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धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर भारत पर अंगुली उठाने वाली कूड़ा रिपोर्ट्स जारी करने से पहले खुद को आईने में देखे अमेरिका

मेरिका के ही वॉटसन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार 9/11 के हमले के बाद 9 लाख 60 हजार लोग अमेरिका सीधे तौर पर मार चुका है।

गत् 2 अक्टूबर को एक अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) की रिपोर्ट में भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट में भारत को ‘विशेष चिंता का देश’ घोषित करने की सिफारिश की गई है। भारत पर अंगुली उठाने से पहले अमेरिका को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। दरअसल मानवाधिकार की बात करने वाले जो भी संगठन अमेरिका ने बना रखे हैं वह सब डीप स्टेट का एक हिस्सा हैं। अमेरिका में मानवाधिकार और मुसलमानों की क्या स्थिति है यह किसी से छिपी नहीं है। अमेरिका में अश्वेत लोग अमेरिका की आबादी का 33% हैं। वहां की जेलों में जितने लोग हैं उनमें 56% अश्वेत हैं। अश्वेतों के साथ वहां पर कैसा व्यवहार है आए दिन इसकी खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनती रहती हैं।

विश्व में सबसे ज्यादा मुसलमानों को आतंकवाद के नाम पर मारने वाला अमेरिका हमें अल्पसंख्यकों की धार्मिक आजादी पर लेक्चर दे रहा है। जबकि उसका खुद का अस्तित्व 5 करोड़ 60 लाख रेड इंडियन्स की लाशों पर खड़ा है। अमेरिका के मूल निवासी कहे जाने वाले रेड इंडियन्स को अमेरिका ने चुन—चुनकर मारा था। आज जो अमेरिका है उसको बनाने के लिए इतनी बड़ी तादाद में कत्ल किए गए कि विश्व के पर्यावरण संतुलन पर असर पड़ गया था। इसके तथ्य और साक्ष्य मौजूद हैं। अब बात अमेरिका के मुस्लिम प्रेम की करते हैं, वॉटसन इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट है जिसके अनुसार अमेरिका के ट्विन टावर पर हमले के बाद अमेरिका ने पूरी दुनिया में जो जंग छेड़ी उसमें सीधे तौर पर 9 लाख 60 हजार मुसलमानों को मार डाला गया। ये सिर्फ प्रत्यक्ष संख्या है, अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ जंग में अप्रत्यक्ष रूप से मरने वालों की तादाद तीन गुना तक ज्यादा हो सकती है। आतंकवाद के नाम पर सबसे ज्यादा मुसलमानों को मारने वाला अमेरिका अब भारत पर किस मुंह से अंगुली उठा सकता है?

सिर्फ अपने हित सोचता है अमेरिका
अमेरिका ने इराक पर हमला किया था कि वहां के राष्ट्रपति रहे सद्दाम हुसैन के पास सामूहिक विनाश के हथियार (WMD) हैं। जबकि वहां ऐसे कोई हथियार नहीं मिले। इस युद्ध में अमेरिका ने कितने मुसलमान मारे इसका कोई हिसाब नहीं है। यहां पर अमेरिका का उद्देश्य हथियारों को नष्ट करना नहीं बल्कि इराक के तेल के भंडार पर कब्जा करना था, ताकि अमेरिकी हितों की रक्षा की जा सके। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश अपनी लोकप्रियता बढ़ाना चाहते थे, साथ ही उनकी इच्छा अमेरिका को दुनिया की प्रमुख शक्ति के रूप में फिर से स्थापित करने की थी। अमेरिका ने हमेशा सिर्फ और सिर्फ अपने हितों के लिए सोचा।

अमेरिका बताए लीबिया, सोमालिया, सीरिया, ईरान ऐसा कौन सा मुस्लिम देश है जहां अपने हित और आतंकवाद को खत्म करने के नाम पर उसने हमला न किया हो। ईरान में 1953 में अमेरिका ने सैन्य हस्तक्षेप कर ब्रिटेन के साथ मिलकर उसने मोहम्मद मुसद्दिक की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिरा दिया था। अपने पिछलग्गू शाह को वहां पर सत्ता में वापस लाया। जब इसके हित वहां से पूरे हो गए उसकी नजर ईरान पर पड़ी। अमेरिका ने 1980 में ईरान-इराक युद्ध के दौरान इराक का समर्थन किया था। तब भी उसके हित जुड़े हुए थे इसलिए उसने इराक का साथ दिया। बाद में इराक को तबाह भी उसने किया। अब भी अमेरिका अपने हितों को साधने के लिए हर संभव प्रयास करता है।

