समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सम्भल में हो रही खुदाई और वहां मिल हिंदू स्थलों और मंदिरों के बाद यह बयान दिया कि मुख्यमंत्री आवास में भी खुदाई कराओ। वहां पर भी शिवलिंग मिलेगा। मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले सपा के मुखिया ने सीधे तौर पर हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़ किया है। यह बयान न केवल धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने वाला है बल्कि सपा की असलियत बताने वाला भी है कि वह सिर्फ और सिर्फ अपने वोट बैंक की चिंता करती है।
वैसे भी सपा की राजनीति में मुस्लिम तुष्टीकरण एक अहम मुद्दा रहा है। उनके पिता मुलायम सिंह यादव भी ऐसी ही राजनीति करते थे। मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में 1990 में अयोध्या में राम भक्तों पर गोली चलाने की घटना को आज तक लोग नहीं भूले हैं। 1990 को राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां चलवाई गई थीं जिसमें कितने ही लोग मारे गए थे। यह घटना आज भी हिंदू समाज के लिए एक दुखद अध्याय है। अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री रहे तो उन्होंने वोट बैंक के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों को विशेष लाभ देने के लिए योजनाएं शुरू कीं। उदाहरण के लिए, सपा सरकार के दौरान राज्य के मदरसों को अधिक वित्तीय सहायता प्रदान की गई, और मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष छात्रवृत्तियों और अन्य योजनाओं की घोषणा की गई। उनके लिए मदरसा बोर्ड तक का गठन कर दिया गया।
2017 के विधानसभा चुनाव के पहले अखिलेश ने एक बयान दिया था कि “कौम के लोग” (मुसलमान) सपा के साथ हैं। स्पष्ट तौर पर कौम शब्द मुस्लिमों के लिए प्रयोग किया गया था। पिछले साल सितंबर में उन्होंने आपराधिक रोकथाम के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की जा रही कार्रवाई के बाद विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों और यादवों के खिलाफ ही कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने योगी आदित्यनाथ को लेकर विवादित बयान दिया था। अखिलेश ने कहा था कि मठाधीश और माफिया में ज्यादा फर्क नहीं है। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री होने के साथ—साथ गोरखपुर मठ के प्रमुख भी हैं। सीधे तौर पर यह बयान हिंदुओं की आस्था को आहत करने वाला था। अखिलेश ही नहीं उनके अन्य नेता भी हिंदुओं को आहत करने वाले बयान देते रहे हैं।
सपा के अन्य नेताओं के बयानों ने भी हिंदू समुदाय को आहत किया है। आजम खान सपा के वरिष्ठ नेता और लंबे समय से पार्टी के प्रमुख मुस्लिम चेहरे रहे हैं उन्होंने कई मौकों पर हिंदुओं को आहत करने वाले बयान दिए हैं। 2014 में आजम खान ने कारगिल युद्ध को लेकर एक विवादित बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि “कारगिल की विजय मुसलमानों की वजह से हुई थी, क्योंकि उन्होंने ही युद्ध लड़ा था।” यह बयान देश की सेना के साथ—साथ हिंदू समुदाय को भी अपमानित करने वाला भी था। राम मंदिर बनने से पहले आजम खान ने ही कहा था कि “राम मंदिर नहीं बनेगा, और बाबरी मस्जिद हमेशा वहीं रहेगी।”
पिछले दिनों हुए उप चुनावों के दौरान सपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष श्याम लाल पाल ने अलीगढ़ के खैर विधानसभा सीट पर प्रचार के दौरान कहा था कि भाजपा के पदाधिकारी और नेता आतंकवादी हैं। इन्हीं उप चुनावों के दौरान सपा के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ प्रदेश अध्यक्ष राजपाल कश्यप ने विवादित बयान दिया था। वह मीरापुर विधानसभा में वह समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी सुम्बुल राणा का प्रचार करने आए थे। उन्होंने कहा था कि भाजपा वालों को तो केवल चुनाव जीतना है, चाहे इसके लिए उन्हें बहन-बेटियों की साड़ी भी क्यों न खोलनी पड़े। बिजनौर में सपा के एक कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मंत्री महबूब अली ने बयान दिया था कि उत्तर प्रदेश से भाजपा की सरकार जाने वाली है क्योंकि मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है। भाजपा के जाने का समय आ चुका है।
अखिलेश के चाचा एवं सपा नेता ने पिछले साल अक्टूबर में देश के मुख्य न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद फैसले को लेकर दिए गए बयान पर जब पत्रकारों ने उनसे सवाल पूछा तो उन्होंने उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया था। मंदिर निर्माण को भी उन्होंने घटिया बताया था। सपा नेताओं द्वारा दिए गए ढेरों बयानों की लंबी फेहरिस्त है जिनमें बार—बार हिंदू आस्था को आहत किया गया है। मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने और बार—बार हिंदू आस्था को आहत करने का खामियाजा भी सपा को भुगतना पड़ रहा है। लगातार दो बार से समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में सत्ता से बाहर है। सपा पहले 2017 में और फिर 2022 में चुनाव हारकर यहां विपक्ष में है। यदि अखिलेश यादव यह सोच रहे हैं कि वह इस तरह के बयान देकर मुस्लिम और यादव वोटों के जरिए फिर से एक बार उत्तर प्रदेश में सत्ता प्राप्त कर लें
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