नई दिल्ली। इस वर्ष पितृ पक्ष (Pitru Paksha) 01 सितंबर 2020, मंगलवार से प्रारंभ हुए। यह समय पित्तरों (Pitra) को प्रसन्न करने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उत्तम माना जाता है। कुछ लोग अपने पूर्वजों और पितरों का श्राद्ध अमूमन लोग घर पर ही करते हैं, लेकिन कुछ लोग पूरे विधि-विधान के साथ इन दिनों में अपने पतिरों की मुक्ति की कामना करते हैं और उनका श्राद्ध करने के लिए हरियाणा के कुरुक्षेत्र नगर से कुछ ही दूर बसे पिहोवा तीर्थ पर जाते हैं।
क्या है पिहोवा
तो क्या है पिहोवा और हिंदू धर्म में इसका इतिहास क्या है यही हम आज आपको बताने जा रहे हैं। दरअसल, पिहोवा को पितरों का तीर्थ कहा गया है। आमतौर पर पिंड दान करने की जब बात आती है तो लोग बिहार में मौजूद गया तीर्थ को ही अहमियत देते हैं लेकिन पिहोवा का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। जिसे कम ही लोग जानते हैं।
पिहोवा का इतिहास
कुरुक्षेत्र महाभारत की युद्ध भूमि रही है। जहां कई सगे संबंधी मारे गए थे। तब युद्ध की समाप्ती के बाद पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण के साथ मिल कर अपने सगे संबंधियों की आत्मा को शांति पहुंचाने के लिए पिहोवा की धरती पर ही श्राद्ध किया था। तब से पिहोवा को पितरों का तीर्थ स्थल माना जाने लगा है।
इसके अलावा शास्त्रों मे कहा गया है कि पिहोवा तीर्थ पर आकर, जो भी अपने पितरों का पिंड दान करता है या फिर उनका श्राद्ध करता है, उस पर से पितृ दोष हटने के साथ-साथ उसकी सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।
इतना ही नहीं पिहोवा में 200 से भी अधिक पुरोहित हैं, जो किसी भी व्यक्ति की लगभग 200 साल पुरानी वंशावाली बता सकते हैं। पिहोवा में कई बड़े राजा-महाराजाओं का श्राद्ध किया जा चुका है और उनके वंशजों द्वारा पिंडदान भी कराया जा चुका है।