
वे खाने में थूकेंगे, जूस में पेशाब मिलाएंगे आखिर ये मानसिकता आती कहां से है? यदि कोई पहचान बताने के लिए कहेगा तो कथित सेकुलरवादी चिल्लाएंगे। यदि इस तरह की घटनाएं होती रहीं तो फिर कोई किसी पर कैसे विश्वास कर पाएगा?
रोटियों में, जूस में, अन्य पेय और भोज्य पदार्थों में यदि कोई थूकता है और पेशाब करता है और फिर आपको खिलाता है तो यह समझ आ जाना चाहिए कि इस मानसिकता के लोग आपसे कितनी घृणा करते हैं। ऐसे मामलों में अक्सर सोशल मीडिया में जानकारी आने के बाद कार्रवाई भी हो जाती है, आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया जाता है, कुछ समय तक ऐसी घटनाओं पर विराम लग जाता है लेकिन फिर से कोई न कोई ऐसा वीडियो सामने आ जाता है जिसमें मजहब के नाम पर घृणास्पद कृत्य करते हुए ऐसा ही एक वीडियो सामने आ जाता है।
हाल में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में जूस में पेशाब मिलाकर बेचने का मामला सामने आया, आरोपी की पहचान आमिर के रूप में हुई। सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और उसके जूस स्टॉल की तलाशी ली। जहां से पेशाब से भरा एक प्लास्टिक का केन भी बरामद हुआ। उसका 15 वर्षीय नाबालिग बेटा भी पिता के साथ मिलकर यही काम करता था। ऐसी दर्जनों घटनाएं, दर्जनों बार सामने आ चुकी हैं, लेकिन अभी तक रोकी नहीं जा सकी हैं। ऐसे घृणित कृत्य करने वालों को बाद में जमानत भी मिल जाती है, कोई सख्त कानून नहीं होने के कारण बहुत बड़ी सजा भी नहीं मिलती, लेकिन कब तक?
2024 में उत्तर प्रदेश के हापुड़ में थूक लगाकर रोटी बनाने का वीडियो वायरल हुआ था। अप्रैल 2023 में उत्तरप्रदेश के बागपत में तंदूरी रोटी बनाते समय उसके थूक लगाने का वीडियो सामने आया था। जनवरी 2023 में गाजियाबाद के पसौंडा में थूक लगाकर रोटी बनाने का वीडियो सामने आया था। मई 2022 में मेरठ में एक विवाह समारोह में थूक कर नान बनाने का मामला सामने आया था। नवंबर 2021 में भी गाजियाबाद में रोटी बनाते समय उसमें थूकने का वीडियो सामने आया था। ऐसी अनेकों घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इन सब में सिर्फ एक ही बात कॉमन रही है कि वह यह कि इन सब घटनाओं में जो भी आरोपी पकड़े गए सभी एक विशेष समुदाय के थे।
जहां भारतीय समाज में थूकना असभ्यता की निशानी माना जाता है वहीं इस तरह का जाहिलपन इस्लाम में अल्लाह की रहमत को पाने का तरीका बताया गया है। दरअसल इस तरह के काम करने वाले जो भी लोग हैं वह एक तरह की विकृत मजहबी मानसिकता के लोग हैं, मजहब के नाम पर वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। इसमें दोष किसका है? दरअसल यह मानसिकता पनपती है उस तालीम से जो मुस्लिमों को पैदा होते ही कथित मौलानाओं द्वारा सिखाई जाती है।
उदाहरण के तौर पर इस्लामिक हदीसों में भी थूकने पर लिखा गया है, जैसे इस्लामिक हदीसें थूक पर क्या कहती हैं, इसके कुछ उदाहरण यहां देखे जा सकते हैं-सहीह-अल-बुखारी (वॉल्यूम 4, पुस्तक 54, संख्या 513) के अनुसार बाईं ओर थूकने से बुरे सपनों से छुटकारा मिलता है। इस हदीस में लिखा हुआ है कि पैगंबर कहते हैं, ‘एक अच्छा सपना अल्लाह से जुड़ा है। वहीं बुरा सपना शैतान से। जब भी किसी को बुरा सपना आए और वह डरे तब उसे अपनी बाईं ओर थूकना चाहिए, जिससे उसे अल्लाह की नेमत मिले और वह बुरी रूह से बच जाए।’
इसके कई और भी उदाहरण हैं जो इस्लामिक हदीसों में लिखे हैं जिसके अनुसार थूक से चीजें पाक और हलाल होती हैं। उदाहरण के लिए (सहीह-अल-बुखारी, वॉल्यूम 3, किताब 50, हदीस 891) में लिखा है, ”उरवा अपने लोगों के पास वापस आया और बोला, ‘मैं कई राजाओं, सीजर, खुसरो और अन-नजाशी के पास गया, किन्तु कोई भी उतना सम्मानीय नहीं है, जितना मोहम्मद अपने साथियों में। यदि वह थूकेंगे तो थूक उनमें से किसी के हाथ में फैल जाएगा जो उसे अपने चेहरे और त्वचा में रगड़ लेगा। इससे वह पाक साफ हो जाएगा।’
ऐसा ही एक और उदाहरण (सहीह अल-बुखारी, वॉल्यूम 5, किताब 59, हदीस 428) में दिया गया है। जिसमें जबिर-बिन-अब्दुल्लाह के वक्तव्य में यह भी कहा गया है,”मेरी बीवी पैगंबर के पास एक लोई लेकर गई और पैगंबर ने उसमें थूका जिससे अल्लाह का आशीर्वाद प्राप्त हो। इसके बाद पैगंबर ने हमारे मांस पकाने वाले बर्तन में भी थूका और उसमें भी अल्लाह की मेहरबानियां बिखेर दी।’
बहरहाल यह थूकने की बीमारी मानसिकता कितने गहरे तक इस्लाम को मानने वाले में बैठी है कि मशहूर सेलिब्रिटी तक इसे स्वीकार कर चुके हैं। आमिर खान तो स्पष्ट कह चुके हैं कि उन्होंने जिस भी हिरोइन के हाथ पर थूका उसका करियर बन गया। प्रसिद्ध हेयर स्टाइलिस्ट जावेद हबीब ने तो बाकायदा अपने एक प्रोग्राम में एक महिला के बालों पर थूक दिया था। इस वीडियो के वायरल होने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस विषय पर संज्ञान लिया था। अब ऐसे में यदि कोई कहे पहले अपनी पहचान बताओ तो कथित सेकुलर हल्ला मचा देते हैं। मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय तक पहुंच जाते हैं। बहरहाल इस सोच पर इस उन्मादी और मजहबी मानसिकता वाले लोगों को पहचानने की जरूरत है ताकि समाज के सामने उनका घृणित चेहरा बेनकाब हो सके।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।