
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पिछले दिनों राजनीति और वोटों के ध्रुवीकरण के लिए संगम स्नान पर बयान दिया था कि ”गंगा में डुबकी लगाने के लिए भाजपा नेताओं में होड़ मची है। गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी दूर नहीं होगी। क्या गंगा में डुबकी लगाने से खाना मिलता है। क्या इससे युवाओं को रोजगार मिलेगा। उनका यह बयान सीधे तौर पर हिंदू आस्था पर प्रहार था।
राहुल गांधी बार—बार हिंदू आस्था का अपमान करते हैं। राहुल गांधी ने पिछले साल 14 दिसंबर को संसद में मनुस्मृति और संविधान की तुलना करते हुए भाजपा पर निशाना साधा था। बिना मनुस्मृति को पढ़े राहुल गांधी ने उसको लेकर टिप्पणी की थी। पहले कांग्रेस के नेता हिंदू आस्था को आहत करते हैं। फिर खुद को हिंदू बताते हैं और मंदिरों में माथा टेकते हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है। राहुल और प्रियंका का कुंभ जाना केवल और केवल राजनीतिक नुकसान की भरपाई के लिए एक कदम है और कुछ नहीं।
यहां यह बताना बेहद जरूरी है कि महाकुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर 12 में स्थित शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के शिविर में गत 10 फरवरी को आयोजित परम् धर्म संसद में राहुल गांधी के मनुस्मृति पर दिए गए कथित विवादास्पद बयान पर नाराजगी जताई थी। धर्म संसद में उन्हें हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का प्रस्ताव पारित किया गया था। धर्म संसद ने राहुल गांधी से माफी मांगने और अपने बयान के लिए स्पष्टीकरण देने को कहा है। उन्हें एक महीने का समय दिया है। इसमें उन्हें यह स्पष्ट करना होगा कि क्यों न उन्हें हिंदू धर्म से निष्कासित किया जाए। राहुल और प्रियंका कहीं इससे घबराकर तो महाकुंभ में स्नान करने और संतों का आशीर्वाद लेने नहीं जा रहे हैं!
राहुल गांधी को जब वोट मांगना होता है तो वो मंदिरों में माथा टेकते नजर आते हैं। जनेऊ दिखाकर खुद को ब्राह्मण बताते हुए नजर आते हैं। फिर जब चुनाव खत्म हो जाते हैं तो वे अपने हिंदुत्व को भाजपा के हिंदुत्व से अलग बताते हैं। संसद में देवाधिदेव महादेव की तस्वीर लेकर हिंदुओं को हिंसक बताते हैं। सम्भल में पुलिस पर हमला कर रहे मजहबी उन्मादी जब मारे जाते हैं तो उन्हें बेकसूर बताते हैं। राजनीति के लिए उनसे मुलाकात करते हैं।
राहुल गांधी का राजनीतिक आचरण अक्सर दोहरे मापदंड पर आधारित दिखता है, क्यों? क्या वह स्पष्ट नहीं रह सकते? राजनीति कीजिए, खूब कीजिए। आप राजनीतिक परिवार में जन्मे हैं, लेकिन अपनी स्थिति तो स्पष्ट कीजिए। आप हैं किस ओर? एक वोटों की खातिर मंदिरों में माथा टेकना। दूसरी तरफ इफ्तार पार्टी में टोपी पहनकर दिखाई देना, दरगाह पर जाना। यह वोट मांगने के लिए की जाने वाली राजनीति नहीं है तो और क्या है ? राहुल गांधी की तुष्टीकरण की राजनीति और हिंदू आस्था पर बार-बार हमले ने उन्हें जनता के एक बड़े वर्ग के बीच अविश्वास का पात्र बना दिया है। कुंभ जाकर स्नान करने के दिखावटी प्रयासों से राजनीतिक ध्रुवीकरण की राजनीति को छुपाया नहीं जा सकता।
उनके आज तक के सारे बयानों को यदि देखें तो राहुल गांधी का प्रियंका के साथ कुंभ जाना केवल दिखावा ही दिखाई देता है। वह कुंभ में सिर्फ और सिर्फ इसलिए जा रहे हैं कि ताकि कांग्रेस नेताओं द्वारा दिए गए हिंदू विरोधी बयानों को ढापा जा सके। यह सच्ची आस्था नहीं बल्कि एक राजनीतिक कदम हैं। हिंदू आस्था को जो ठेस वह पहुंचा चुके हैं उसकी भरपाई संगम स्नान से नहीं होगी। इसके लिए उन्हें खुद को जनता की कसौटी पर जनता को उन्हें परखने देना होगा। उनकी जो छवि जनता बना चुकी है उसे सुधारने के लिए उन्हें साबित करना होगा कि वह वास्तव में हिंदू आस्था का सम्मान करते हैं। जनता पहले से कहीं अधिक जागरूक है। उसे विश्वास दिलाना इतना आसान नहीं है। राहुल गांधी को जनता का विश्वास पाने के लिए तुष्टीकरण की राजनीति से ऊपर उठना होगा। राहुल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के आचरण उसे देखते हुए तो हाल—फिलहाल में ऐसा होना संभव नहीं लगता।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।