
नई दिल्ली। आज 31 अगस्त, बुधवार से 10 दिनों तक चलने वाले चतुर्थी तिथि के त्योहार की धूम शुरुआत हो चुकी है। भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाजा जाता है। कई जगहों पर गणेश चतुर्थी का त्योहार कलंक चतुर्थी, गणेश चौथ, डंडा चौथ और शिव चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती के बेटे गणेश का जन्म चतुर्थी तिथि पर दोपहर के समय हुआ था। लोग अपने घरों में बप्पा को लाते हैं। उनकी पूजा करते हैं। अनंत चतुर्दशी तिथि पर गणेश विसर्जन के साथ इस पर्व का अंत होता है।
गणेश चतुर्थी पर नहीं किए जाते चांद के दर्शन!
ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर भूलकर भी चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। पौराणिक मान्यताओं की मानें तो जो भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करता है तो वो कलंक का भागी बनता है। श्रीमदभागवत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण पर चतुर्थी तिथि पर चांद देखने से ही मिथ्या कलंक लगा था। इस कलंक से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत किया था। तभी उन्हें इससे मुक्ति मिली थी।
क्यों नहीं देखते हैं इस दिन चंद्रमा
पौराणिक कथा की मानें तो जब भगवान गणेश के धड़ पर गज का मुख लगाया गया तो वो गजानन कहलाए। इसके अलावा माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण अग्रपूज्य भी हुए। इस दौरान सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की। उन्हें अपना आशीष दिया लेकर चंद्र देव मंद-मंद मुस्कुराते रहें। उन्हें अपने सौंदर्य पर अभिमान था। चंद्र देव की हंसी देखकर गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमान वश उनका उपहास कर रहे हैं। ऐसे में क्रोधित होकर भगवान श्री गणेश चंद्रमा को काले होने का श्राप दे देते हैं।
हालांकि बाद में चंद्रदेव को जब अपनी भूल का एहसास होता है तो वो गणेश जी से क्षमा मांगते हैं। ऐसे में गणेश जी उन्हें कहते हैं कि सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण हो जाओगे यानी पूरे प्रकाशित होंगे। लेकिन चतुर्थी का ये दिन तुम्हारे दण्ड के लिए याद किया जाएगा। जो कोई व्यक्ति भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे (चंद्र) के दर्शन करेगा, तो उस पर झूठा आरोप लगेगा।