा मामला समझते देर न लगी और उन्होंने बलि को दान देने से मना किया। गुरू के मना करने के बावजूद राजा ने दान देने का संकल्प ले लिया।

इसके बाद वामन अवतार ने अपने रूप को इतना विशाल किया कि उन्होंने एक पग में धरती, दूसरे में स्वर्ग लोक नाप लिया। तीसरा पग रखने के लिए जब कोई स्थान नहीं बचा तो राजा के कहने पर उन्होंने अपना पैर राजा बलि के सिर पर रख दिया। ऐसा करने से राजा सुतल में पहुंच गया। भगवान ने उसकी दानवीरता से प्रसन्न होकर उसे सुतल का राजा घोषित कर दिया। साथ ही ये वरदान भी दिया कि साल में एक बार वो अपनी प्रजा से मिल सकता है। ऐसी मान्यता है कि हर साल ओणम के दिन ही राजा बलि अपनी प्रजा का हाल-चाल जानने पृथ्वी पर आते हैं। यही कारण है कि केरल के लोग अपने राजा बलि के स्वागत में ओणम का त्योहार मनाते हैं।

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Newsroompost इसकी पुष्टि नहीं करता है।