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Vaikunth Ekadashi: आखिर क्यों किया जाता है ”वैकुंठ एकादशी” का व्रत, जानें इसके पीछे की महत्व और मान्यताएं

Vaikunth Ekadashi: मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वैकुंठ एकादशी या मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली इस एकादशी के दिन वैकुंठ (स्वर्ग के द्वार) खुलते हैं।

नई दिल्ली। हिंदू धर्म में हर एकादशी का अपना अलग महत्व होता है। मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वैकुंठ एकादशी या मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली इस एकादशी के दिन वैकुंठ (स्वर्ग के द्वार) खुलते हैं। यही वजह है कि इसे वैकुंठ एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को करने वाले साधकों के सभी पाप-कर्म नष्ट हो जाते हैं और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसीलिए इसे मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है।

क्या है वैकुंठ एकादशी के पीछे की कहानी

वैकुंठ एकादशी के पीछे की कहानी ये है कि एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी के अहंकार को दबाने के लिए अपने कानों से मधु और कैटभ नाम के दो राक्षसों को प्रकट कराया। जब उन राक्षसों ने ब्रह्मा जी को मारने की कोशिश की तो भगवान विष्णु ने उन्हें रोक दिया और उनसे कहा कि वे ब्रह्मा जी को छोड़ दें, उन्हें जाने दें। अगर वो ऐसा करते हैं तो भगवान विष्णु उन्हें मुंह मांगा वरदान देंगे। उन दैत्यों ने पलटकर भगवान विष्णु से कहा कि अगर विष्णु भगवान चाहे तो उनको वे लोग वरदान देंगे।

विष्णु भगवान ने भी फिर झट से वरदान मांगा कि वे दोनों उनके द्वारा ही मारे जाएं। असुरों ने प्रार्थना की कि ‘प्रभु, हमारा एक निवेदन है। आपको एक महीने तक हमारे साथ युद्ध करना होगा।’ भगवान विष्णु ने भी इसे मान लिया। युद्ध के अंत में विष्णु भगवान ने उन्हें हरा दिया। भगवान विष्णु की महिमा को महसूस करते हुए, असुरों ने मांगा कि भगवान विष्णु उन्हें हमेशा के लिए भगवान के चरणों में निवास करने का वरदान दें।

भगवान विष्णु ने फिर मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को अपने परमपद (चरणों) के उत्तरी द्वारा (स्वर्ग द्वार) को खोला और इसके माध्यम से असुरों को परमपद में प्रवेश कराया। असुरों ने यह भी प्रार्थना की कि ‘भगवान! मंदिरों में मूर्तियों के रूप में खुद को स्थापित करें और मार्गशीर्ष महीने में शुक्लपक्ष एकादशी के दिन आपने हमारे ऊपर जो अनुग्रह किया है, उसे एक उत्सव के रूप में पालन करें। उस दिन, जो लोग मंदिर के स्वर्ग द्वार से निकलते हुए आपके दर्शन करते हैं, और जो आपके साथ स्वर्ग द्वार से बाहर आते हैं, उन्हें मोक्ष प्राप्ति हों।” वैकुंठ एकादशी को पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है। इस व्रत का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। इस व्रत से न सिर्फ योग्य संतान की प्राप्ति होती है बल्कि संतान से संबंधित और भी समस्याएं दूर होती हैं।

कब है वैकुंठ या मोक्षदा एकादशी ?

हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 दिसंबर को सुबह 08 बजकर 16 मिनट से शुरू हो रही है, जो 23 दिसंबर सुबह 07 बजकर 11 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। द्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल मोक्षदा एकादशी का व्रत 22 और 23 दिसंबर दोनों दिन ही रखा जा सकता है।