दरअसल अमेरिका भारत की स्वतंत्र विदेश नीति से खुश नहीं है। पिछले 10 सालों के दौरान जिस तरह भारत ने स्वतंत्र रहकर विदेश नीति के फैसले लिए हैं, वह अमेरिका को रास नहीं आ रहे। रूस और यूक्रेन के बीच हुए युद्ध में अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाया कि वह रूस से संबंध न रखे। उससे व्यापार न करे। अमेरिका के दबाव को दरकिनार करते हुए भारत ने रूस से सस्ती दरों पर कच्चा तेल खरीदा और अमेरिका का दबाव नहीं माना।दरअसल अमेरिका जानता है कि भारत ताकतवर हो रहा है। विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़कर यह उपलब्धि हासिल की है।

अमेरिका ने अपनी रिपोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), पर सवाल उठाए हैं। जबकि सीएए पड़ोस के मुस्लिम देशों में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों हिंदुओं, जैन और बौद्ध लोगों को नागरिकता देने के लिए लाया गया कानून है। इससे देश के मुसलमानों का कोई लेना देना नहीं है। इस तरह एनआरसी अवैध तरीके से देश में रह रहे लोगों के लिए है, देश के मुसलमानों से इसका भी कोई लेना देना नहीं है। भारत ने अमेरिका की इस रिपोर्ट को ‘दुर्भावनापूर्ण’ बताकर और राजनीतिक एजेंडा देकर खारिज कर दिया है। करना भी चाहिए।

दरअसल हमेशा सिर्फ अपने हितों की बात सोचने वाला अमेरिका दुनियाभर के मुसलमानों में उसके लिए जो गुस्सा है उनका ध्यान भटकाने के लिए ही इस तरह रिपोर्ट दे रहा है। कूटनीति के तहत अमेरिका की यह भी एक योजना है, स्वयं को मुसलमानों के सामने भला दिखाने की उसकी एक कोशिश है। भारत को नसीहत देने से वाला अमेरिका यह जान ले कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति और विदेश नीति के इस्लामिक मुल्क भी कायल हैं। कितने ही मुस्लिम देश उन्हें अपने यहां का सर्वोच्च सम्मान दे चुके हैं। इजिप्ट यानी मिस्र ने उन्हें अपने देश का सर्वोच्च ऑर्डर ऑफ द नील से, बहरीन ने अपने सर्वोच्च सम्मान ‘द किंग हमाद ऑर्डर ऑफ द रेनेसां’ से, संयुक्त अरब अमीरात ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ जायद’ से, मालदीव ने विदेशी गणमान्य नागरिकों को दिए जाने वाले देश के सर्वोच्च सम्मान ‘रूल ऑफ निशान से, फिलिस्तीन ने ‘ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ फिलिस्तीन’ से, अफगानिस्तान अपने देश के सर्वोच्च सम्मान ‘अमीर’ से तो वहीं सऊदी अरब ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान- ‘किंग अब्दुलअजीज सैश’ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्मानित किया है।

भारत पर अंगुली उठाने वाले अमेरिका को पता होना चाहिए कि भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ी मुस्लिम जनसंख्या वाला देश है। यहां 20 करोड़ से अधिक मुसलमान हैं। भारत में सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन आज भी वक्फ बोर्ड के पास है। केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना, जनधन योजना, उज्जवला योजना, सौभाग्य योजना, उस्ताद योजना, मुद्रा योजना आदि का सबसे ज्यादा लाभ मुसलमान ही ले रहे हैं। कितनी ही योजनाएं हैं जो सिर्फ मुसलमानों के लिए ही हैं। उदाहरण के तौर पर ईदी योजना, शादी शगुन योजना, उस्ताद योजना सब मुसलमानों के सशक्तिकरण के लिए ही सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं। इतनी सब योजनाओं के साथ सबके हित में सोचने वाले भारत पर अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल उठाने वाले अमेरिका को पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।