दरअसल अपने तमाम चुनावी समीकरणों के फेल होने के बाद कांग्रेस के पास एकमात्र यही बहाना बचता है कि हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ दिया जाए ताकि कांग्रेस के नेता जवाबदेही से बच जाएं, विशेषकर राहुल गांधी। हार का ठीकरा कैसे और किस पर फोड़ना है इसकी तैयारी पहले ही कर ली जाती है। हालांकि ईवीएम पर कांग्रेस नेताओं के बयान भी अलग—अलग आ रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ और हमेशा लीक से हटकर विवादित बयान देने वाले नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि भाजपा ने ईवीएम के जरिए टारगेटेड पोलिंग बूथ्स में गड़बड़ करके चुनाव में जीत हासिल की है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम के बेटे कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने स्पष्ट कहा है कि वह 2004 से ईवीएम से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन उन्होंने अब तक चुनावों में ईवीएम से किसी भी तरह की छेड़छाड़ या गड़बड़ी का अनुभव नहीं किया है।
ईवीएम पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस यह क्यों भूल जाती है कि 2009 में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद जब कांग्रेस दूसरी बार लगातार केंद्र में सरकार बनाने जा रही थी तब भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत कई नेताओं ने ईवीएम पर सवाल खड़े किए थे। तब कांग्रेस ने खुलकर ईवीएम का बचाव किया था। तब के बाद से तो स्थिति और ज्यादा स्पष्ट हुई है। अब ईवीएम में वीवीपैट का भी इस्तेमाल होता है जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। बावजूद इसके ईवीएम पर सवाल उठाना कांग्रेस की लगातार हार की हताशा नहीं तो और क्या है?
बहरहाल, महाराष्ट्र के जो हालिया नतीजे आए हैं इसके लिए ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ा जाना तो माना जा सकता है कि ऐसा कांग्रेसी खीझ उतारने के लिए कर रहे हैं, लेकिन इस बीच भाषा की शुचिता और मर्यादा भी कांग्रेस ने खो दी है। महाराष्ट्र में चुनाव में हुई हार से कांग्रेसी इस कदर खीझे हुए हैं कि वह अपशब्द बोलने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। महाराष्ट्र में विधान परिषद में विपक्ष के उपनेता कांग्रेस एमएलसी अशोक ए जगताप ने चुनाव आयोग की तुलना प्रधानमंत्री आवास के बाहर बैठे कुत्ते से कर दी ।
यदि चुनाव के नतीजे पक्ष में आए तो ठीक, नहीं तो ईवीएम खराब। हाल ही में बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाने की मांग करने वाली एक याचिका खारिज करते हुए भी सर्वोच्च न्यायालय ने यही टिप्पणी की थी। न्यायालय ने स्पष्ट कहा सब आपके अनुसार नहीं हो सकता। इससे पहले भी ईवीएम का मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था तब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि सभी दल जो ईवीएम हैक होने का दावा कर रहे हैं वह एक्सपर्ट के साथ आएं और ईवीएम सामने रखी है उसे हैक करके दिखाएं लेकिन तब भी कोई राजनीतिक दल वहां नहीं पहुंचा था।
वर्तमान मामले में ईवीएम हैक किए जाने के दावों पर ‘इंफो इन डाटा’ नामक एजेंसी ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार ईवीएम हैक हो ही नहीं सकती। एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि मतदान प्रक्रिया के दौरान ईवीएम की जांच और सील लगाए जाने के हस्ताक्षर करने तक कि 14 चरणों की प्रक्रिया होती है। इसमें सभी दलों और उम्मीदवारों की भागीदारी भी रहती है। ईवीएम को किसी सूरत में हैक नहीं किया जा सकता। दरअसल यह बात विपक्ष भी जानता है कि ईवीएम हैक नहीं हो सकती। यदि ऐसा होता तो 2004 से 2014 तक लगातार दो बार कांग्रेस की सरकार ही केंद्र में थी। बरसों से इकोसिस्टम भी देश में कांग्रेस का ही था। यदि ऐसा होता तो कांग्रेस कभी सत्ता से जाती ही नहीं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस संगठनात्मक दृष्टि से कमजोर हो चुकी है। उसके संगठन में दम नहीं बचा है। कितने ही वरिष्ठ कांग्रेसी अपनी उपेक्षा होने के चलते कांग्रेस से इस्तीफा देकर अलग हो चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस को अपनी संगठनात्मक संरचना को दुरुस्त करने और आंतरिक लोकतंत्र पर काम करने की जरूरत है। यदि कांग्रेस किसी राज्य में चुनाव जीतती भी है तो वह भ्रामक बातें और लोगों को बरगलाकर चुनाव जीत रही है। कांग्रेस एक बार चुनाव जीत तो जाती है लेकिन वहां पर अपनी सत्ता बरकरार नहीं रख पाती, कारण सिर्फ एक है कि जो चुनावी वादे कांग्रेस द्वारा चुनाव के दौरान किए जाते हैं वह उन्हें पूरा नहीं कर पाती। उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थीं लेकिन वह वहां भी सत्ता बचाने में कामयाब नहीं हो पाई। हिमाचल और कर्नाटक में कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रही लेकिन वहां पर भी चुनावी वायदे पूरा नहीं कर पा रही है। खुद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ऐसा कह चुके हैं कि वादे वहीं करें जो पूरा कर पाएं।
प्रोपेगेंडा कर चुनाव जीता जा सकता है लेकिन हर बार नहीं। कांग्रेस के साथ लगातार यही हो रहा है। लोकसभा चुनावों में लगातार पिछले 10 सालों में विपक्ष में रहने के बाद इस बार कांग्रेस की स्थिति कुछ बेहतर तो हुई थी लेकिन राज्यों के विधानसभा चुनावों में जनता कांग्रेस को फिर से नकार रही है। पहले हरियाणा और अब महाराष्ट्र इसका सबसे ताजा उदाहरण है। बेहतर है कि ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ने की बजाए कांग्रेस धरातल पर उतरकर काम करें ताकि जनता का जो विश्वास वह खो चुकी है उसे फिर से प्राप्त कर सके।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।