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अरविंद केजरीवाल की बहानेबाजी और अहंकार बना आम आदमी पार्टी की हार का कारण

अरविंद केजरीवाल की बहानेबाजी और अहंकार से आजिज आ चुकी दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को दिल्ली में झाड़ू मार दिया। इस बार जनता ने उनके वादों पर भरोसा नहीं जताया।

‘बड़े बड़ाई ना करें, बड़े न बोले बोल, रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरा मोल’ यानी जिन लोगों में बड़प्पन होता है, वे अपनी बड़ाई नहीं करते। बड़े आदमी में अहंकार नहीं होता, लेकिन अरविंद केजरीवाल में इतना अहंकार आ गया था कि वह कुछ भी बोले जा रहे थे। सिर्फ और सिर्फ झूठ की राजनीति ही अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेता कर रहे थे। चाहे यमुना के पानी में जहर मिलाने की बात हो, उनके विधायकों को पैसे देकर खरीदे जाने का आरोप हो, भाजपा द्वारा चुनाव में पैसा बांटे जाने का आरोप हो या फिर उनका यह कहना कि यदि भाजपा जीत गई तो झुग्गियों को तोड़ दिया जाएगा।

पिछले दस सालों से अरविंद केजरीवाल जिस झूठ की राजनीति के दम पर दिल्ली की जनता को बरगला कर सत्ता हासिल करते आ रहे थे। इस बार जनता ने उनको नकार दिया। पिछले दस सालों से चल रही आरोप और प्रत्यारोप की राजनीति से आजिज आ चुकी दिल्ली की जनता ने झाड़ू को दिल्ली से साफ कर दिया। अरविंद केजरीवाल के बारम्बार दिल्ली की विकास परियोजनाओं में होने वाली देरी और योजनाओं को आधा-अधूरा छोड़ने का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ना फायदेमंद साबित नहीं हुआ। दिल्ली के विकास का जो भी दावा वह करते थे जनता ने उनको गंभीरता से लेना बंद कर दिया। वहीं, भाजपा ने पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा। भाजपा शासित राज्यों के तमाम मुख्यमंत्रियों योगी आदित्यनाथ, हिमंत बिस्वा सरमा, नायब सिंह सैनी, भजन लाल शर्मा, मोहन यादव सभी ने दिल्ली में आकर प्रचार किया।

अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी नेताओं के साथ टकराव की नीति अपनाई। भाजपा और कांग्रेस नेताओं के साथ उनकी तकरार और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से जनता को यह संदेश गया कि वह जनता के मुद्दों से भटक चुके हैं। विपक्षी नेताओं पर व्यक्तिगत हमले और नकारात्मक टिप्पणियों ने भी केजरीवाल और आआपा की छवि को धूमिल किया। उनकी खुद की स्वघोषित ईमानदारी और नैतिकता पर सवाल उठे। दिल्ली के विकास का हवाई मॉडल और जो तूफानी वादे केजरीवाल ने किए वह कभी जमीन पर नहीं उतर सके। केजरीवाल कभी दिल्ली की सड़कों को पेरिस की सड़कें और वेनिस की तर्ज पर दिल्ली को झीलों का शहर बनाने की बात कहते थे। ऐसा तो नहीं हो सकता लेकिन दिल्ली में जलभराव की समस्या और बड़ी हो गई।

केजरीवाल हमेशा अपनी विफलताओं का ठीकरा भाजपा, केंद्र सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल पर फोड़ते रहे। बार—बार ऐसा करने से दिल्ली की जनता ऊब चुकी थी। उनका ध्यान दिल्ली के विकास पर कम जबकि आरोप लगाने पर ज्यादा रहा। इसका खामियाजा उन्हें इस बार भुगतना पड़ा। केजरीवाल शुरू से ही नकारात्मक राजनीति करते रहे। खुद को आम आदमी बताने वाले अरविंद केजरीवाल ने अपने लिए शीश महल क्यों बनवाया इसका जवाब वह नहीं दे सके। दिल्ली के शिक्षा मॉडल और दिल्ली के सरकारी स्कूलों की स्थिति को बेहतर करने के जो दावे केजरीवाल ने किए वह भी कोरे कागजी ही निकले।

कोरोना काल के दौरान जब दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन तक नहीं मिल रही थी। लोग मर रहे थे। उन्हें बेड नहीं मिल रहे थे। तब अरविंद केजरीवाल अपना शीश महल बनवाने और केंद्र पर ऑक्सीजन की आपूर्ति न करने आरोप लगाने में व्यस्त थे। जबकि दिल्ली को उसके कोटे से कहीं अधिक ऑक्सीजन केंद्र द्वारा सप्लाई की जा रही थी। पिछले दस सालों के दौरान वह स्वयं को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ा चैंपियन बताते रहे और खुद भ्रष्टाचार के दलदल में धंस गए। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ( कैग) ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि आबकारी नीति बनाते समय दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने नियम-कायदों को नजरअंदाज कर दिया था। इसके चलते सरकारी खजाने को 2026 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इसी तरह पिछले साल में आई दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ( डीपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के सभी पैमानों पर दिल्ली सरकार पिछड़ गई। पिछले दस सालों से यमुना की सफाई का दावा करने वाले केजरीवाल का यह दावा भी झूठा निकला।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आम आदमी पार्टी के नेताओं का अहंकार, उनके झूठ और भ्रष्टाचार पार्टी को ले डूबे। अगर एक आतिशी को छोड़ दिया जाए तो आम आदमी पार्टी के सभी बड़े चेहरे चाहे वह अरविंद केजरीवाल हों, मनीष सिसोदिया हों, सत्येंद्र जैन हों या फिर सौरभ भारद्वाज सभी विधानसभा चुनाव तक हार गए। आम आदमी पार्टी की स्थिति दिल्ली में पहले जैसी हो पाएगी यह अब बहुत दूर कौड़ी दिखाई देती है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के चुनाव हार जाने और दिल्ली में सरकार चले जाने के बाद पार्टी नेतृत्व को लेकर घमासान मचना तय है। यह भी संभव है कि पार्टी टूट जाए।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।